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________________ ३४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ बिजनौर हस्तिनापुरसे केवल १३ मीलकी दूरीपर गंगानदीके दूसरे तटपर स्थित है। हस्तिनापुरके समीप होने और उपर्युक्त मूर्तियाँ निकलने से स्पष्ट है कि बिजनौर जिलेमें कुछ स्थान विशेषतः 'पारसनाथका टीलप'के आसपासका सारा प्रदेश जैनधर्मका प्रमुख केन्द्र और प्रभाव क्षेत्र रहा है। बड़ागाँव मार्ग रावण उर्फ बड़ागाँवका दिगम्बर जैन मन्दिर अतिशय क्षेत्रके रूपमें प्रसिद्ध है। यहाँ पहुँचनेका मार्ग इस प्रकार है दिल्ली-सहारनपुर सड़क मार्गसे सड़क किनारे खेकड़ा बस-स्टैण्ड है। खेकड़ा उत्तर प्रदेशमें मेरठ जिलेकी तहसील नागपतमें गड, गल्लेकी प्रसिद्ध मण्डी है। दिल्लीसे खेकड़ाका बस-स्टैण्ड २२ किलोमीटर है। स्टैण्डसे खेकड़ाका बाजार २ किलोमीटर है। स्टैण्डपर हर समय ताँगे और रिक्शे मिलते हैं। बाजारसे बड़ागाँव ५ किलोमीटर है। ४ किलोमीटर तक पक्की सड़क है तथा १ किलोमीटर कच्ची सड़क है जो निकट भविष्यमें पक्की होने जा रही है। खेकड़ासे मेरठ जाने वाली बससे बड़ागाँव जा सकते हैं अथवा साइकिल रिक्शासे जा सकते हैं। गाँवमें होकर मन्दिरके लिए रास्ता है। मन्दिर गाँव के बिलकुल पास है। अतिशय क्षेत्र इस मन्दिरकी प्रसिद्धि अतिशय क्षेत्रके रूपमें है। लगभग ५० वर्ष पहले यहाँ एक टीला था, जिसपर झाड़-झंखाड़ उगे हुए थे। देहातके लोग यहाँ मनौती मनाने आते रहते थे। अपने जानवरोंको बीमारीमें या उन्हें नजर लगनेपर वे यहाँ बड़ी श्रद्धासे आते थे और दूध चढ़ाकर मनौती मनाते थे। और उनके पशु रोगमुक्त हो जाते थे। बहुत-से लोग अपनी बीमारी, पुत्रप्राप्ति और मुकद्दमोंकी मनौती मनाने भी आते थे और इस टीलेपर दूध चढ़ाते थे। इससे उनके विश्वासके अनुरूप उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती थी। सम्भवतः किसी जमाने में यहाँ विशाल मन्दिर था। किन्तु मुस्लिम कालमें धर्मान्धता अथवा प्राकृतिक प्रकोपके कारण यह नष्ट हो गया और टीला बन गया। एक बार ऐलक अनन्तकीर्ति जी खेकड़ा ग्राममें पधारे। उस समय प्रसंगवश वहाँके लोगोंने उनसे इस टीलेकी तथा उसके अतिशयोंकी चर्चा की। फलतः वे उसे देखने गये। उन्हें विश्वास हो गया कि इस टीलेमें अवश्य ही प्रतिमाएँ दबी होंगी। उनकी प्रेरणासे वैशाख वदी ८ संवत् १९७८को इस टीलेकी खुदाई करायी गयी। खुदाई होनेपर प्राचीन मन्दिरके भग्नावशेष निकले और उसके बाद बड़ी मनोज्ञ १० दिगम्बर जैन प्रतिमाएँ निकलीं, जिनमें ७पाषाणकी तथा तीन धातुकी थीं। लगभग ५ अंगुलकी एक हीरेकी भी प्रतिमा निकली थी। किन्तु वह खण्डित थी। अतः यमुना नदीमें प्रवाहित कर दी गयी। धातु प्रतिमाओंपर कोई लेख नहीं है। किन्तु पाषाण प्रतिमाओं पर ( दोको छोड़कर शेषपर ) मूर्तिलेख हैं। उनसे ज्ञात होता है कि इन प्रतिमाओंमें कुछ १२वीं शताब्दीकी हैं और कुछ १६वीं शताब्दीकी। इससे उत्साहित होकर यहाँ एक विशाल दिगम्बर जैन मन्दिरका निर्माण किया गया और
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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