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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
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परिणाम है । यह खण्डित कर दी गयी है। इसके हाथ, पैर और मुँह खण्डित हैं । सर्प- कुण्डलीके आसनपर भगवान् विराजमान हैं। उनके सिरपर सर्पफण मण्डल है । उनके अगल-बगल में नागनागिन अंकित हैं । चरणपीठपर दो सिंह बने हुए हैं। जिस सातिशय मूर्तिके कारण इस किले को पारसनाथका किला कहा जाता था, सम्भवतः वह मूर्ति यही रही हो ।
इन मूर्तियों के अतिरिक्त कुछ सिरदल-स्तम्भ आदि भी मिले हैं। एक सिरदलके मध्य में कमल-पुष्प और उनके ऊपर बैठे हुए दो सिंहोंवाला सिंहासन दिखाई देता है । सिंहासन के ऊपर मध्यमें पद्मासन मुद्रामें भगवान् ध्यानलीन हैं। उनके दोनों ओर दो खड्गासन तीर्थंकर मूर्तियों का अंकन किया गया है । फिर इन तीनों मूर्तियों के इधर-उधर भी इसी प्रकारकी तीन-तीन मूर्तियाँ बनी हुई हैं। इन तीनों भागोंके इधर-उधर एक-एक खड्गासन मूर्ति अंकित है ।
कुछ द्वार स्तम्भ भी मिले हैं। एक द्वार स्तम्भमें मकरासीन गंगा और दूसरे स्तम्भमें कच्छपवाहिनी यमुनाका कलात्मक अंकन है । इन देवियों के अगल-बगल में उनकी परिचारिकाएँ हैं । ये सभी स्तनहार, मेखला आदि अलंकरण धारण किये हुए हैं । स्तम्भमें ऊपरकी ओर पत्रावलीका मनोरम अंकन है । स्तम्भोंपर गंगा-यमुनाका अंकन गुप्तकालसे मिलता है ।
कुछ स्तम्भ ऐसे भी प्राप्त हुए हैं, जिनपर दण्डधारी द्वारपाल बने हैं । देहलीके भी कुछ भाग मिले हैं, जिनपर कल्पवृक्ष, मंगलकलश लिये हुए दो-दो देवता दोनों ओर बने हुए हैं। एक पाषाणफलकपर संगीत-सभाका दृश्य उत्कीर्ण है। इसमें अलंकरणके अतिरिक्त नृत्य करती हुई एक नर्तकी तथा मृदंग- मंजीरवादक पुरुष दिखाई पड़ते हैं ।
किलेसे कुछ अलंकृत ईंटें भी मिली हैं । यहाँके कुछ अवशेष और मूर्तियाँ नगीना और बिजनौर के दिगम्बर जैनमन्दिरों में पहुँच गयी हैं। शेष अवशेष यहीं एक खेतमें पड़े हुए हैं ।
इन पुरातत्त्वावशेषों और अभिलिखित मूर्तियोंसे हम इस निर्णयपर पहुँचते हैं कि ९-१०वीं या उससे पूर्व की शताब्दियोंमें यह स्थान जैनधर्मका महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा है । यहाँ जो व्यापक विध्वंस दिखाई पड़ता है, उसके पीछे किसका हाथ रहा है, निश्चित रूपसे नहीं कहा जा सकता । यदि यहाँकी खुदाई करायी जाये तो सम्भव है, यहाँ से अनेक प्राचीन कलाकृतियाँ मिल सकें और यहाँके इतिहासपर भी कुछ प्रकाश पड़ सके ।
यह स्थान तथा इसके आसपासके नगर जैनधर्मके केन्द्र रहे हैं, इस बात के कुछ प्रमाण प्रकाश में आये हैं । यह स्थान नगीनेके बिलकुल निकट है । नगीनेमें जैनमन्दिर के पासका मुहल्ला 'यतियोंका मुहल्ला' कहलाता है । यति जैन त्यागी वर्ग का ही एक भेद था । इस नामसे ही इस नगरके इस भागमें जैन यतियों के प्रभावका पता चलता है।
नगीनेसे ८ मीलकी दूरीपर नहटौर नामक एक कस्बा है । सन् १९०५ में इस कस्बेके पास ताँबे का एक पिटारा निकला था जिसमें २४ तीर्थंकरोंकी मूर्तियाँ थीं । सम्भवतः ये मुस्लिम आक्रमणकारियोंके भयसे जमीनमें दबा दी गयी होंगी। ये मूर्तियाँ अब नहटौरके जैनमन्दिर में हैं । नहटौर के पास गांगन नामकी एक नदी है । उसमें से १९५६-५७ में एक पाषाण फलक निकला था। उसके ऊपर पाँच तीर्थंकर - मूर्तियाँ हैं । यह जैनमन्दिर भी नहटौर में स्थापित है ।
नहटौरसे तीन मीलकी दूरीपर पाडला गरीबपुर नामका एक ग्राम है। उस ग्रामके बाहर एक टीलेपर एक पद्मासन जैनप्रतिमा मिट्टी में दबी पड़ी थी। उसका कुछ भाग निकला हुआ था । ग्रामीण लोग इसे देवता मानकर पूजते थे । १९६९-७० में जैनियोंने यहाँ की खुदाई करायी। खुदाईके फलस्वरूप भगवान् ऋषभदेवकी प्रतिमा निकली। अब नहटौरकी जैन समाजने वहाँ मन्दिर
दिया है।
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