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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीथं पारसनाथका किला 1 बिजनौर जिले में नगीना रेलवे स्टेशनसे उत्तर-पूर्व की ओर 'बढ़ापुर' नामक एक कस्बा वहाँ से चार मिल पूर्वकी ओर कुछ प्राचीन अवशेष दिखाई पड़ते हैं । इन्हें ही 'पारसनाथका किला' कहते हैं । इस स्थानका नामकरण तेईसवें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथके नामपर हुआ लगता है । ३२ इस किले के सम्बन्ध में अनेक जनश्रुतियाँ प्रचलित हैं। एक जनश्रुतिके अनुसार पारस नामक किसी राजाने यहाँ किला बनवाया था । उसने यहाँ कई जैनमन्दिरोंका भी निर्माण कराया था । इस समय यहाँ कोई मन्दिर नहीं है, अपितु प्राचीन मन्दिरों और किलेके भग्नावशेष चारों ओर कई वर्गमीलके क्षेत्रमें बिखरे पड़े हैं। इन अवशेषोंका अब तक विधिवत् अध्ययन नहीं हुआ है । कुछ उत्खनन अवश्य हुआ है। समय-समयपर यहाँ जैन मूर्तियों या जैनमन्दिरोंसे सम्बन्धित अन्य सामग्री उपलब्ध होती रहती है । उपलब्ध सामग्री के अध्ययनसे ज्ञात हुआ है कि प्राचीन कालमें यह स्थान जैनोंका प्रमुख केन्द्र था । यहाँ कई तीर्थंकरोंके पृथक्-पृथक् मन्दिर बने हुए थे । 'पारसनाथका मन्दिर' इन सबमें प्रमुख था । इसीलिए इस स्थानका नाम पारसनाथ पड़ गया । निश्चय ही मध्यकालमें यहाँ एक महत्त्वपूर्ण मन्दिर था । वह सुसम्पन्न और समृद्ध था । मन्दिर के चारों ओर सुदृढ़ कोट बना हुआ था, इसीको पारसनाथका किला कहा जाता था । सन् १९५२ से पूर्व तक इस स्थानपर बड़े भयानक जंगल थे । इसलिए यहाँ पहुँचना कठिन था । सन् १९५२ में पंजाब से आये पंजाबी काश्तकारोंने जंगल साफ करके भूमिको कृषि योग्य बना लिया है और उसपर कृषि कार्य कर रहे हैं। प्रारम्भमें कृषकों को बहुत सी पुरातन सामग्री मिली थी । अब भी कभी-कभी मिल जाती है। अब तक जो सामग्री उपलब्ध हुई है, उसमें से कुछका परिचय यहाँ दिया जा रहा है - भगवान् महावीरकी बलुए खेत पाषाणकी पद्मासन प्रतिमा । अवगाहना लगभग पौने तीन फुट | यह प्रतिमा एक शिलाफलकपर है । महावीरकी उक्त मूर्तिके दोनों ओर नेमिनाथ और चन्द्रप्रभ भगवान्की खड्गासन प्रतिमा है । इसका अलंकरण दर्शनीय है । अलंकरणमें तीनों प्रतिमाओंके प्रभामण्डल खिले हुए कमलकी शोभाको धारण करते हैं । भगवान् महावीर अशोकवृक्षके नीचे विराजमान हैं । वृक्षके पत्रोंका अंकन कलापूर्ण है । प्रतिमाके मस्तकपर छत्रत्रयी सुशोभित है । मस्तक के दोनों ओर पुष्पमालाधारी विद्याधर हैं। उनके ऊपर गजराज दोनों ओर प्रदर्शित हैं । तीनों प्रतिमाओंके इधर-उधर चार चमरवाहक इन्द्र खड़े हैं । प्रतिमाके सिंहासन के बीचमें धर्मचक्र है । उसके दोनों ओर सिंह अंकित हैं । चक्रके ऊपर कीर्तिमुख अंकित । सिंहासन में एक ओर धनका देवता कुबेर भगवान्‌की सेवामें उपस्थित है और दूसरी ओर गोदमें बच्चा लिये हुए अम्बिकादेवी है । सिंहासनपर ब्राह्मी लिपिमें एक अभिलेख भी उत्कीर्ण है जो इस प्रकार पढ़ा गया है'श्री विरुद्धमनसमिदेवः । सं. १०६७ राणलसुत्त भरथ प्रतिम प्रठपि' अर्थात् संवत् १०६७ में राके पुत्र भरत ने श्री वर्धमान स्वामीकी प्रतिमा प्रतिष्ठापित की । - भगवान् पार्श्वनाथकी एक विशाल पद्मासन प्रतिमा बढ़ापुर गाँवके एक मुसलमान झोजे - के घरसे मिली थी, जिसे वह उक्त किलेके सबसे ऊँचे टीलेसे उठा लाया था । इसको उलटा रखकर वह नहाने और कपड़े धोने आदिके कामोंमें लाता था। एक वर्षके भीतर वह और उसका सारा परिवार नष्ट हो गया । घर फूट गया लोगों का विश्वास है कि भगवान्‌की अविनयका ही यह
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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