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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ प्राचीन टीलोंके पास बहती है। भारत सरकारकी ओरसे इस सांस्कृतिक नगरीकी सन् १९५० में खुदाई हुई थी। यह खुदाई २४ फुट चौड़ी, ५०० फुट लम्बी और २५ फुट गहरी थी। इस खोजके फलस्वरूप यह सिद्ध होता है कि हस्तिनापुर नगर चार बार बसा और उजड़ा । प्रथम बार यह नगर गंगाकी बाढ़के कारण नष्ट हुआ । पुरातत्त्ववेत्ताओंने यहाँकी खुदाईसे तथा यहाँ उपलब्ध हुए मृत्पात्र, मुद्रा आदि पुरातन वस्तुओंसे यह अनुमान लगाया है कि नगरका प्रथम बार विनाश ईसासे लगभग १०-१२ शताब्दी पूर्व हुआ होगा। उस समयसे पूर्व तक यह नगर अपनी उन्नतिकी चरम सीमापर था। नगरके सम्पूर्ण वैभव और कला, सभ्यता और सम्पदा सबको गंगा अपने साथ बहा ले गयी और अपने पीछे मीलोंमें इसके अवशेष छोड़ गयी। अभी तक जो भी खुदाई हई है, वहाँ जैन मन्दिरों, स्तूपों और निषधिकाओंके चिह्न प्राप्त नहीं हुए। इससे लगता है कि जिन टीलोंको अछूता छोड़ दिया गया है, उनके नीचे जैन संस्कृतिका अतुल भण्डार दबा पड़ा है। आचार्य जिनप्रभसूरिने वि. संवत् १३८९ में संघसहित यहाँकी यात्रा की थी ( विविधतीर्थ कल्प )। इसी प्रकार कविवर बनारसीदासने कुटुम्बसहित यहाँकी यात्रा सन् १६००के लगभग की थी। उस समय यहाँ मन्दिर, नशिया और स्तूप विद्यमान थे। परवर्ती कालमें प्रकृतिके प्रकोपसे अथवा मुस्लिम कोंकी धर्मान्धताके कारण ये नष्ट हो गये । हमें विश्वास है, वे इन टीलोंमें दबे पड़े हैं। खुदाईके फलस्वरूप पुरातत्त्ववेत्ता इस निष्कर्षपर पहुंचे हैं कि हड़प्पाकी सिन्धु घाटी सभ्यतासे भी प्राचीन नर्मदा घाटीकी सभ्यता है, जो गुजरातसे माहिष्मती ( मध्यप्रदेशमें स्थित महेश्वर ) होती हुई गंगाके कांठे तक फैली हुई है। उसका सम्बन्ध हस्तिनापुरसे भी है । इस प्रकार उनके मतसे हस्तिनापुरकी सभ्यता और संस्कृति ईसासे लगभग ३००० वर्ष पूर्वकी हो जाती है। क्षेत्रपर स्थित संस्थाएँ इस समय क्षेत्रपर दिगम्बर जैन प्रान्तीय गुरुकुल, मुमुक्षु-आश्रम है। यहाँ त्यागीजन और ब्रह्मचारिणियाँ भी रहती हैं। इस गुरुकुलकी स्थापना सन् १९४५ में पूज्य क्षुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी और मनोहरलालजी वर्णीके आशीर्वाद और प्रेरणासे सहारनपुरमें की गयी थी। वहाँ जलवायु अनुकूल न होनेके रण यह सन् १९४९ में हस्तिनापुर आ गया। छात्रोंके निवासके लिए इसका अपना छात्रावास है। विद्यालय भवनका निर्माण हो रहा है । कुछ कमरोंका निर्माण हो भी चुका है। मुमुक्षु आश्रममें पं. हुकुमचन्द्रजी सलावाके कारण शास्त्र-स्वाध्याय नियमित चलता है। क्षेत्रको व्यवस्था ___ इस क्षेत्रकी व्यवस्था एक रजिस्टर्ड कार्यकारिणी समिति द्वारा की जाती है, जिसके ४१ सदस्य हैं। नवनिर्माण __ पिछले मन्दिरके उत्तर और दक्षिणकी ओर दो भव्य शिखरबन्द मन्दिर श्री अरहनाथ और श्री कुन्थुनाथ भगवान्के बन चुके हैं। मन्दिरके पीछे, १०० बीघेके उसके कैम्पिग ग्राउण्डमें पाण्डुक शिलाका निर्माण हो रहा है।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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