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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ विराजमान है। इसके मूर्तिलेखसे ज्ञात होता है कि इसकी प्रतिष्ठा संवत् १२३१ ( सन् ११७४ ) वैशाख सुदी १२ सोमवारको देवपाल सोनी अजमेर निवासी द्वारा हस्तिनापुरमें हुई थी। यह प्रतिमा ४० वर्ष पहले उस टीलेकी खुदाईमें निकली थी, जिसके ऊपर श्वेताम्बरोंने अपनी नशिया बनायी थी। यह प्रतिमा हलके सलेटी रंगकी है। इसके चरणोंके दोनों ओर चँवरधारी खड़े हुए हैं। सिरके ऊपर पाषाणकी छत्रत्रयी सुशोभित है। छत्रके दोनों ओर हाथीपर बैठे हुए इन्द्र भगवान्के ऊपर पुष्प वर्षा कर रहे हैं। चमरवाहकोंके नीचे हाथ जोड़े स्त्री-पुरुष खड़े हैं जो सम्भवतः प्रतिष्ठापक युगल हैं । पादपीठपर हरिणका लांछन और लेख है।
बीचकी वेदीके मध्यमें काले पाषाणकी पार्श्वनाथकी सवा दो फुट अवगाहना वाली प्रतिमा है। उसके दायें-बायें शान्तिनाथ और कुन्थुनाथकी प्रतिमाएं विराजमान हैं। आगेकी पंक्तिमें १ श्वेत पाषाणकी, १ पीतलकी सर्वतोभद्रिका तथा २ पीतलकी अन्य प्रतिमाएँ हैं।
दायीं ओरकी वेदीमें भगवान् महावीरकी श्वेत पाषाणकी ७ फुटी प्रतिमा है। यह वीर नि. सं. २४६९ में प्रतिष्ठित हुई है।
यहाँ निकट ही एक स्थान है जो पक्का चबूतरा कहलाता है। वहाँ एक गुफा भी है। सम्भवतः यह मुनिजनोंके ध्यानादिके लिए प्रयुक्त होती थी।
मन्दिरसे उत्तर दिशामें ३ मीलकी दूरीपर चन्द टीलोंपर जैन नशियाँ बनी हुई हैं। मन्दिरसे चलकर वन-विभाग द्वारा संरक्षित वन पड़ता है। वन-विभागकी ओरसे बनी हुई कच्ची सड़कसे नशियोंको मार्ग जाता है। यह सड़क भी लगभग १ मील तक ठीक है। उसके पश्चात् रेतीला रास्ता आ जाता है। सबसे पहले शान्तिनाथकी नशिया मिलती है। टोंकमें स्वस्तिक बना हुआ है। टोंकके बगल में खुली तिदरी बनी हुई है जो यात्रियोंकी सुविधाकी दृष्टिसे बनायी गयी है। टोंकके पूर्व में भी एक छतरी है। सम्भवतः दिगम्बर मुनियोंके ध्यानके लिए यह स्थान बनाया गया है ।
इस नशियाका जीर्णोद्धार मिति ज्येष्ठ कृष्णा १४ वीर सं. २४३८ वि. सं. १९४९ को दिगम्बर जैन समाजने पंचायती द्रव्यसे कराया था।
इस नशियासे दूसरी नशियाको जाते समय रास्तेमें एक पक्का कुआँ मिलता है, जिसका निर्माण लाला संगमलाल पन्नालाल शाहपुर ( जिला मुजफ्फरनगर ) ने कराया था।
इससे आगे जानेपर एक टेकरीपर कम्पाउण्ड बना हुआ है, जिसमें दो नशियाँ हैं-भगवान् अरहनाथकी और भगवान् कुन्थुनाथ की। ये दोनों क्रमशः बायीं और दायीं ओर हैं। दोनों नशियों (टोंकों) के नीचे एक-एक पाषाण लगा हुआ है, जिसमें दोनों तीर्थंकरोंका जीवन-परिचय लिखा है। जिन्होंने इन तीर्थंकरोंकी यह प्रशस्ति-शिला लगायी है, उन्होंने वास्तवमें बहुत प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय कार्य किया है। इन दोनों नशियोंमें स्वस्तिक बने हुए हैं।
श्री अरहनाथ स्वामीकी नशियाका जीर्णोद्धार श्रीमती भगवानदेई धर्मपत्नी लाला मुसद्दीलाल सुपुत्र लाला केदारनाथ रईस सदर, मेरठने अपने पिता रायसाहब लाला प्रभुलाल जैन मेरठ निवासीके प्रबन्धसे वीर नि. सं. २४४४ वि. सं. १९७५ में कराया।
__श्री कुन्थुनाथ स्वामीकी नशियाका पाषाणोद्धार श्रीमती भगवानदेईने अपनी स्वर्गीय सुपुत्री रतनदेई धर्मपत्नी लाला दिगम्बरप्रसाद सुपुत्र बा. शीतलप्रसाद रईस सहारनपुरकी ओरसे अपने