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________________ २८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ तीर्थ-दर्शन यहाँ पहुँचते ही दायीं ओर श्वेताम्बर मन्दिर एवं धर्मशाला मिलती है। यह मन्दिर सन् १८७०में बना था। इस धर्मशालाके सामनेका चबूतरा दिगम्बर समाजका है तथा धर्मशालाके बराबर जो जमीन है, वह भी दिगम्बर समाजकी है। इस जमीनपर मेलेके समय सैकड़ों वर्षोंसे दिगम्बरोंका पण्डाल बनता आया है और अब भी प्रतिवर्ष बनता है। पहले यहाँ श्वेताम्बरोंका न कोई मन्दिर था, न धर्मशाला थी और न कोई भूमि थी। किन्तु दिगम्बर भाइयोंने श्वेताम्बरोंके अनुरोधपर भूमि आदि दिलवाने में सहयोग दिया और अपनी भी कुछ भूमि उन्हें दे दी। पण्डालकी भूमिसे मिली हुई दिगम्बर समाजकी एक विशाल धर्मशाला है। बायीं ओर थोड़ी सी ऊँचाई चढ़कर दिगम्बर जैन मन्दिर और धर्मशालाका विशाल द्वार मिलता है। द्वारपर ही क्षेत्र-कार्यालय है। भीतर घसते ही पुराना पक्का कुआँ और धर्मशाला है। फिर एक द्वार मिलता है जो मन्दिरका प्रवेश-द्वार है। द्वारके समक्ष ३१ फुट ऊँचा मानस्तम्भ बना हुआ है। चारों ओर खुले बरामदे और सहन हैं और बीचमें मन्दिर है। मन्दिर लगभग चार फुट ऊँची चौकी देकर बनाया गया है और मन्दिरके चारों ओर रेलिंगदार चबूतरा है। मन्दिरका केवल एक ही खण्ड है, जिसे गर्भगृह कह सकते हैं, किन्तु है काफी बड़ा। इस मन्दिरमें केवल एक ही वेदी है । वेदी तीन दरकी और काफी विशाल है। मूलनायक प्रतिमा भगवान् शान्तिनाथकी है। यह श्वेत पाषाणको लगभग एक हाथ ऊँची पद्मासन है। यह मूर्ति जीवराज पापड़ीवालेने सं. १५४८ वैशाख सुदी ३ को भट्टारक जिनचन्द्र द्वारा प्रतिष्ठित करायी थी। इसके बायीं ओर अरनाथ और दायीं ओर कुन्थुनाथकी मूर्ति है । वेदीमें पंचबालयति ( वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर ) का एक प्रतिमाफलक काफी प्राचीन लगता है। बीचकी प्रतिमा पद्मासन है तथा बायीं ओर दो प्रतिमाएँ खड्गासन हैं । दायीं ओरकी दो प्रतिमाएँ नहीं हैं। सम्भवतः मुस्लिमकालमें खण्डित कर दी गयी होंगी। यह प्रतिमाफलक २५ वर्ष पहले जिला मुज़फ्फरनगरके मारगपुर गाँवके जंगलमें मिला था, जो यहाँ ले आया गया। प्रतिमापर कोई लेख नहीं है। इसलिए लोग इसे चतुर्थ कालकी मानते हैं। किन्तु इस प्रतिमाकी बनावट और शैलीसे यह १०-११वीं शताब्दीकी प्रतीत होती है। इनके अतिरिक्त दो प्रतिमाएँ नीले और हरे पाषाणकी हैं। अवगाहना प्रायः ६-६ इंच होगी। ये पद्मासन मुद्रामें हैं तथा अत्यन्त मनोज्ञ हैं। और भी ७ प्रतिमाएँ पीतलकी तथा एक सन्दूकमें पीतलकी छोटी-छोटी ७ अन्य प्रतिमाएँ रखी हैं। मन्दिरपर जो शिखर है, उसकी विशेषता यह है कि वह न केवल सुन्दर और विशाल है, बल्कि उसके ऊपर एक कमरा है और उस कमरेके ऊपर दूसरा शिखर बना हुआ है। यह शिखर इतना विशाल है कि इसकी समानता कम मिलेगी। - इस मन्दिरके पीछे एक दूसरा मन्दिर है । यह मुख्य मन्दिरके बादका बना हुआ है। इसमें बायीं ओरकी वेदीमें भगवान् शान्तिनाथकी ५ फुट ११ इंच अवगाहनावाली खड्गासन प्रतिमा
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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