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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ मुनिराजसे मुनिदीक्षा' ले ली। भगवान् मुनिसुव्रतनाथके ही समयमें हस्तिनापुरमें गंगदत्त श्रेष्ठी था। उसके पास सात करोड़ स्वर्णमुद्राएँ थीं। एक बार भगवान् हस्तिनापुर पधारे । श्रेष्ठीने भगवान्का उपदेश सुना। उसके मनमें वैराग्य उत्पन्न हो गया। उसने भगवान्के पास ही मुनि'-व्रत अंगीकार कर लिये। यहींपर कौरव और पाण्डव हुए थे और राज्यके प्रश्नपर दोनोंमें महाभारत नामक प्रसिद्ध युद्ध भी हुआ था। वरनाल नामक वह स्थान जहाँ दुर्योधनने लाखके घरमें पाण्डवोंको जलानेकी योजना की थी, इसके पास ही है। इस युद्धसे पूर्व पाण्डवोंने कृष्णके द्वारा कौरवोंसे बागपत, तिलपत. इन्द्रप्रस्थ, पानीपत और सोनीपत इन पाँच गाँवोंकी माँग की थी। ये नगर आज भी हस्तिनापुरके निकट मौजूद हैं। ___ एक बार मुनि दमदत्त हस्तिनापुर पधारे और उद्यानमें ठहर गये । कौरव उधरसे निकले। उन्होंने अपनी दुष्ट प्रकृतिके कारण मुनिको देखकर उनकी निन्दा की और उनपर पत्थर बरसाये। फिर थोड़ी देर बाद पाण्डव आये। उन्होंने मुनिकी चरण वन्दना की, स्तुति की और पत्थर हटाये । मनि ध्यानलीन थे। उन्हें उसी समय केवलज्ञान हो गया। देवोंने आकर उत्सव मनाया। पाण्डवोंके बाद कुछ समय तक यहाँ नागजातिका आधिपत्य हो गया। अर्जुनके पौत्र परीक्षित्की मृत्यु इन्हीं नागोंके हाथों हुई थी। तक्षशिला इनका प्रधान केन्द्र था। तक्षक इनका प्रधान था। पंजाब तथा पश्चिमोत्तर भारतमें नागजातिका बहुत जोर था। इन्होंने उधरसे आकर और परीक्षित्को मारकर कुछ समयके लिए तक्षशिलासे शूरसेन प्रदेश तक अधिकार कर लिया। परीक्षितके पूत्र जनमेजयने इनके साथ सतत युद्ध करके इन्हे परास्त किया और पजाबके आगे तक खदेड़ दिया। तो भी हस्तिनापुरपर नागोंके आक्रमण बराबर होते रहे। नाग लोग अपनी सुन्दरताके लिए बहुत प्रसिद्ध थे। नागकन्याओंकी तुलना अप्सराओंसे की जाती थी। प्राचीन साहित्यमें ऐसे स्थल अनेक बार आये हैं। आर्य लोगोंके साथ नागकन्याओंके विवाह भी होते थे। अर्जुनने नागकन्या उलूपीके साथ विवाह किया था। हिन्दू पुराणोंमें नागजातिके प्रभुत्वका विस्तृत विवरण मिलता है और विदिशा, कान्तिपुरी, मथुरा और पद्मावती ( नरवरके पास पदमपवाया ) को उनकी राजधानियाँ बताया है। ये नागजातिके शक्ति केन्द्र थे। नागजाति का अपना जातीय चिह्न 'नाग' था। मथुरा आदि कई स्थानोंपर सिक्के प्राप्त हए हैं, जिनमें नाग नामान्तक कुछ राजाओंका परिचय मिलता है। भारशिव नरेश पद्मावती के नागवंशके थे। तीसरी-चौथी शताब्दीमें इनका विस्तृत प्रदेशपर आधिपत्य था। तीर्थकरोंकी मूर्तियों के दायें-बायें बहुधा फणधारी नाग लोग खड़े पाये जाते हैं। इससे यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि नाग लोग जैन धर्म के अनुयायी रहे हैं। इन्हें वैदिक स्मृतियों में वेद-विरोधी व्रात्य कहा गया है। नगरका विनाश और निर्माण परीक्षित्की पाँचवीं पीढ़ीमें अधिसीम कृष्णका पुत्र निचक्षु हुआ। इसके राज्य-कालमें लाल टिड्डियोंका भयानक प्रकोप हुआ, जिन्होंने सारी फसलको चट कर डाला। पेड़ोंपर पत्ते तक न १. विमलसूरि कृत पउमचरिउ २१-४३ । २. विविधतीर्थकल्प, पृ. २७ ३. 'णायकुमार चरिउ'-डॉ. हीरालाल जी, एम. ए., डी. लिट. द्वारा लिखित भूमिका, पृष्ठ ३१-३२ ४. भारतीय इतिहासको रूपरेखा भाग-१, श्री जयचन्द्र विद्यालंकार, प. २८९
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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