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________________ २२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ पौराणिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि हस्तिनापुरकी गणना भारतके प्राचीनतम ऐतिहासिक और सांस्कृतिक नगरोंमें की जाती है। मानव-विकासके आदिकालसे ही यह राजनीतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक घटनाओंकी लीलाभूमि रहा है। आदितीर्थंकर भगवान् ऋषभदेवने ५२ आर्य देशोंकी स्थापना की थी। उनमें कुरुजांगल देश भी था। इस प्रदेशको राजधानीका नाम गजपुर था। सम्भवतः इस प्रदेशके गंगातटवर्ती जंगलमें हाथियोंका बाहुल्य होनेके कारण यह गजपुर कहलाने लगा। पश्चात् कुरुवंशमें 'हस्तिन्' नामका एक प्रतापी राजा हुआ। उसके नामपर इसका नाम हस्तिनापुर हो गया। प्राचीन साहित्यमें इस नगरके कई नाम आते हैं। जैसे-'गजपुर, हस्तिनापुर, गजसाह्वयपुर, 'नागपुर, आसन्दीवत, ब्रह्मस्थल, शान्तिनगर, कुंजरपुर आदि। यहाँ सबसे प्रथम और सर्वविश्रुत घटना भगवान् ऋषभदेवके लिए राजकुमार श्रेयांसकूमार द्वारा दिये गये आहार-दानकी घटित हई, जिसने सारे जगत्का ध्यान इस नगरकी ओर आकर्षित कर दिया। भगवान् ऋषभदेव मुनि-दीक्षा लेनेके पश्चात् छह माहके उपवासकी प्रतिज्ञा लेकर ध्यानमें लीन हो गये। अपने व्रतकी समाप्तिके पश्चात् वे आहारके लिए निकले। किन्तु मुनिजनोचित आहार-विधिका ज्ञान न होनेके कारण कोई उन्हें आहार नहीं दे सका। इस प्रकार भगवान्को ६ माह १३ दिन तक और निराहार रहना पड़ा। जब भगवान् प्रयागसे विहार करते हुए हस्तिनापुर पधारे तो बाहुबलीके पुत्र हस्तिनापुर-नरेश सोमप्रभके लघुभ्राता श्रेयान्सने उन्हें अपने महलकी छतसे देखा। देखते ही उसे पूर्व जन्ममें दिये हुए आहार-दानकी विधिका स्मरण हो आया। वह नीचे आया और भगवान्को भक्तिपूर्वक पड़गाहा और महलोंमें ले जाकर उन्हें इक्षु रसका शुद्ध आहार दिया। यह पुण्य दिवस वैशाख शुक्ला तृतीया था। भगवान्के इस सर्वप्रथम आहारके कारण हस्तिनापुरको महानता प्राप्त हो गयी। यह पवित्र दिन अक्षय तृतीयाके नामसे एक पर्वके रूपमें प्रसिद्ध हो गया। श्रेयांसको दानके प्रथम प्रवर्तकके रूपमें प्रतिष्ठा प्राप्त हुई। उसने आहार दानवाले स्थानपर एक रत्नमय स्तूपका निर्माण कराया। संसारमें दान देनेकी प्रथा इस आहारदानके बाद ही प्रचलित हुई। सोमप्रभ और श्रेयांस दोनों बाहुबलीके पुत्र थे। भगवान् ऋषभदेवने जब अपने सौ पुत्रोंको राज्य दिये तो बाहुबलीको पोदनपुर और हस्तिनापुरके राज्य मिले । पोदनपुरमें स्वयं रहे और हस्तिनापुरमें उनका पुत्र सोमप्रभ या सोमयश। इसीसे चन्द्रवंश चला। इसका दूसरा नाम कुरु भी था। कुरुवश भा इसाक कारण प्रख्यात हुआ। इक्षुरसका आहार लेनेके कारण भगवान् इक्ष्वाकु कहलाये और उनका वंश इक्ष्वाकु वंश। ___ अनन्तर सोमप्रभके पुत्र मेघेश्वर जयकुमार और उनकी सुन्दर पत्नी सुलोचनाने हस्तिनापुरको आकर्षणका केन्द्र बना दिया। जयकुमार प्रथम चक्रवर्ती भरतके प्रधान सेनापति थे और सुलोचना काशीनरेश अकम्पनकी पुत्री थी। अकम्पनसे ही नाथवंश चला था और भगवान् ऋषभदेवने इन्हें महामण्डलेश्वर बनाया था। काशीमें सुलोचनाका स्वयंवर किया गया। सुलोचनाने जयकुमारके गलेमें वरमाला डालकर उन्हें पतिरूपमें स्वीकार कर लिया। भारतमें यहीसे स्वयंवर प्रथाका सूत्रपात हुआ। १. विमलसूरि कृत पउमचरिउ ९५-३४ । २. श्रीमद्भागवत १-९-४८ । ३. विमलसूरि कृत पउमचरिउ ६-७१,२०-१० । ४. वही, २०-१८० । ५. वही, ९५-३४। ६. हरिवंश पुराण १३।१६ । ७. आदिपुराण १६।२५८ । ८. वही, १६।२६० ।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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