________________
हस्तिनापुर
मार्ग
हस्तिनापुर पश्चिमी उत्तरप्रदेशके मेरठ जिलेमें स्थित है। मेरठसे हस्तिनापुर तक पक्का रोड है। दिल्लीसे मेरठ ६० किलोमीटर है और मेरठसे मवाना होकर हस्तिनापुर ३७ किलोमीटर उत्तर-पूर्व में है । यहाँ जानेका एकमात्र साधन बसें हैं, यहाँ पोस्ट-ऑफिस और पुलिस चौकी भी है। ठहरने के लिए क्षेत्रपर ५ जैन धर्मशालाएँ हैं। कल्याणक क्षेत्र
अयोध्याके समान हस्तिनापुर भी अत्यन्त प्राचीन तीर्थ है। जिस प्रकार, जैन अनुश्रुतिके अनुसार अयोध्या की रचना 'देवों ने की थी, इसी प्रकार युग के प्रारम्भ में हस्तिनापुर की रचना भी 'देवों द्वारा की गयी थी। अयोध्यामें पाँच तीर्थंकरोंके १८ कल्याणक देवों और मनुष्योंने मनाये, जबकि हस्तिनापुरमें तीन तीर्थंकरोंके १२ कल्याणकोंकी पूजा और उत्सव मनाया गया। यहाँ सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ, सत्रहवें तीर्थंकर कुन्थुनाथ और अठारहवें तीर्थंकर अरनाथका जन्म हुआ था।
इन तीर्थंकरोंके जन्मके सम्बन्धमें प्रसिद्ध ग्रन्थ 'तिलोयपण्णत्ति' में विस्तारसे उल्लेख है।
तीनों तीर्थंकरोंने हस्तिनापुरके ही सहस्राम्र वनमें या सहेतुक वनमें दीक्षा ली और वहीं उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। इस प्रकार यहाँपर तीन तीर्थंकरोंके गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान इस प्रकार चार कल्याणक अर्थात् कुल १२ कल्याणक मनाये गये। अतः तीर्थंकरोंकी कल्याणक भूमि होनेके कारण यह नगर इतिहासातीत कालसे तीर्थक्षेत्रके रूपमें मान्य रहा है। ___इनके अतिरिक्त भगवान् आदिनाथका धर्म-विहार जिन देशोंमें हुआ, उनमें कुरुदेशै भी था। हस्तिनापुर कूरुदेशकी राजधानी थी। अतः यहाँ कई बार भगवान्का समवसरण आया था। उन्नीसवें तीर्थंकर भगवान् मल्लिनाथका भी समवसरण यहाँ आया था। यहाँ तेईसवें तीर्थंकर भगवान् पार्श्वनाथ दीक्षाके बाद पधारे थे और वरदत्तके घर पारणा की थी। वे केवलज्ञानके बाद भी यहाँ पधारे थे।
यहाँका राजा स्वयम्भू भगवान् पार्श्वनाथको केवलज्ञान प्राप्त होनेपर अहिच्छत्र गया था और उनका उपदेश सुनकर मुनि-दोक्षा धारण कर ली थी। वही भगवान्का प्रथम गणधर बना। उसकी पुत्री प्रभावती भगवानके पास आर्यिका बन गयी। वह फिर प्रधान अजिंका हुई। भगवान् महावीर भी यहाँपर पधारे थे। पराण शास्त्रोंमें महावीर भगवान के पावन विहारका जो प्रामाणिक विवरण मिलता है, उसमें कुरु देश या कुरुजांगल देश भी है। आचार्य जिनसेन ( हरिवंश पुराण १३-७) ने तो स्पष्ट लिखा है कि इन देशोंको भगवान्ने धर्मसे युक्त बना दिया। इसका अर्थ है कि भगवान्के विहार और उनके उपदेशके कारण इस प्रदेशमें भगवान्के धर्मको माननेवाले व्यक्तियोंकी संख्या प्रचुर थी। एक प्रकारसे सम्पूर्ण कुरु प्रदेश ही भगवान्का भक्त बन गया था।
- १. आदिपुराण १२१७०-७७ । २. वही, १६:१५२। ३. तिलोयपण्णत्ति ४।५४१-४३ । ४. आदिपुराण
२५।२८७ । ५. विविध तीर्थकल्प, पृष्ठ २७ । ६. पासनाहचरिउ १५।१२ ।