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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ देवताओंकी मूर्तियाँ प्रचुरतासे बनने लगीं। गुप्त-कालके पश्चात् कलचुरि-प्रतिहार और मौखरी युगमें इन देवताओंका महत्त्व बढ़ गया। इनकी स्वतन्त्र मूर्तियाँ तो बनने ही लगीं, किन्तु इनके शीर्षपर तीर्थंकर प्रतिमाएँ बनानेका प्रचलन भी चल निकला। शासन-देवताओंके प्रभावसे प्रतिष्ठा पाठोंके रचयिता भी अछूते नहीं रहे। पं. आशाधर जीने प्रतिमाका लक्षण करते हुए स्पष्ट रूपसे कहा-रौद्रादिदोषनिर्मुक्तं प्रातिहा?कयक्षयुत्' अर्थात् रौद्र आदि बारह दोषोंसे रहित हो, अशोक वृक्षादि प्रातिहार्योंसे युक्त हो तथा दोनों ओर जिसके यक्षयक्षी हों। श्री ठक्कुरफेरु ने दिगम्बर परम्परा के अनुसार 'वास्तुसार प्रकरण में तीर्थंकरोंके सेवक इन यक्ष-यक्षियों का परिचय इस प्रकार दिया है १. ऋषभदेव-गोमुख यक्ष और चक्रेश्वरी ( अप्रतिहतचक्रा ) यक्षी। गोमुख यक्ष-स्वर्ण जैसी कान्ति, गाय जैसा मुख, वृषभकी सवारी, मस्तकके ऊपर धर्मचक्र, चार भुजा। दायें हाथमें माला, एक दायाँ हाथ वरद मुद्रामें तथा बायें हाथोंमें परसु और बिजौरा। चक्रेश्वरी-स्वर्ण वर्ण, कमलपर विराजमान, गरुड़का वाहन, चार भुजावाली, ऊपरके दोनों हाथोंमें चक्र तथा नीचेके बायें हाथमें बिजौरा और दायाँ हाथ वरद मुद्रामें । यह देवी ८, १२, १६, २०, २४ भुजाओंवाली भी मिलती है। २. अजितनाथ-महायक्ष यक्ष और अजिता ( रोहिणी ) यक्षी। महायक्ष यक्ष-स्वर्ण वर्ण, हाथीकी सवारी, ४ या ८ भुजावाला, चार मुखवाला, बायें हाथोंमें चक्र, त्रिशूल, कमल, अंकुश तथा दायें हाथोंमें तलवार, दण्ड, फरसी और एक हाथ वरद मुद्रामें। अजिता ( रोहिणी ) देवी-स्वर्णकान्ति, लोहासनपर आसीन, चार भुजाएँ। एक हाथमें शंख, दूसरेमें चक्र, तीसरा और चौथा अभय और वरद मुद्रामें। ३. सम्भवनाथ-त्रिमुख यक्ष और प्रज्ञप्ति ( नम्रा ) यक्षी। त्रिमुख यक्ष-कृष्ण वर्ण, वाहन मयूर, तीन मुख, तीन-तीन नेत्र, छह भुजाएँ, बायें हाथों में चक्र, तलवार, अंकुश और दायें हाथोंमें दण्ड, त्रिशूल, तेजधारवाली कैंची। प्रज्ञप्ति (नम्रा)-श्वेत वर्ण, पक्षीका वाहन, छह भुजाएँ, हाथोंमें क्रमशः अर्धचन्द्र, फरसी, फल, तलवार और ईढ़ी।' दायाँ एक हाथ वरदान मुद्रामें। ४. अभिनन्दननाथ-यक्षेश्वर यक्ष और वज्रशृंखला ( दुरितारी ) यक्षी। यक्षेश्वर यक्ष-कृष्ण वर्ण, हाथीकी सवारी, चार भुजाएँ, बायें हाथोंमें धनुष और ढाल तथा दायें हाथोंमें बाण और तलवार। वज्रशृंखला ( दुरितारी )-स्वर्ण जैसी कान्ति, हंसकी सवारी, चार भुजाएँ। हाथोंमें नागपाश, बिजौरा और माला । दायाँ एक हाथ वरदान मुद्रा में । ५. सुमतिनाथ-तुम्बरु यक्ष और पुरुषदत्ता ( खड्गवरा ) यक्षी। तुम्बरु यक्ष-कृष्ण वर्ण, गरुड़की सवारी, सर्पको जनेऊकी भाँति लपेटे, चार भुजाएँ, ऊपरके दोनों हाथोंमें सर्प, नीचेका दायाँ हाथ वरद मुद्रामें और बायें हाथ में फल । १. प्रतिष्ठा तिलकमें "पिंडी' लिखा है। अनेकार्थ कोषमें इष्टीका अर्थ तुंबड़ी किया है।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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