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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ पभोसा-यहाँ पर्वतकी एक शिलापर चार प्रतिमाएं उकेरी हुई हैं, जो सम्भवतः ईसा पूर्व प्रथम-द्वितीय शताब्दीकी हैं। अयोध्या-कटरा मुहल्लाके दिगम्बर जैन मन्दिरमें वेदी नं० २ में जो मुख्य प्रतिमा विराजमान है, वह संवत् १२२४ की है। त्रिलोकपुर-नेमिनाथ मन्दिरमें मूलनायक भगवान् नेमिनाथकी कृष्णवर्णकी प्रतिमा संवत् ११९७ की है। ___ आगरा-मोतीकटराके दिगम्बर जैन बड़ा मन्दिरमें मूलनायक भगवान् सम्भवनाथकी प्रतिमा संवत् ११४७ की है। इसके अतिरिक्त संवत् १२७२ की कई प्रतिमाएँ हैं। बड़ागांव में एक मूर्ति संवत् ११२७ की है तथा हस्तिनापुरमें शान्तिनाथ तीर्थंकरकी प्रतिमा संवत् १२३७ की है देवगढ़-की तीर्थंकर मूर्तियोंमें गुप्तकालसे लेकर आधुनिककालतककी मूर्तियाँ मिलती दिल्ली-के नया मन्दिर और सेठके कूचा मन्दिरमें संवत् १२५३ को प्रतिमाएँ विराजमान मन्दिरोंके अतिरिक्त बनारस कला भवन, लखनऊ, सारनाथ, मथुरा और दिल्लीके संग्रहालयोंमें ईसा पूर्व चौथी शताब्दीतककी मूर्तियाँ विद्यमान हैं। मूर्तियोंमें विविध प्रकारकी तीर्थंकर मूर्तियाँ मिलती है, जैसे सर्वतोभद्रिका, द्विमूर्तिकाएँ, त्रिमूर्तिकाएँ, चौबीस प्रतिमाएँ, नन्दीश्वर द्वीपकी ५२ प्रतिमाएँ, सहस्रकूट चैत्यालय आदि । विविध शैलीकी जटावाली पंचफणवाली, सप्तफणवाली, सहस्रफणवाली, सर्पासनवाली, नीचेसे ऊपरतक सर्पकी कुण्डलीवाली मूर्तियाँ भी मिलती हैं । ऋषभदेवके साथ मुनि भरत-बाहुबलीकी मूर्तियाँ भी मिलती हैं और नेमिनाथके साथ गृहस्थ दशामें कृष्ण-बलभद्रकी भी मूर्तियाँ मिली हैं। उत्तरप्रदेशमें यों तो सभी तीर्थक्षेत्रोंपर प्राचीन और कलापूर्ण प्रतिमाएं मिलती हैं, किन्तु दो स्थानोंका अत्यधिक महत्त्व है-मथरा और देवगढ। मथरामें पूरातन कालको जितनी जैन कला-सामग्री भूगर्भसे उपलब्ध हुई है, उतनी भारत भरमें अन्यत्र कहींसे प्राप्त नहीं हुई । इसी प्रकार देवगढ़में जितना कला-वैविध्य और मूर्तियोंका बाहुल्य विद्यमान है, उतना भारत भर में अन्यत्र कहीं नहीं है। यहाँ तीर्थंकर माता, पाँच परमेष्ठी और शासन देवियोंकी पृथक् मूर्तियाँ भी विपुल संख्यामें मिलती हैं। २. शासन देवताओंको मूर्तियाँ-चौबीस तीर्थंकरोंमें प्रत्येकके सेवक एक यक्ष और एक यक्षिणी होते हैं। ये शासन देवता कहलाते हैं। तीर्थंकरोंके साथ भी इन देवताओंकी मूर्तियाँ मिलती हैं और देवगढ़, काकन्दी, मथरा, प्रयाग, वाराणसी आदि कई स्थानोंपर यक्ष और यक्षिणीकी अलग मूर्तियाँ भी मिलती हैं । कहीं देवी-मूर्ति चतुर्भुजी मिलती है, कहीं दोभुजी । देवगढ़ आदिमें अधिक भुजावाली भी मिलती हैं। इन यक्ष-यक्षिणियोंका रूप, वाहन, आसन, मुद्रा, भुजाएँ, हाथोंमें लिये हुए पदार्थ आदिका जैन शास्त्रोंमें विस्तृत वर्णन मिलता है। उसे समझे बिना उन्हें हन्दू या बौद्ध देवी-देवता माननेकी भूल हो जाती है, जैसी कि श्रावस्ती, काकन्दी, ककुभग्राममें हुई है। यक्षिणियोंमें अम्बिका, पद्मावती और चक्रेश्वरीकी मूर्तियाँ सर्वाधिक मिलती हैं। ___३. आयागपट्ट आदि-इस श्रेणी में हम स्तूप, आयागपट्ट, चैत्यवृक्ष, सर्वार्थवृक्ष और धर्मचक्रको लेंगे।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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