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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ काकन्दी-यहाँ भगवान् नेमिनाथकी सवा दो फूट ऊँची कृष्ण वर्णकी एक खड्गासन प्रतिमा है। यह एक शिलाफलकपर उत्कीर्ण है। उसके परिकरमें इन्द्र, देव, देवियाँ आदि हैं। एक भूरे पाषाणको आठ इंची देवी-मूर्ति भूगर्भसे प्राप्त हुई थी। यह अम्बिकाकी मूर्ति है। ये दोनों ही मूर्तियाँ गुप्तकाल अथवा उससे कुछ पूर्वकी हैं। यहाँसे निकली कुछ मूर्तियाँ गोरखपुरके जैन मन्दिरमें भी रखी हैं। ककुभग्राम–यहाँ एक टूटे-फूटे कमरेमें एक अलमारीमें पांच फुटकी कायोत्सर्गासन एक तीर्थंकर-प्रतिमा रखी हुई है। मूर्ति खण्डित है। इस कमरेके सामने चबूतरेपर एक चार फुट अवगाहनावाली मूर्ति पड़ी हुई है। ये दोनों ही मूर्तियाँ गुप्तकालकी लगती हैं। प्रयाग–यहाँ किलेकी खदाईमें १५०-२०० वर्ष पहले कुछ जैन मतियाँ उपलब्ध हई थीं, जो यहाँ चाहचन्द मुहल्लेके पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर और पंचायती दि० जैन मन्दिर में विराजमान हैं। इनमें पाषाण-मूर्तियाँ तीर्थंकरोंकी और धातु-मूर्तियाँ प्रायः शासन देवियोंकी हैं। तीर्थंकर मूर्तियोंपर कोई अभिलेख नहीं है। इस प्रकारकी तीर्थंकर मूर्तियोंकी संख्या दोनों मन्दिरोंमें तेरह हैं। ये सभी मूर्तियाँ शैली, विन्यास, भावाभिव्यंजना और पाषाणको देखकर लगभग एक ही कालकी लगती हैं । इनका निर्माणकाल ७-८वीं शताब्दी लगता है। देवी-मूर्तियाँ ५वींसे १९वीं शताब्दीतककी हैं। यहाँके संग्रहालयमें कुछ जैन मूर्तियाँ संग्रहीत हैं जो विभिन्न स्थानोंसे प्राप्त हुई हैं । ये मूर्तियाँ छठीसे बारहवीं शताब्दीतककी हैं। इनमें सर्वाधिक उल्लेखनीय है भगवान् चन्द्रप्रभ-प्रतिमा। यह पद्मासन है और भूरे पाषाणकी है । इसका आकार पौने चार फुट है । यह छठी शताब्दीकी मानी गयी है । यहाँ दो मूर्तियाँ दसवीं शताब्दीकी हैं, चार मूर्तियाँ बारहवीं शताब्दीकी हैं । यहाँ अम्बिकाकी अत्यन्त मनोरम मूर्ति है, जो ६ फुट लम्बे और ३ फुट चौड़े फलकपर बनी हुई है । इस फलकमें अम्बिकाके अतिरिक्त २३ शासन देवियोंकी भी मूर्तियाँ अंकित हैं। शौरीपुर-यहाँके मन्दिरोंमें चार तथा पंचमढ़ीमें तीन मूर्तियाँ काफी प्राचीन लगती हैं। संभवतः ये १०वीं शताब्दीकी होंगी। कुछ मूर्तियाँ अभिलिखित भी हैं, जिनके अनुसार वे ११-१२वीं शताब्दीकी हैं। यहाँसे उत्खननमें कुछ मूर्तियाँ निकली थीं जो लखनऊके संग्रहालयमें रखी हुई हैं। वटेश्वरमें भी ५-६ मूर्तियाँ ११-१२वीं शताब्दीकी विराजमान हैं। यहाँ मूलनायक भगवान् अजितनाथकी प्रतिमा अत्यन्त सौम्य और प्रभावक है। इसकी प्रतिष्ठा आल्हा-ऊदलके पिता जल्हणने महोबामें संवत् १२२४ में करायी थी। मथुरा-चौरासी क्षेत्रपर मूलनायक भगवान् अजितनाथकी प्रतिमा संवत् १४९४ की है। यह अत्यन्त प्रशान्त और सौम्य है। भगवान् पार्श्वनाथकी श्वेत वर्ण, पौने दो फुट अवगाहनाकी एक पद्मासन-प्रतिमा संवत् ११६८ ( सन् १११२ ) की है। भूगर्भसे प्राप्त एक मूर्तिपद संवत् १८९ अंकित है। ___मथुराके विभिन्न स्थानों-जैसे कंकाली टीला, सप्तर्षि टीला, कृष्ण जन्म-भूमि आदिसे उत्खनन द्वारा विपुल जैन सामग्री प्राप्त हुई है। कुछ मूर्तियाँ ईसवी सन्से भी प्राचीन हैं और कई मूर्तियाँ शक-कुषाण कालकी हैं। ऐसी मूर्तियोंमे भगवान् मुनिसुव्रतनाथ, आदिनाथ, नेमिनाथ, अरनाथ, शान्तिनाथ आदि तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं। ___ चन्दवार-मन्दिरमें ५ प्रतिमाएँ संवत् १०५३ और १०५६ की हैं। यहाँको कुछ प्रतिमाएँ फिरोजाबादमें 'छोटी-छिपैटी'के मन्दिर में विराजमान हैं। वे भी लगभग इसी कालकी प्रतीत होती हैं।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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