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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ अयोध्यामें भगवान् ऋषभदेव, भगवान् अजितनाथ, भगवान् अभिनन्दननाथ, भगवान् सुमतिनाथ और भगवान् अनन्तनाथका जन्म हुआ। वर्तमान भूमि मापके अनुसार अयोध्यासे २४ कि. मी. दूर रतनपुरीमें भगवान् धर्मनाथ उत्पन्न हुए। अयोध्यासे १०९ कि. मी. दूर श्रावस्तीमें भगवान् सम्भवनाथने जन्म लिया । देवरियासे १४ कि. मी. दूर काकन्दीमें भगवान पुष्पदन्तका जन्म हुआ। काशी भगवान् सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथकी जन्मभूमि है। काशीसे २० कि. मी. दूर चन्द्रपुरी भगवान् चन्द्रप्रभ और ६ कि. मी. दूर सिंहपुरी भगवान् श्रेयांसनाथके जन्मसे पवित्र हुई। इलाहाबादसे ६० कि. मी. दूर कौशाम्बीमें भगवान् पद्मप्रभुका जन्म हुआ। हस्तिानापुर में भगवान् शान्तिनाथ, भगवान् कुन्थुनाथ और भगवान् अरनाथका जन्म हुआ। ये तीनों चक्रवर्ती भी थे। कम्पिला भगवान् विमलनाथकी तथा आगरासे ७५ कि. मी. दूर शौरीपुर भगवान् नेमिनाथकी जन्मभूमि है। इन तीर्थंकरोंके समान अन्य तीर्थकरोंका भी पुण्य विहार और समवशरण उत्तरप्रदेश में होता रहा है। उनके लोकातिशायी पावन चरणोंकी धुलि इस प्रदेशके कण-कण में व्याप्त है। इसलिए यहाँका कण-कण पावन तीर्थ है। उत्तरप्रदेशके समुन्नत भालकी तरह गर्वोन्नत हिमालयमें भगवान् ऋषभदेव, महामुनि भरत, महायोगी बाहुबली, आत्मपुरुषार्थी भगीरथ, महाबाहु बाली आदि असंख्य मुनियोंने सम्पूर्ण गंगा-तटपर, हिमालयकी कठोर शिलाओंपर, उत्तुंग हिमशिखरोंपर सर्वत्र विहार करके, तपस्या करके, विमल केवलज्ञान प्राप्त करके, दिव्य उपदेश देकर और निर्वाण-लाभ द्वारा इस विस्तृत पर्वत शृंखलाको ही तीर्थधाम बनाया था। आज भी वहाँका हर कंकड़ इन महामुनियोंकी चरण-रजको अपने भीतर संजोये हुए है, इसलिए वह वन्द्य पवित्रधाम हो गया है। इतिहास-आदिकालसे लेकर यह प्रदेश विभिन्न राजवंशोंका शासनकेन्द्र रहा । गंगा, यमुना, सरस्वती, सरय , घाघरा, गोमती आदि नदियोंसे सिंचित इस प्रदेशकी मिट्टी अत्यन्त उपजाऊ रही है। यहाँकी मिट्टी बीज निगलकर सोना उगलती है। इसलिए यह प्रदेश राजनीतिक षड्यन्त्रोंका केन्द्र रहा है और देश, विदेशके अनेक राजवंशोंको अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। महाभारत युद्धके सर्वग्रासी परिणामोंको भोगकर यह प्रदेश बहत लम्बे कालतक निर्बल रहा। उसके पश्चात् इसपर शिशुनाग, नन्द, मौर्य, शुंग, शक, कुषाण, गुप्त, नाग, मौखरी, प्रतिहार, भार, गाहड़वाल, मुसलिम, अँगरेज आदि वंशों और जातियोंका शासन रहा। भारशिव, वाकाटक, चन्देल, कलचुरी, कच्छप प्रायः मुसलमानोंके आक्रमण और शासनकालसे पहलेतक विशेषतः मौर्य, कुषाण, गुप्तवंश, प्रतिहार और गाहड़वाल वंशोंके शासनकालमें उत्तरप्रदेशमें जैन मन्दिरों, मूर्तियों, आयागपट्टों, स्तूपों आदिका विपुल संख्यामें निर्माण हुआ। आर्थिक दृष्टिसे भी यह समृद्धि-युग कहा जा सकता है। . - इसके पश्चात् धर्मोन्मादसे ग्रस्त होकर कुछ लोगोंने यहाँ न केवल धन-सम्पदाको ही लूटा, बल्कि उन्होंने संस्कृति और कलाके केन्द्रोंका भी विध्वंस किया। छठी शताब्दीमें हूण सरदार मिहिरकुलने मथुराका विध्वंस किया। इस विनाश लीलामें, लगता है, मथुराके जैन मन्दिर और स्तूप भी नष्ट कर दिये गये। महमूद गजनवीने भारतपर अपने नौवें अभियान सन् १०१७ में मथुरापर भयंकर आक्रमण किया। उसके एक कर्मचारी मीर मन्शी अलउत्वीने 'तारीखे यामिनी' में लिखा है कि सुलतानने इस शहर में एक ऐसी इमारत देखी जिसे यहाँके लोग मनुष्योंकी रचना न बताकर देवताओंकी कृति बताते थे। एक मन्दिरको देखकर तो सुलतानने यहाँतक कहा कि यदि कोई शख्स इस प्रकारकी इमारत बनवाना चाहे तो दस करोड़
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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