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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ द्वारा अपना जीवन-यापन करना प्रारम्भ किया। कृषि-उद्योगके आश्रयसे ही युगके आरम्भमें मानवीय संस्कृतिका ढाँचा निर्मित एवं विकसित हुआ। भोगयुगकी समाप्तिपर कर्मयुगका प्रारम्भ यहीं हुआ जिसका अर्थ था कि सभ्यता और संस्कृतिका सोना कर्मकी आगमें पड़कर ही आभामय बनता है । भोग तो उसका मैल है । कर्म स्फूर्त संस्कृति ही मानवकी श्रेष्ठ संस्कृति है। ___वंश स्थापना-भगवान् ऋषभदेव इक्ष्वाकु वंशी थे। उनके दो प्रतापी पौत्रों-भरतपुत्र अर्ककीर्ति और बाहुबलीपुत्र सोमयशसे क्रमशः सूर्यवंश और चन्द्रवंशका प्रादुर्भाव हुआ। अपने राजनीतिक वर्चस्व और प्रभावके कारण सारे संसारमें इन दोनों ही राजवंशोंकी बड़ी ख्याति हुई। इन दोनों ही राजवंशोंने उत्तरप्रदेशमें अपने शक्तिशाली राज्य स्थापित किये। समाजमें अनुशासन और व्यवस्था बनानेके लिए भगवानने हरि, अकम्पन, काश्यप और सोमप्रभ नामक चार क्षत्रियोंको महामण्डलेश्वर बनाया और उन चारोंसे क्रमशः हरिवंश, नाथवंश, उग्रवंश और कुरुवंश चले । मूलवंश इक्ष्वाकुवंश था, जो भगवान् ऋषभदेवसे चला था। शेष वंश इक्ष्वाकुवंशकी ही शाखा-प्रशाखा थे। त्रेसठ शलाकापुरुषों से कई तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलभद्र, नारायण आदि इन्हीं वंशोंमें उत्पन्न हुए। तीर्थंकरोंमें पार्श्वनाथ उग्रवंशमें, मुनिसुव्रतनाथ और नेमिनाथ हरिवंशमें, धर्मनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ कुरुवंशमें तथा शेष तीर्थंकर इक्ष्वाकुवंशमें उत्पन्न हुए। - चक्रवर्तियोंमेंसे भरत, सगर, मघवा, सुभौम, पद्म, हरिषेण और जयसेन इक्ष्वाकुवंशमें, सनत्कुमार सूर्यवंशमें, शान्तिनाथ सोमवंशमें, कुन्थुनाथ और अरनाथ कुरुवंशमें उत्पन्न हुए थे। भरत चक्रवर्ती भगवान् ऋषभदेवके समय और तीर्थमें हुए। सगर भगवान् अजितनाथके तीर्थमें, मघवा और सनत्कुमार धर्मनाथ और शान्तिनाथके अन्तरालमें, सुभौम भगवान् अरनाथ और मल्लिनाथके अन्तरालमें, पद्म भगवान् मल्लिनाथ और मुनिसुव्रतनाथके अन्तरालमें, हरिषेण भगवान् मुनिसुव्रतनाथ और नमिनाथके मध्यमें, जयसेन भगवान् नमिनाथ और नेमिनाथके अन्तरालमें और ब्रह्मदत्त भगवान् नेमिनाथ और पार्श्वनाथके मध्यवर्ती कालमें हुए । शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ चक्रवर्ती भी थे और क्रमशः १६वें, १७, १८वें तीर्थंकर भी। चक्रवतियों के समान बलभद्र. नारायण और प्रतिनारायण निम्नलिखित तीर्थंकरोंके तीर्थमें हुए थे । ( यहाँ जो नाम दिये जा रहे हैं, वे क्रमशः बलभद्र, नारायण और प्रतिनारायणके समझने चाहिए ) १. विजय, त्रिपृष्ठ-अश्वग्रीव भगवान् श्रेयांसनाथके तीर्थमें २. अचल, द्विपृष्ठ-तारक भगवान् वासुपूज्यके तीर्थमें ३. धर्म, स्वयम्भू–मेरक भगवान् विमलनाथके तीर्थमें ४. सुप्रभ, पुरुषोत्तम-मधुकैटभ । भगवान् अनन्तनाथके समयमें ५. सुदर्शन, पुरुषसिंह-निशुम्भ भगवान् धर्मनाथके तीर्थमें ६. नन्दी, पुरुष पुण्डरीक-बलि भगवान् अरनाथके तीर्थमें . ७. नन्दिमित्र, पुरुषदत्त-प्रहरण भगवान् मल्लिनाथके तीर्थमें ८. राम, लक्ष्मण-रावण भगवान मनिसुव्रतनाथके तीर्थमें ९. पद्म, कृष्ण-जरासन्ध भगवान् नेमिनाथके समयमें तीर्थंकरोंकी लीलाभूमि-पौराणिक और सांस्कृतिक साहित्यके अनुशीलनसे यह निष्कर्ष निकलता है कि १८ तीर्थंकरोंके गर्भ, जन्म, दीक्षा और ज्ञान कल्याणक उत्तरप्रदेशमें हुए । भगवान् ऋषभदेवका निर्वाण कल्याणक भी इसी प्रदेशमें हुआ था। तारक
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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