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भारत के दिगम्बर जैन तीर्थं
पूर्ति के साधन असीम थे । अतः आवश्यकताओंकी पूर्ति कल्पवृक्षोंसे सरलतासे हो जाती थी । मानव विकासका यह उषा काल था । इस कालको भोग-युग कहा जाता है । और उस समयके मानवकी संस्कृतिको हम वन्य-संस्कृति कह सकते हैं । आधुनिक भाषामें इसे पूर्व पाषाण युग कहा जा सकता है।
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कुलकर - प्रकृतिमें तेजीसे परिवर्तन हो रहे थे । कल्पवृक्षोंकी संख्या घटती जा रही थी । मनुष्योंके समक्ष नित नयी समस्याएँ और उलझनें उत्पन्न हो रही थीं। उस समय जिन महान् पुरुषोंने अपने विशेष ज्ञान और सूझ-बूझसे मानवकी उन समस्याओं और उलझनों को सुलझाया, उन्हें कुलकर कहा जाता है । मानव समाजके नियामक और मार्गदर्शक कुलकर कहलाते हैं। उन्हें 'मनु' भी कहा जाता है । सम्भवतः मनुकी सन्तान होनेके कारण ही मानव या मनुष्य नाम पड़ा ! कुलकर दक्षिण भारत में उत्पन्न हुए थे। तबतक नगरों और ग्रामोंका निर्माण नहीं हुआ था । वे अन्य मानवोंके समान ही रहते थे । किन्तु अपने विशिष्ट ज्ञानके कारण उन्होंने तत्कालीन मानव समाजका नेतृत्व किया और मानव-जातिके हितके अनेक कार्य किये। सब कुलकर चौदह हुए थे, जिनके नाम इस प्रकार हैं
१ – पहले कुलकरका नाम प्रतिश्रुति था । एक दिन पूर्णमासीकी सन्ध्याको पश्चिममें सूर्य और पूर्व में चन्द्र दिखाई पड़ा। उन्हें देखकर मनुष्य भयभीत हो गये । इससे पहले ज्योतिरंग नामक कल्पवृक्षोंकी तेजस्वी ज्योतिके कारण सूर्य और चन्द्रकी आभा धूमिल लगती थी । किन्तु जब ज्योतिरंग कल्पवृक्षोंकी ज्योति मन्द पड़ने लगी, तब सूर्य और चन्द्र दृष्टिमें आये । मनुष्य भयभीत होकर प्रतिश्रुतिके निकट पहुँचे। उन्होंने बताया- 'मनुष्यो ! भयका कोई कारण नहीं है । ये सूर्य और चन्द्र ज्योतिष्क मण्डलके तेजस्वी ग्रह हैं । इनसे तुम्हारा कोई अनिष्ट नहीं होगा ।' मनुष्य सुनकर आश्वस्त हो गये ।
२ - प्रति तिके पुत्र सन्मति द्वितीय कुलकर हुए । इन्होंने सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, ग्रह आदिका स्पष्टीकरण किया ।
३ - सन्मति के पुत्र क्षेमंकर हुए । इनके समयमें सिंह - व्याघ्र आदि हिंस्र पशुओंसे मनुष्यों को भय उत्पन्न होने लगा । इन्होंने उसका निराकरण बताकर जनताको निर्भय किया ।
४— क्षेमंकरके पुत्र क्षेमन्धर हुए। उन्होंने दुष्ट जानवरोंके लिए लाठी आदिका प्रयोग बताया । सम्भवतः शस्त्रों आदि रूपका आविष्कार इन्हीं के कालमें हुआ था ।
५ - क्षेमन्धरके पुत्र सीमंकर हुए। अब कल्पवृक्षोंकी संख्या बहुत कम हो गयी । उनको लेकर प्रजामें कलह होने लगा । तब इन्होंने प्रत्येक परिवार के लिए कल्पवृक्षोंकी सीमा नियत कर दी ।
६ – सीमंकरके पुत्र सीमन्धर हुए । इनके समयमें कल्पवृक्षोंका तेजीसे ह्रास होने लगा था । १. मानवकी उत्पत्ति और विकासको लेकर वैज्ञानिकोंने आदि मानव सभ्यता के विकासके कालको तीन भागों में विभाजित किया है - ( १ ) पूर्व पाषाण युग ( १ करोड़ वर्ष से ६ लाख वर्ष पूर्वतक ) इस. काल में मनुष्य प्रायः असभ्य वन्य जीवन व्यतीत करता था । ( २ ) पुरातन पाषाण युग - ( ६ लाख वर्ष पूर्व से १५ हजार वर्ष पूर्वतक ) इस कालमें ४-५ बड़े व्यापक बर्फीले तूफान आये । इस कारण इस युगको हिमयुग भी कहते हैं । किन्तु इसके अन्तिम चरण में ( लगभग ४०००० से १५००० वर्ष पूर्वतक ) मानव-सभ्यताका सहज विकास हुआ। (३) नव्य पाषाण युग -- ( ई. पूर्व १५००० वर्ष से ८००० वर्षतक ) इस काल में मानवकी सभ्यता और संस्कृतिने बड़े द्रुत वेगसे प्रगति की ।