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________________ परिशिष्ट-३ चन्द्रपुरी - सिंहपुरीसे चन्द्रपुरी १७ कि. मी. है। इस गाँवका नाम चन्द्रावती है जो वाराणसीगोरखपुर रोडपर सड़कसे हटकर २ कि. मी. दूर अवस्थित है। २ कि. मी. का यह मार्ग कच्चा है किन्तु सवारी चली जाती हैं। यहाँ भगवान् चन्द्रप्रभके गर्भ, जन्म, तप और ज्ञानकल्याणक हुए थे। जैन मन्दिर गंगाके तटपर स्थित है। यहाँ धर्मशाला भी बनी हुई है। काकन्दो वाराणसीसे देवरिया जाना चाहिए । वहाँसे टैक्सी आदि द्वारा काकन्दी जा सकते हैं । यह देवरिया-सलेमपुर मार्गपर १४ कि. मी. सड़क मार्गसे चलकर और १ मील कच्चा रास्ता पार करके काकन्दी क्षेत्र पहुंचते हैं। यहाँ भगवान् पुष्पदन्तके गर्भ और जन्म कल्याणक हुए थे। अभयघोष मुनिको यहींसे निर्वाण हुआ था। इस स्थानका वर्तमान नाम खुखुन्दू है। ककुभग्राम ___ इस स्थानको आजकल 'कहाऊँ' कहते हैं। यह काकन्दीसे १६ कि. मी. है। मार्ग कच्चा है। बस, जीप जा सकती हैं। यहाँ पुष्पदन्त भगवान्के तप और ज्ञान कल्याणक हुए थे। ___ यहाँ २४ फुट ऊँचा पाषाणका प्राचीन मानस्तम्भ है जो ई. सन् ४६० का है। स्तम्भमें नीचेके भागमें सवा दो फुट अवगाहनाकी पार्श्वनाथ प्रतिमा है तथा स्तम्भके शीर्षपर पाँच तीर्थंकर प्रतिमाएँ हैं। इसके निकट ही दो खण्डित जैन प्रतिमाएँ हैं जो गुप्तकालकी लगती हैं । पाबा ( नवीन ) कुछ लोग सठियाँव गाँवको पावा मानते हैं। यह देवरियासे कसिया ( कुशीनारा ) होते हुए ५६ कि. मी. है। यहाँ एक छोटा-सा गांव टीलों पर बसा हुआ है। चारों ओर टीले और खण्डहर दिखाई पड़ते हैं । अभी तक यहाँ कोई जैन मूर्ति या मन्दिर नहीं निकला है। देवगढ़ पावासे लौटकर कानपुर होते हुए झाँसी-ललितपुर रेल द्वारा पहुँचना चाहिए। ललितपुरसे बस द्वारा देवगढ़ ३२ कि. मी. है। पक्की सड़क है। मार्ग पहाड़ी घाटियोंमें होकर जाता है। यह क्षेत्र एक पहाड़ीपर है। उसके नीचे बेतवा नदी बहती है। पहाड़ीके नीचे दिगम्बर जैनधर्मशाला, साहू जैन म्यूजियम और दिगम्बर जैन मन्दिर है। इसके पास ही गुप्तकालका एक मन्दिर है, जिसे दशावतार मन्दिर कहते हैं। तथा वनविभागका विश्रामगृह है। पहाड़ीपर प्राचीन दुर्गकी दीवार है, जिसके पश्चिममें कुंजद्वार और पूर्वमें हाथी दरवाजा है। इस दीवारके बाद फिर एक दूसरी दीवार आती है। इसे दूसरा गेट कहते हैं। इसके भीतर ही जैन मन्दिर हैं। इस दीवारके भीतर भी एक दीवार है, जिसके दोनों ओर खण्डित-अखण्डित असंख्य-मूर्तियाँ हैं। यहाँ छोटे-बड़े कुल ४० जैन मन्दिर हैं । २९ पाषाण स्तम्भ हैं तथा लगभग ५०० अभिलेख हैं। यहाँकी मूर्तियाँ, मन्दिर और स्तम्भ शिल्प-कलाके उत्कृष्ट उदाहरण हैं। यहाँ पंच परमेष्ठियों, शासन देवताओं, देव-देवियों, तीर्थंकर माता, मंगल चिह्नों आदिका अंकन बहुत सुन्दर हुआ है। यह एक अतिशय क्षेत्र है । कहते हैं, जब कभी रात्रिमें देव अब भी यहाँ पूजनके लिए आते हैं। ऐसी भी किंवदन्ती है कि यहाँ भगवान् शान्तिनाथके दर्शन करनेसे मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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