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________________ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ओर नहरके किनारे कच्चे मार्गसे ६ कि. मी. दूर त्रिलोकपुर गाँव है। विन्दौरा स्टेशनसे ५ कि. मी. पड़ता है। साइकिल द्वारा या पैदल जा सकते हैं। यहाँ दो दिगम्बर जैन मन्दिर हैं। नेमिनाथ भगवान्का मन्दिर अतिशय क्षेत्र कहलाता है। कहते हैं वहाँ जाकर लोगोंकी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं। श्रावस्ती त्रिलोकपुरसे बाराबंकी आकर वहाँसे रेल या बस द्वारा गौण्डा-बलरामपुर होकर श्रावस्ती आना चाहिए। यहाँ भगवान् सम्भवनाथके गर्भ, जन्म, तप और ज्ञानकल्याणक हुए थे। यहाँसे मुनि मृगध्वज, मुनि नागदत्त मुक्त हुए थे। जैननरेश सुदृढ़ध्वज अथवा सुहलदेवने महमूद गजनवीके भानजे और सिपहसालार सैयद सालार मसऊद गाजीको यहीं परास्त किया था। अलाउद्दीन खिलजीने यहाँके मन्दिरों, मूर्तियों, विहारों और स्तूपोंको तोड़कर खण्डहर बना दिया। भगवान् सम्भवनाथका प्राचीन मन्दिर जीर्णशीर्ण दशामें वहाँ अब भी खड़ा है। आजकल यह सोमनाथका मन्दिर कहलाता है। कहा जाता है कि इसके निकट अठारह जैन मन्दिर थे, जो अब खण्डहरोंके रूपमें पड़े हुए हैं। क्षेत्रपर नवीन मन्दिर और धर्मशाला बन गये हैं। वाराणसी यहाँ अयोध्यासे भी जा सकते हैं और चाहें तो कानपुरसे वाराणसी, लखनऊ, इलाहाबाद, अयोध्या और श्रावस्ती जा सकते हैं तथा श्रावस्तीसे सीधे गोरखपुर होते हुए काकन्दी, ककुभग्राम जा सकते हैं। वाराणसीमें दो तीर्थंकरों-सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथके गर्भ, जन्म, तप और ज्ञानकल्याणक हुए थे। भेलूपुरामें पार्श्वनाथ तथा भदैनीघाटमें सुपार्श्वनाथका जन्म हुआ था। भेलूपुरामें एक मन्दिर और धर्मशाला दिगम्बर और श्वेताम्बर समाजकी सम्मिलित हैं। एक ही वेदीपर दिगम्बर प्रतिमाएँ भी हैं और श्वेताम्बर प्रतिमाएँ भी हैं। इसी प्रकार धर्मशालामें भी दोनों ठहर सकते हैं। दोनों ही समाजोंके कार्यालय यहाँपर हैं। इस मन्दिरके अलावा यहाँ दो मन्दिर दिगम्बर समाजके हैं। सम्मिलित मन्दिरके बगलमें जो दिगम्बर मन्दिर है, उसमें कई प्रतिमाएं लगभग एक हजार वर्ष प्राचीन हैं। बाहर जो दिगम्बर मन्दिर है, उसमें वेदीपर सोनेका काम, दीवालोंके चित्र तथा पद्मावती देवीकी मूर्ति विशेष उल्लेखनीय है। भदैनीघाटमें स्याद्वाद महाविद्यालयका भवन है। उसके ऊपर सुपार्श्वनाथ भगवान्का मन्दिर है। मन्दिरके नीचे गंगा बह रही है। इसके पास ही छेदीलालका मन्दिर है। कुछ लोग इसे सुपार्श्वनाथकी जन्मभूमि मानते हैं। मैदागिनमें दिगम्बर जैन धर्मशाला है। यहाँ ठहरनेकी अच्छी सुविधा है। धर्मशालाके बीचमें मन्दिर भी बना हुआ है। सिंहपुरी वाराणसीसे सड़क मार्ग द्वारा ६ कि. मी. सारनाथ है। वाराणसीसे मोटर, टैक्सी आदि बराबर मिलती हैं। यहाँ भगवान् श्रेयान्सनाथके गर्भ, जन्म, तप और ज्ञानकल्याणक हुए थे। मन्दिरके बाहर ही एक स्तूप बना हुआ है। कुछ लोग इसे सम्राट अशोकका बनाया हुआ मानते हैं और कुछ सम्राट् सम्प्रति द्वारा निर्मित मानते हैं।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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