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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
मानस्तम्भ है। मन्दिर में भगवान् शान्तिनाथकी मूलनायक प्रतिमा है। इसके पीछे एक मन्दिर और है । उसमें लगभग ६ फुटकी भगवान् शान्तिनाथकी खड्गासन प्रतिमा दर्शनीय है।
क्षेत्रसे ३ मील दूरपर भगवान् शान्तिनाथ, एक कम्पाउण्डमें भगवान् कुन्थुनाथ अरौ अरहनाथ तथा उससे आगे भगवान् मल्लिनाथकी टोंके हैं। क्षेत्रसे टोंकों तक कच्चा मार्ग है। ताँगे द्वारा जा सकते हैं।
___ क्षेत्रपर ठहरनेके लिए कई धर्मशालाएँ बनी हुई हैं। क्षेत्रपर दिगम्बर जैन गुरुकुल, और मुमुक्षु आश्रम स्थित हैं। क्षेत्रका वार्षिक मेला कार्तिकी अष्टाह्निकामें होता है। फाल्गुनी अष्टाह्निका और ज्येष्ठ कृष्णा १४ को छोटे मेले होते हैं। श्रीनगर
__ हस्तिनापुरसे मेरठ वापस आकर मुरादाबाद जाना चाहिए। वहाँसे मुरादाबाद-हरिद्वार लाइनके नजीबाबाद स्टेशनपर उतरकर बस द्वारा कोटद्वार होते हए श्रीनगर १६० कि. मी. है ऋषिकेशसे श्रीनगर बस मार्गसे १०७ कि. मी. पड़ता है। जैन मन्दिर अलकनन्दा नदीके तटपर अवस्थित है। ठहरनेके लिए जैन धर्मशाला बनी हुई है। यहाँ भगवान पार्श्वनाथकी एक प्रतिमा है, जिसके चमत्कारोंके बारेमें अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कैलास और बदरीनाथ
श्रीनगरसे बस द्वारा रुद्र प्रयाग होते हुए केदारनाथ, बदरीनाथ जा सकते हैं। पक्की सड़क है।
बदरीनाथकी मूर्ति वस्तुतः भगवान् ऋषभदेव की मूर्ति है। यह दो भुजावाली पद्मासन प्रतिमा है। दो भुजाएँ नकली लगायी हुई हैं। न्हवनके पश्चात् मूर्तिको अलंकृत किया जाता है। तब मन्दिरके पट खोले जाते हैं और तब 'निर्वाण-दर्शन' कराया जाता है। बोली लेनेपर कुछ लोगोंको न्हवनके समय दिगम्बर मूर्तिके दर्शनकी अनुमति प्राप्त हो जाती है।
यहाँ भगवान ऋषभदेवने तपस्या की थी। नाभिराज और मरुदेवीने यहींपर तपस्या की थी। भगीरथने यहीं गंगाके किनारे तप किया था। उन्हींके नामपर गंगाकी एक धाराका नाम भागीरथी हो गया है।
बदरीनाथसे कैलास-यात्राका मार्ग आजकल बन्द है। बदरीनाथसे जोशीमठ होते हुए नीती घाटी ९४ कि. मी. है। यह भारतीय सीमाका अन्तिम गाँव है। इससे आगे होती गाँव ११ कि. मी. है। यहाँ चीनी सेनाकी चौकी है। इससे आगे कैलास तकका सारा प्रदेश चीनके आधिपत्य
में है।
अहिच्छत्र
बदरीनाथसे बस द्वारा ऋषिकेश लौटकर वहाँसे रेल द्वारा मुरादाबाद, मुरादाबादसे चन्दौसी और चन्दौसीसे आँवला स्टेशन जाना चाहिए। आँवला स्टेशनसे अहिच्छत्र १८ कि. मी. है। स्टेशनसे क्षेत्र तक जानेके लिए ताँगे मिलते हैं। इस क्षेत्रपर भगवान् पार्श्वनाथके ऊपर संवरदेवने उपसर्ग किया था। नागकुमार जातिके धरणेन्द्र और पद्मावतीने भगवान्के ऊपर सर्पफण फैला दिया और भगवान्को ऊपर उठा लिया। तभी भगवान्को केवलज्ञान हो गया। इन्द्र और देवोंने आकर भगवान्के केवलज्ञानकी पूजा की और समवसरणकी रचना की। भगवान्ने