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दिल्ली
___ यह बहुत प्राचीन शहर है। मुगलकालसे यह भारतको राजधानी रही है। आजकल भी यह भारतको राजधानी है। केन्द्रीय सरकारका सचिवालय, लोकसभा, राज्यसभा, सुप्रीमकोर्ट, सेनाका मुख्यालय यहींपर है। भारतको स्वतन्त्रताके बाद दिल्लीका जितना विकास हुआ है, उतना देशके किसी नगरका नहीं हुआ। अब तो यह व्यापारिक केन्द्र भी हो गयी है। यहाँ जैनोंकी संख्या लगभग एक लाख होगी। प्रायः सभी महल्लों और कॉलोनियोंमें दिगम्बर जैन मन्दिर हैं। मुख्य मन्दिर इस प्रकार हैं : लाल मन्दिर (लाल किलेके सामने चाँदनी चौकमें, नया मन्दिर धर्मपुरा), दिगम्बर जैन मन्दिर सेठका कुँचा, पंचायती मन्दिर, मेरु मन्दिर और मसजिद खजूर, वैदवाड़ा, पहाड़ी धीरज, दिल्ली गेट, दरियागंज, जयसिंगपुराके मन्दिर। यहाँ अखिल भारतीय दिगम्बर जैन परिषद्, परिषद् परीक्षा बोर्ड, दिगम्बर जैन भगवान् महावीर २५००वाँ निर्वाण महोत्सव समितिके कार्यालय हैं। भारतवर्षीय जैन बाल आश्रम, और वीर सेवा मन्दिरके भवन यहींपर हैं। ठहरनेके लिए कूँचा बुलाकी बेगममें २, धर्मपुरा, वेदवाड़ामें १-१, पहाड़ी धीरजमें १, दरियागंजमें मक्खनलालजी जैनकी धर्मशाला है। दर्शनीय स्थानोंमें पार्लियामेण्ट हाउस, राष्ट्रपति भवन, कुतुबमीनार, चिड़ियाघर, अजायबघर, लाल किला, पुराना किला। हुमायूँका मकबरा,
न्धी समाधि आदि हैं। यहाँ देशके सभी भागोंसे रेलें आती हैं। शहर में घमनेके लिए डी. टी. सी. को बसें, टैक्सी, फोर सीटर, टू सीटर स्कूटर, ताँगे, रिक्शे आदि की सुविधा है। बड़ागाँव
दिल्लीसे बस द्वारा दिल्ली-सहारनपूर सड़कपर २२ कि. मी. खेखड़ा जाना चाहिए। बस स्टैण्ड पर ताँगे और रिक्शे मिलते हैं। बस स्टैण्डसे मेरठके बस स्टैण्ट पर जाकर मेरठवाली बससे अथवा रिक्शे द्वारा बड़ागाँव जा सकते हैं। खेखड़ासे बड़ागाँव ५ कि. मी. है जिसमें २ कि. मी. कच्चा मार्ग है। यह अतिशय क्षेत्र है। यहाँ भगवान् पार्श्वनाथकी चमत्कारी प्रतिमा है। लोग यहाँ मनौती मनाने आते हैं। यहाँ जैन धर्मशाला है। किन्तु खेखड़ामें ठहरनेमें अधिक सुविधा । रहती है। खेखड़ा बड़ी मण्डी है।
हस्तिनापुर
___ खेखड़ा से हस्तिनापुर लगभग ९० कि. मी. है। दिल्लीसे मेरठ ६० कि. मी. और मेरठसे हस्तिनापुर ३७ कि. मी. है। हस्तिनापुरमें भगवान् ऋषभदेवको राजकुमार श्रेयान्सने सर्वप्रथम आहार दिया था। भगवान् शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथके गर्भ, जन्म, तप और ज्ञानकल्याणक यहींपर हए थे। ये तीर्थंकर भी थे और चक्रवर्ती भी थे। बलि आदि मन्त्रियोंने अकम्पनाचार्य आदि ७०० मुनियोंपर जब घोर उपसर्ग किये, तब मुनि विष्णुकुमारने यहींपर उन मुनियोंकी रक्षा की थी। कौरव-पाण्डव यहींके रहनेवाले थे ।
यहाँ राजा हरसुखरायका बनवाया हुआ जैनमन्दिर है। उसके सामने ३१ फुट ऊँचा