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________________ परिशिष्ट-२ २३७ करके उसके पास चलेंगे तो वह आपको बहुत पारितोषिक देगा। यदि आप निमन्त्रण अस्वीकार करके उसके पास नहीं जायेंगे तो सिर काट लेगा। श्रमण साधु संघके आचार्य दौलामस ( सम्भवतः धृतिसेन ) सूखी घासपर लेटे हुए थे। उन्होंने लेटे हुए ही सिकन्दरके अमात्यकी बात सुनी और मुसकराते हुए बोले-सबसे श्रेष्ठ राजा बलात् किसीकी हानि नहीं करता, न वह प्रकाश, जीवन, जल, मानव शरीर और आत्माका बनानेवाला है, न इनका संहारक है। सिकन्दर देवता नहीं है क्योंकि उसकी एक दिन मृत्यु अवश्य होगी। वह जो पारितोषिक देना चाहता है, वे सभी पदार्थ मेरे लिए निरर्थक हैं। मैं तो घासपर सोता हूँ। ऐसी कोई वस्तु अपने पास नहीं रखता, जिसकी रक्षाकी मुझे चिन्ता करनी पड़े, जिसके कारण अपनी शान्तिकी नींद भंग करनी पड़े। यदि मेरे पास सुवर्ण या अन्य कोई सम्पत्ति होती तो मैं ऐसी निश्चिन्त नींद न ले पाता। पृथ्वी मुझे सभी आवश्यक पदार्थ प्रदान करती है, जैसे बच्चेको उसकी माता सुख देती है। मैं जहाँ कहीं जाता हूँ. वहाँ मझे अपनी उदर प्रतिके लिए कमी नहीं, आवश्यकतानुसार सब कुछ ( भोजन ) मुझे मिल ही जाता है। कभी नहीं भी मिलता तो मैं उसकी कुछ चिन्ता नहीं करता । यदि सिकन्दर मेरा सिर काट डालेगा तो वह मेरी आत्मा को तो नष्ट नहीं कर सकता। सिकन्दर अपनी धमकीसे उन लोगोंको भयभीत करे जिन्हें सुवर्ण, धन आदिकी इच्छा हो या जो मृत्युसे डरते हों। सिकन्दरके ये दोनों अस्त्र हमारे लिए शक्तिहीन हैं, व्यर्थ हैं। क्योंकि न हम स्वर्ण चाहते हैं, न मृत्युसे डरते हैं। इसलिए जाओ, सिकन्दरसे कह दो कि दौलामसको तुम्हारी किसी वस्तुको आवश्यकता नहीं है । अतः वह तुम्हारे पास नहीं आवेगा। यदि सिकन्दर मुझसे कोई वस्तु चाहता है तो वह हमारे समान बन जावे।" __ आनेसीक्रेटसने सारी बातें सम्राट्से कहीं। सिकन्दरने सोचा-जो सिकन्दरसे भी नहीं डरता वह महान् है। उसके मनमें आचार्य दौलामसके दर्शनोंकी उत्सुकता जागृत हुई। उसने जाकर आचार्य महाराजके दर्शन किये। जैन मुनियोंके आचार-विचार, ज्ञान और तपस्यासे वह बड़ा प्रभावित हुआ। उसने अपने देशमें ऐसे किसी साधुको ले जाकर ज्ञान-प्रचार करनेका निश्चय किया। वह कल्याण मनिसे मिला और उनसे यनान चलनेकी प्रार्थना की। मनिने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली । यद्यपि आचार्य किसी मुनिके यूनान जानेकी बातसे सहमत नहीं थे। जब सिकन्दर तक्षशिलासे अपनी सेनाके साथ यूनानको लौटा, तब कल्याण मुनि भी उसके साथ-साथ बिहार कर रहे थे। मुनि कल्याणने एक दिन मार्ग में ही सिकन्दरकी मृत्युकी भविष्यवाणी की। मुनिके वचनोंके अनुसार ही बेबीलोन पहुँचनेपर ई. पू. ३२३ में अपराल वेलामें सिकन्दरको मृत्यु हो गयी। मत्यसे पहले सिकन्दरने मनि महाराजके दर्शन किये और उनसे उपदेश सूना। सम्राट्की इच्छानुसार यूनानी कल्याण मुनिको आदरके साथ यूनान ले गये । कुछ वर्षों तक उन्होंने यूनानवासियोंको उपदेश देकर धर्म प्रचार किया। अन्तमें उन्होंने समाधिमरण किया। उनका शव राजकीय सम्मानके साथ चितापर रखकर जलाया गया। कहते हैं, उनके पाषाण चरण एथेन्समें किसी प्रसिद्ध स्थानपर बने हुए हैं। तक्षशिलामें उस समय दिगम्बर मुनि रहते थे, इस बातकी पुष्टि अनेक इतिहास-ग्रन्थोंसे होती है। ____ "एलेक्जेण्डर ( सिकन्दर ) ने उन दिगम्बर मुनियोंके पास ओनेसीक्रेटसको भेजा। उसका १. Mc. Crindle, Ancient India. P. 70.
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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