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________________ २३८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ कहना है कि उसने तक्षशिलासे २० स्टैडीज दूर १५ व्यक्तियों को विभिन्न मुद्राओंमें खड़े हुए, बैठे हुए या लेटे हुए देखा, जो बिलकुल नग्न थे। वे शाम तक इन आसनोंसे नहीं हिलते थे। शामके समय वे शहरमें आ जाते थे। सूर्यका ताप सहना सबसे कठिन काम था।" __-प्लूचार्च, ऐंशियेण्ट इण्डिया, पृ.७१ ___ "दिगम्बर जैन धर्म प्राचीन कालसे अबतक पाया जाता है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि जिम्नोसोफिस्ट, जिनको यूनानियोंने पश्चिमी भारतमें देखा था, वे जैन थे, वे ब्राह्मण या बौद्ध नहीं थे। सिकन्दरने दिगम्बर मुनियोंका समुदाय तक्षशिलामें देखा था। उनमें से कल्याण नामक मुनि फारस तक उसके साथ गये। इस युगमें इस धर्मका उपदेश चौबीस तीर्थंकरोंने दिया है और महावीर उनमें अन्तिम तीर्थंकर हैं।" -ई. आई. थामस कृत 'दी लाइफ ऑफ बुद्ध' इसी पुस्तकमें एक स्थानपर लिखा है कि सिकन्दरके आदमियोंने जैन-बौद्ध धर्मको वैक्ट्रिया, औक्सियाना तथा अफगानिस्तान तथा भारतके बीचकी घाटियोंमें उन्नत रूपसे फैला हुआ पाया था। मेजर जनरल जे. एस. आर. फलाँगने भी अपनी पुस्तक 'तुलनात्मक धर्म-विज्ञान (Science of Comparative Religions) में तक्षशिलामें दिगम्बर जैनमुनियों के पाये जाने और सिकन्दरके साथ कल्याण नामक दिगम्बर जैन मुनिके जाने की बातका समर्थन किया है। इन प्रमाणोंसे यह सिद्ध होता है कि सिकन्दरके आक्रमणके समय तक्षशिला जैन धर्मका केन्द्र था और यहाँ अनेक दिगम्बर जैन मुनि रहते थे।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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