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________________ परिशिष्ट-२ २३५ यह कुछ समय एक गान्धार देशकी भी राजधानी रही । उस समय गान्धारमें पूर्वी अफगानिस्तान और उत्तर-पश्चिमी पंजाब था। ___इस नगरपर सूर्यवंशी राजाओंका बहुत समय तक अधिकार रहा। किन्तु तक्षके वंशमें कौन-कौन राजा हुए, इसका कोई व्यवस्थित और प्रामाणिक इतिहास नहीं मिलता। महाभारत युद्धने समूचे आर्यावर्त और विशेषकर पंजाबके राज्योंको कमजोर कर दिया था। अतः कहीं-कहीं उत्पात होने लगे थे। गान्धार देशके नागों ने तक्षशिलापर अधिकार कर लिया। कहा जाता है, जिस दिन महाभारत युद्ध समाप्त हुआ, उसी दिन अभिमन्युकी स्त्री उत्तराके गर्भसे परीक्षितका जन्म हुआ था। पाण्डवोंके पीछे हस्तिनापरको गहीपर परीक्षित बैठा। तक्षशिलाके नाग धीरे-धीरे अपनी शक्ति बढ़ा रहे थे। उन्होंने पंजाबपर अधिकार कर लिया। फिर पंजाब लांघकर हस्तिनापुरपर भी उन्होंने आक्रमण कर दिया। अब कुरु राज्य इतना निःशक्त था कि राजा परीक्षितको नागोंने मार डाला। इस समय तक्षशिलाके नागोंका राजा तक्षक था। पुत्र जनमेजय प्रतापी राजा था। उसने अपनी शक्ति खब बढ़ायी और अपने पिताको मृत्युका बदला लेनेके लिए नागवंशको निर्मूल करनेका संकल्प कर लिया। वासुकी, कुलज, नीलरक्त, कोणप, पिच्छल, शल, चक्रपाल, हलोमक, कालवेग, प्रकालग्न, सुशरण, हिरण्यबाहु, कक्षक, कालदन्तक, तक्षकपुत्र शिशुरोम, महाहनु आदि अनेक नाग सरदारोंको सम्राट जनमेजयने जीता जला दिया था। पीछे नागराज वासुकीके भागिनेय आस्तीकने बड़े अनुनयविनयसे नागोंकी सन्धि करायी। इन नागोंने अपना प्रभाव-विस्तार खूब किया। मथुरापर नागोंकी सात पीढ़ियोंने राज्य किया। काश्मीरमें भी उनका राज्य था। ईसा पूर्व छठा शताब्दीमें विदिशामें नागराज शेष, पुरंजय भोगी, रामचन्द्र, चन्द्रांशु, नृखवन्त, धनधर्षण, नगर और भूतनद प्रसिद्ध नागराजा हुए। जब सिकन्दरने भारतपर आक्रमण किया, उस समय तक्षशिलाका राजा आम्भि था। उसने सिकन्दरसे बिना लड़े ही उसकी अधीनता स्वीकार कर ली थी। उसकी सहायतासे सिकन्दरकी सेनाने सिन्ध पार की और तक्षशिला पहुँचकर अपनी थकान उतारी। मौर्य सम्राट् बिन्दुसारके कालमें तक्षशिलाने दो बार विद्रोह किया। एक बार अशोकको और दूसरी बार कुणालको वहाँ विद्रोह दबानेको जाना पड़ा। विद्रोह दबानेके लिए कोई शक्तिका प्रयोग नहीं करना पड़ा, बल्कि बड़े रोचक और नाटकीय ढंगसे स्वयं शान्त हो गया। जब कुमार अशोक तक्षशिलाके निकट पहुँचा तो तक्षशिलाके पौर नगरीसे साढ़े तीन योजन आगे तक सारे रास्तेको सजाकर मंगल घट लिये हुए उसकी सेवामें उपस्थित हुए और कहने लगे-'न हम कुमारके विरुद्ध हैं, न राजा बिन्दुसार के। किन्तु दुष्ट अमात्य हमारा परिभव करते हैं।' इसके पश्चात् जब अशोक राजगद्दीपर बैठा, तब उसने अपने पुत्र कुणालको तक्षशिलाका उपरिक ( गवर्नर ) बनाया । कुणाल जन्मसे ही सुरूप और सुकुमार था। उसकी आँखें बड़ी सुन्दर १. महाभारत । २. वायु और ब्रह्माण्ड पुराण । ३. दिव्यावदान ।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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