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परिशिष्ट-२
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आदिपुराणमें भगवज्जिनसेनने बताया है कि वृषभदेवने राज्यव्यवस्थाके लिए चार व्यक्तियोंको दण्डधर ( राजा ) नियुक्त किया-हरि, अकम्पन, काश्यप और सोमप्रभ । सोमप्रभ भगवान् ऋषभदेवसे कुरुराज नाम पाकर कुरुदेशका राजा हुआ और कुरुवंशका शिखामणि कहलाया।
हरिवंशपुराणमें सोमप्रभका नाम सोमयश दिया है और उन्हें बाहुबलीका पुत्र तथा सोमवंश ( चन्द्रवंश ) का कर्ता बताया है। .
उक्त पुराणोंके अनुसार हस्तिनापुरका राज्य सोमप्रभको दिया था, न कि बाहुबलीको । बाहुबलीको तो पोदनपुरका ही राज्य दिया था। सोमप्रभ और बाहुबलीको ऋषभदेव द्वारा राज्य देनेका काल भी भिन्न-भिन्न है। जिस कालमें ऋषभदेव समाज-व्यवस्था, वर्ण-व्यवस्था, विवाहव्यवस्था स्थापित करने में लगे हुए थे, उस समय दण्डनीतिकी व्यवस्थाके लिए अन्य तीन व्यक्तियोंके साथ सोमप्रभको भी राजा बनाया था और उसे कुरुजांगल देशका राज्य दिया था। किन्तु दीक्षा लेनेसे पूर्व ऋषभदेवने अपने सौ पुत्रोंको राज्य दिया। उनमें बाहुबली को पोदनपुरका राज्य दिया।
इन प्रमाणोंसे बाहुबलीको तक्षशिला और पोदनपुर मिलनेकी कल्पनाका निरसन हो जाता है। कुछ पौराणिक घटनाएं
हस्तिनापुरके राजा महापद्म और सुरम्य देशके पोदनपुरके राजा सिंहनादमें बहुत समयसे शत्रुता चली आ रही थी। अवसर पाकर महापद्मने पोदनपुरके ऊपर आक्रमण कर दिया । पोदनपुरमें सहस्रकूट नामक एक चैत्यालय था, जिसमें एक हजार स्तम्भ लगे हुए थे। महापद्म चैत्यालयको देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। उसके मनमें भी यह भावना जागृत हुई कि मैं भी अपने नगरमें इसी प्रकारका सहस्र स्तम्भवाला चैत्यालय बनवाऊँगा। उसने एक पत्र अपने अमात्यको लिखा'महास्तम्भसहस्रस्य कर्तव्यः संग्रहो ध्रुवम्' अर्थात् तुम एक हजार स्तम्भ अवश्य संग्रह कर लो।
पत्रवाचकने स्तम्भके स्थानपर स्तभ पढ़ा और उसका अर्थ हुआ कि तुम हजार बकरे इकट्ठे कर लेना। तदनुसार उन्होंने एक हजार बकरे इकट्ठे कर लिये। जब महाराज आये और उन्हें वाचककी इस भूलका पता चला तो बड़े क्रुद्ध हुए और वाचकको कठोर दण्ड दिया।
एक अनुस्वारकी भूलका कैसा परिणाम निकला।
एक अन्य कथा इस प्रकार मिलती है। पाटलिपुत्रनरेश गन्धर्वदत्तकी पुत्री गन्धर्वदत्ता अत्यन्त रूपवती थी। उसने प्रतिज्ञा की थी कि जो मुझे गन्धर्व विद्यामें पराजित कर देगा, उसे ही वरण करूँगी। अनेक कलाकार आये और पराजित होकर लौट गये। एक दिन विजयाध पर्वतके निकटवर्ती पोदनपुरके निवासी पंचाल उपाध्यायने गन्धर्वदत्ताकी प्रतिज्ञा सुनी। वह अपने पाँच सौ शिष्योंको लेकर पाटलिपुत्र पहुँचा और वहाँ राजकन्याको पराजित करके उसके संग विवाह किया।
१. आदिपुराण, १६।२५५-८ । २. हरिवंशपुराण, १३।१६।। ३. आराधना कथाकोष, कथा ९५ । हरिषेण कथाकोष, कथा २५ में पोदनपुरको उत्तरापथमें बताया है, जब
कि आराधना कथा कोषमें उसे सुरम्य देशमें बताया है।