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• परिशिष्ट-२
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-स्वामीकी शिक्षाको दौत्यक़ी दीक्षाके समान स्वीकार करके वह सुन्दर सुवेग रथपर चढ़कर तक्षशिक्षाके लिए चला।
'षड्भ्यो भरतखण्डेभ्यः खण्डान्तरमिव स्थितम् + भरताज्ञानभिज्ञं स बहलीदेशमासदत् ।'
-परिशिष्ट, पर्व ११५४९ ___ अर्थात् वह भरतके अज्ञानको समझनेवाले बहली देशमें पहुँचा जो छह भरत खण्डोंसे पृथक् खण्डकी तरह स्थित था।
'भरतावरजोत्कर्षाकर्णनाद्विस्मृतं मुहुः अनुस्मरन् वाचिकं स प्राप तक्षशिलापुरीम् ॥'
-परिशिष्ट, पर्व ११५।५३ अर्थात् वह भरतके लघुभ्राता बाहुबलीके उत्कर्षकी बातें सुनकर बार-बार भरतके दिये हुए आदेशोंको भूल जाता था और बार-बार वह उन्हें याद करता था। इस प्रकार वह तक्षशिलापुरी पहुंचा।
'दिने दिने नरपतिर्गच्छंश्चक्रपदानुगः । राश्यन्तरमिवादित्यो बहलीदेशमासदत् ॥'
-परिशिष्ट, पर्व १।५।२८३ ------ अर्थात् सम्राट् भरत दिन-रात चलता हुआ बहली देश पहुँचा, मानो सूर्य एक राशिसे चक्कर लगाता हुआ दूसरी राशिमें पहुँचा हो। 'बाहुबलिणो तक्खसिला दिण्णा'
-विविध तीर्थकल्प, पृ. २७ अर्थात् बाहुबलीको तक्षशिला दी। 'तक्षशिलायां बाहुबली निनिर्मितं धर्मचक्रं'
-विविध तीर्थकल्प, पृ. ८५ अर्थात् बाहुबलीने तक्षशिलामें धर्मोपदेश दिया।
उपर्युक्त उल्लेखोंसे यह स्पष्ट है कि श्वेताम्बर ग्रन्थोंके अनुसार बाहुबलीको तक्षशिलाका राज्य मिला था। तक्षशिला बहली देशमें स्थित थी। अर्थात् उस प्रदेशको बहली अथवा वाह्नीक कहा जाता था और तक्षशिला उसकी राजधानी थी। तक्षशिलाका स्थापना-काल
इसमें सन्देह नहीं है कि तक्षशिला बहली देशमें थी। किन्तु विचारणीय प्रश्न यह है कि ऋषभदेवके कालमें तक्षशिला नामकी कोई नगरी थी भी या नहीं।
वाल्मीकि रामायणके अनुसार श्री रामचन्द्रने भरतको उसके ननिहाल केकय देशका राज्य दिया था। रघुवंशके अनुसार उसे केकयके साथ सिन्धु देश भी मिला था। केकय और सिन्धु दोनों देश मिले हुए थे।
प्रसिद्ध पुरातत्त्ववेत्ता कनिघम आधुनिक पश्चिमी पाकिस्तान स्थित गुजरात, शाहपुर और जेहलम जिलोंको प्राचीन केकय देश मानते हैं। केकय देशकी राजधानी उन दिनों राजगृह या
१. Ancient Geography of India, p. 164.