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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ अर्थात् तक्षशिलामें महान् बाहबली रहता था। वह सदा भरत राजाका विरोधी था और उनकी आज्ञाका पालन नहीं करता था।
'पत्तो तवखसिलपूरं जयसवूखट्र कलयलारावो।
जुज्झस्स कारणत्थं सन्नद्धो तक्खणं भरहो' ॥४॥४०॥ अर्थात् भरत तक्षशिला पहँचे और तत्क्षण युद्ध करनेके लिए तैयार हो गये। उस समय जय शब्दके उद्घोषका कलकल शब्द सर्वत्र फैल गया।
'बाहुबली पि महप्पा भरहनरिन्दं समागयं - सोउं ।
भडचडयरेण महया तक्खसिलाओ विणिज्जाओ' ॥४॥४१॥ अर्थात् महात्मा बाहुबली भी भरत राजाका आगमन सुनकर सुभटोंकी महती सेनाके साथ तक्षशिलासे बाहर निकला।
विमलसूरि मानते हैं कि दोनोंमें दृष्टि और मुष्टि युद्ध हुआ। ..
विमलसूरिने कई कथानकोंमें पोदनपुरका उल्लेख किया है। वे कथानक दिगम्बर पुराणोंमें भी उपलब्ध होते हैं-जैसे मधुपिंगल और कुण्डलमण्डित, गजकुमार आदि। किन्तु यह आश्चर्यजनक है कि बाहुबलीके चरित्रमें उन्होंने पोदनपुरका उल्लेख नहीं किया। वहाँ उन्होंने पोदनपुरके स्थानपर तक्षशिलाका ही उल्लेख किया है।
श्वेताम्बर ग्रन्थोंमें जहाँपर भी बाहबलीका चरित्र-चित्रण किया है, वहाँ सर्वत्र बहली ( वाह्लीक ) देश और तक्षशिला नगरका उल्लेख मिलता है। एक प्रकारसे श्वेताम्बर साहित्यमें पउमचारउको ही परम्पराका अनुसरण मिलता है। यहाँ इस प्रकारके कुछ उद्धरण देना समुचित होगा'बहुलीदेशसीम्नि गतः सैन्येन च तत्र स्थापितवान् ।'
-कल्पसूत्र, समयसुन्दरगणी कृत कल्पलता व्याख्या। अर्थात् बाहुबली भी भरतको आया जानकर सेना सहित बहली देशकी सीमापर आया।
'ततो भरतेन बहुविलापदुःखितेन बाहुबलिपुत्राय सोमयशसे तक्षशिलाराज्यं दत्वा अयोध्यानगर्यां समागतम्।
-कल्पसूत्र २१४, कल्पलता व्याख्या -अति विलापसे दुःखी भरत तब बाहुबलीके पुत्र सोमयशको तक्षशिलाका राज्य देकर अयोध्या नगरीमें वापस आ गया। 'तक्खसिला-बहली देशे बाहुबले गर्याम् ।'
-अभिधानराजेन्द्र कोश अर्थात् तक्षशिला बहली देशमें बाहुबलीकी नगरी। 'तक्खसिलाइ पुरीए वहलीविसयावयंसभूयाए ।'
-कुमारपाल प्रतिबोध २१२ अर्थात् तक्षशिला बहली देशका एक अंगभूत ।
'स्वामिशिक्षां दौत्यदीक्षामिवादाय ससौष्ठवाम् । सूवेगो रथमारुह्याचलत्तक्षशिलां प्रति' ॥१५॥२५॥
-परिशिष्ट पर्व