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________________ परिशिष्ट - २ २२९ कभी-कभी ग्रन्थोंकी साधारण लगनेवाली बातें शोधखोजके सन्दर्भ में बड़ी महत्त्वपूर्ण बन जाती है । पार्श्वनाथ चरितमें सुरम्य देशको शालि चावलों के खेतोंसे भरा हुआ बताया है । यह कथन पोदनपुरको चावल बहुल प्रदेश में होंनेका संकेत करता है । आदिपुराण कथन है कि जब भरतका दूत पोदनपुर पहुँचा, तब उसे नगर के बाहर खेतों में पके हुए धान खड़े मिले थे बहिः पुरमथासाद्य रम्याः सस्यवतीर्भुवः । पक्वशालिवनोद्देशान् स पश्यन् प्राय नन्दथुम् ||२८|| सोमदेव विरचित 'उपासकाध्ययन ( यशस्तिलक चम्पू )' में लिखा है'रम्यकदेशनिवेशोपेतपोदनपुरनिवेशिनो' अर्थात् रम्यक देश में विस्तृत पोदनपुरके निवासी । यहाँ भी पोदनपुरको रम्यक देशमें बताया है । पुण्यास्रव कथाकोष कथा- २ में 'सुरम्यदेशस्य पोदनेश' वाक्य है । अर्थात् उसमें भी पोदनपुरको सुरम्य देशमें माना है । बौद्ध ग्रन्थ चुल्ल कलिंग और अस्सक जातकमें पोटलि ( पोतलि ) को अस्सक जनपदकी राजधानी बताया है । और अस्सक देशको गोदावरी नदीके निकट सक्य पर्वत पश्चिमी घाट और usara मध्य अवस्थित लिखा है । सुत्तनिपात ९७७ में अस्सकको गोदावरीके निकट बताया है । पाणिनि १।३७३ अश्मकको दक्षिण प्रान्तमें बताते हैं । महाभारत ( द्रोणपर्व ) में अश्मक पुत्रका वर्णन है । उसकी राजधानी पोतन या पातलि थी । इसमें पोदन्य नाम भी दिया है । हेमचन्दराय चौधरीने महाभारतके पोदन्य और बौद्ध ग्रन्थोंके पोत्तनको एक मानकर उसकी पहचान आधुनिक बोधनसे की है । यह आन्ध्र प्रदेशके मंजिरा और गोदावरी नदियोंके संगमसे दक्षिण में स्थित है । इस मान्यताका समर्थन 'वसुदेव हिण्डि' के निम्नलिखित उद्धरणसे होता है 'उत्तिणामो गोयावर नदि । तत्थ वहामा कयहिगा सीहवाहीहिं तुरएहि पत्ता मो पोयणपुरं ।' अर्थात् गोदावरी नदीको पारकर पोदनपुर पहुँच गया । उपर्युक्त प्रमाणोंसे पोदनपुर अश्मक, सुरम्य अथवा रम्यक देशमें गोदावरीके निकट था । जो आधुनिक आन्ध्र प्रदेशका बोधन मालूम पड़ता है । श्वेताम्बर परम्परा हमें आश्चर्य होता है कि इस सम्बन्ध में श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परामें नामों में एकपता नहीं है। महापुराण, हरिवंश पुराण, पद्मपुराण इन सबमें बाहुबलीके नगरका नाम पोदनपुर मिलता है | श्वेताम्बर - दिगम्बर दोनों परम्पराओंके मध्यमार्गी अथवा यापनीय संघके आचार्यं विमल सूरिने 'पउमचरिउ' में कई स्थानोंपर बाहुबलीकी नगरीका नाम तक्खसिला ( तक्षशिला ) दिया । यथा 'तक्खसिलाए महप्पा बाहुबली तस्स निच्च पडिकूलो । भरत नरिंदस्स सया न कुणइ आणा पणामं सो' || ४|३८|| १. उपासकाध्ययन कल्प, २८, श्लोक ३९१ में असत्य फलकी कथा । २. वसुदेव हिण्डी २४वाँ पद्मावती लम्ब, पृ. ३५४ २४०, पंचम सोमश्री लम्ब, पृ. १८७२४१ ।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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