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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ यदि तू यहाँसे खड़े होकर सामने पर्वतपर तीर मारेगा तो मूर्ति प्रकट होगी। चामुण्डरायने ऐसा ही किया। सुबह उठकर णमोकार मन्त्र पढ़कर सामने पर्वतपर तीर मारा। तीर लगते ही मूर्तिका मुख प्रकट हुआ। तब उन्होंने पाँच सौ कारीगर लगाकर गोम्मटेश्वर बाहुबलीकी उस अद्भत मूर्तिका निर्माण कराया। चामुण्डरायने अपने गुरु श्री अजितसेनकी आज्ञासे अपनी माताको समझाया कि पोदनपुर जाना हो नहीं सकता, तुम्हारी प्रतिज्ञा यहीं पूर्ण हो गयी।
इस कथाका समर्थन कई शिलालेखों और चन्द्रगिरिपर स्थित एक अभिलिखित पाषाणसे, जो चामुण्डराय चट्टानके नामसे प्रसिद्ध है, भी होता है। सम्भवतः दक्षिणमें बाहबलीकी विशाल प्रतिमाएँ इसी कारण बनीं।
राजाबली कथे और मुनिवंशाभ्युदय काव्यमें बताया है कि बाहुबलीकी मूर्तिकी पूजा श्री रामचन्द्र, रावण और मन्दोदरीने की थी।
इन उल्लेखोंको पढ़कर मनमें यह बात जमती है कि पोदनपुर कहीं दक्षिणमें रहा होगा।
इस सम्बन्धमें यति मदनकीति विरचित शासनचतुस्त्रिशिकाके दो श्लोक उल्लेखनीय हैंपद्य दो और सात । पद्य संख्या २ में ऋषि-मुनि और देवताओं द्वारा वन्दनीय पोदनपुरके बाहुबली स्वामीके अतिशयका वर्णन तथा पद्य संख्या ७ में जैनबद्रीमें देवों द्वारा पूजित दक्षिण गोम्मटदेवकी स्तुति की गयी है। भरत-बाहुबलीका युद्ध कहाँ हुआ था
___ इस प्रश्नका उत्तर पद्मपुराण और हरिवंश पुराणमें मिलता है। पद्मपुराणमें उल्लेख है कि चक्रवर्ती भरत अपनी चतुरंग सेनाके द्वारा पथ्वीतलको आच्छादित करता हआ युद्ध करनेके लिए पोदनपुर गया। हरिवंश पुराणमें इस प्रश्नका और भी अधिक स्पष्ट उत्तर दिया है। वह उल्लेख इस प्रकार है
पोदनान्निर्ययौ योद्धमक्षौहिण्या युतो द्रुतम् ।।११।७८।। चक्रवर्त्यपि संप्राप्तः सैन्यसागररुद्धदिक् ।
विततापरदिग्भागे चम्वोः स्पर्शस्तयोरभूत् ॥११॥७९॥ अर्थात् वे ( बाहुबली ) शीघ्र ही अक्षौहिणी सेनाके साथ युद्धके लिए पोदनपुरसे निकल पड़े। इधर सेनारूपी सागरसे दिशाओंको व्याप्त करते हुए चक्रवर्ती भरत भी आ पहुँचे, जिससे वितता नदीके पश्चिम भागमें दोनों सेनाओंकी मुठभेड़ हुई। इस समस्याका स्पष्ट समाधान आचार्य गुणभद्रने 'उत्तरपुराण' में किया है
'जम्बविशेषणे द्वीपे भरते दक्षिणे महान् ।
सुरम्यो विषयस्तत्र विस्तीर्णं पोदनं पुरम् ॥७३।६।। अर्थात् जम्बूद्वीपके दक्षिण भरतक्षेत्रमें एक सुरम्य नामका बड़ा भारी देश है और बड़ा विस्तृत पोदनपुर नगर है।।
श्री वादिराज सूरिने भी पार्श्वनाथ चरित सर्ग १ श्लोक ३७-३८ और संर्ग २ श्लोक ६५ में पोदनपुरको सुरम्य देशमें बताया है।
१. पद्मपुराण ४,६७-६८ ।