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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ भरतकी अधीनता स्वीकार करनेसे स्पष्ट इनकार कर दिया। जब सम्राट भरतको यह खबर पहुँची तो वे विशाल सेना लेकर पोदनपुरके मैदानोंमें जा डटे । बाहुबली भी अपनी सेना सजाकर नगरसे निकले और उन्होंने भी भरतकी सेनाके समक्ष अपनी सेना जमा दी। दोनों सेनाओं की भयानक मुठभेड़ हुई, जिसमें दोनों ओरके अनेक व्यक्ति हताहत हुए। तब दोनों राजाओंके मन्त्रियोंने परस्पर परामर्श करके निश्चय किया कि देशवासियोंका व्यर्थ नाश न हो, अतः दोनों राजाओंमें धर्मयुद्ध होना चाहिए। दोनों भाइयोंने मन्त्रियोंके इस परामर्शको स्वीकार किया और दोनोंमें दृष्टियुद्ध, जलयुद्ध और मल्लयुद्ध करनेका निश्चय हुआ। बाहुबली सवा पाँच सौ धनुषके थे और भरत पाँच सौ धनुषके थे। इस ऊँचाईका लाभ बाहुबलीको मिला। वे दृष्टियुद्ध में जीत गये। फिर जलयुद्ध हुआ। उसमें भी बाहुबलीकी विजय हुई। अन्तमें मल्लयुद्ध हआ। दोनों ही अप्रतिम वीर थे। किन्तु बाहुबली शारीरिक बलमें भी भरतसे बढ़-चढ़कर थे। उन्होंने क्षणमात्रमें भरतको हाथोंमें ऊपर उठा दिया। बाहुबलीने राजाओंमें श्रेष्ठ बड़े भाई तथा भरत क्षेत्रको जीतनेवाले भरतको जीतकर भी 'ये बड़े हैं इस गौरवसे उन्हें पृथ्वीपर नहीं पटका, बल्कि उन्हें अपने कन्धेपर बैठा लिया।
बाहुबलीकी तीनों ही युद्धोंमें निर्णायक विजय हो चुकी थी। सब लोग उनकी जयजयकार कर रहे थे। इस अपमानसे क्षुब्ध होकर भरतने बाहुबलीपर चक्ररत्न चला दिया। किन्तु चक्र बाहबलीकी प्रदक्षिणा देकर लौट आया। बाहबली भरतके भाई थे तथा चरमशरीरी थे, इसलिए चक्र उनके ऊपर कुछ प्रभाव नहीं डाल सका। बाहुबलीके मनपर इस घटनाका बड़ा प्रभाव पड़ा। वे मनमें विचार करने लगे-'बड़े भाईने इस नश्वर राज्यके लिए यह कैसा लज्जाजनक कार्य किया है। यह राज्य व्यक्तिको छोड़ देता है किन्तु व्यक्ति राज्यको नहीं छोड़ना चाहता। धिक्कार है इस क्षणिक राज्य और राज्यकी लिप्साको।' यह विचार कर आहिस्तेसे उन्होंने भरतको एक ऊँचे स्थानपर उतार दिया। उन्होंने भरतसे अपने अविनयको क्षमा माँगी और अपने पुत्र महाबेलीको राज्य सौंपकर गुरुके निकट मुनि दीक्षा ले ली। गुरुकी आज्ञामें रहकर उन्होंने शास्त्रोंका अध्ययन किया तथा एकलबिहारी रहे। फिर कैलास पर्वतपर जाकर एक वर्षका प्रतिमायोग धारण करनेका नियम लेकर घोर तप किया। एक वर्ष तक उसी स्थानपर खड़े रहनेके कारण दीमकोंने उनके चारों ओर बामी बना ली। बामियोंमें सर्प आकर रहने लगे। उनमें लताएँ उग आयीं। चिड़ियोंने उनमें घोंसले बना लिये। एक स्थानपर निराहार खड़े रहकर ध्यान लगाना कितना दुर्धर तप है!
किन्तु बाहुबलीके मनमें एक विकल्प था कि मेरे कारण भरतको क्लेश पहुँचा है । जब एक वर्ष समाप्त हुआ तो चक्रवर्ती भरतने आकर उन्हें प्रणाम किया। तभी बाहुबलीको केवलज्ञान हो गया। चक्रवर्तीने केवलज्ञान उत्पन्न होनेसे पूर्व भी मुनिराज बाहुबलीकी पूजा की और केवलज्ञान उत्पन्न होनेके अनन्तर अर्हन्त भगवान् बाहुबलीकी पूजा की। इन्द्रों और देवोंने भी आकर उनकी पूजा की।
१. पद्मपुराण ४।६९; पउमचरिउ, स्वयम्भू कृत ४।१०। २. पउमचरिउ ( स्वयम्भू ) के अनुसार सोमप्रभ । ३. आदि पुराण ३६।१०४। ४. हरिवंश पुराण ११।९८ ।। ५. स्वयम्भू कृत पउमचरिउके अनुसार उनके मनमें यह कषाय थी कि मैं भरतकी धरतीपर खड़ा हूँ।