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पोदनपुर
क्षेत्र मंगल निर्वाण भक्ति ( संस्कृत ) में पोदनपुरको निर्वाण-क्षेत्र स्वीकार किया है, जो इस प्रकार है
'द्रोणीमति प्रबलकुण्डलमेढ़के च, वैभारपर्वततले वरसिद्धकूटे। ऋष्याद्रिके च विपुलाद्रिबलाहके च, विन्ध्ये च पोदनपुरे वृषदीपके च ॥२९।।
ये साधवो हतमलाः सुगति प्रयाताः ।।३०।। इसमें पोदनपुरको निर्वाण-भूमि माना है। प्रसिद्धि
पोदनपुरकी प्रसिद्धि भरत-बाहुबली-युद्धके कारण विशेष रूपसे हुई है। जब भगवान् ऋषभदेवको नीलांजना अप्सराकी आकस्मिक मृत्यु देखकर संसारसे वैराग्य हो गया और वे दोक्षा के लिए तत्पर हुए, तब उन्होंने अपने सौ पुत्रोंको विभिन्न देशोंके राज्य बाँट दिये। उन्होंने अयोध्याकी राजगद्दी पर अपने बड़े पुत्र भरतका राज्याभिषेक किया तथा दूसरे पुत्र बाहुबलीको युवराज पंद देकर उन्हें पोदनपुरका राज्य दे दिया।
एक ओर ऋषभदेवके दीक्षाकल्याणक महोत्सवकी तैयारियां हो रही थीं, दूसरी ओर भरतका राजसिंहासन महोत्सव मनाया जा रहा था। भगवान्ने अपने हाथोंसे भरतके सिरपर राज-मुकुट पहनाया और दीक्षा लेने चल दिये । अपार जनमेदिनी, इन्द्रों और देवोंने भगवान्का दीक्षा महोत्सव मनाया।
___ महाराज भरत और उसके सभी भाई अपने-अपने देशमें शान्तिपूर्वक राज्य करने लगे। कुछ समय बाद महाराज भरतकी आयुधशालामें चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। भरत विशाल सैन्य लेकर दिग्विजयके लिए निकले। उन्होंने कुछ ही वर्षों में सम्पूर्ण भरत क्षेत्र जीत लिया। उन्होंने अपने भाइयोंको भी अधीनता स्वीकार करनेके लिए पत्र लिखे। ९८ भाइयोंने आपसमें परामर्श किया और सब मिलकर भगवान्के पास पहुँचे । भगवान्ने उन्हें उपदेश दिया, जिससे उनके मनमें वैराग्य उत्पन्न हो गया। फलतः उन्होंने भगवान्के पास ही मुनिदीक्षा धारण कर ली।
दिग्विजयके बाद जब भरतने अयोध्या में प्रवेश किया तो उन्हें यह देखकर आश्चर्य हआ कि चक्र नगरके भीतर प्रवेश नहीं कर रहा। उन्होंने सन्देहयुक्त होकर बुद्धिसागर पुरोहितसे इसका कारण पूछा । पुरोहितने विचार करके उत्तर दिया, “आपके भाई बाहुबली आपकी आज्ञा नहीं मानते।"
भरतने परामर्श करके एक चतुर दूतको बाहुबलीके पास पोदनपुर भेजा। दूतने बाहबली की सेवामें पहुँचकर अपना परिचय दिया और अपने आनेका उद्देश्य भी बताया। बाहुबलीने
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