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परिशिष्ट - १
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साहू द्वारा निर्मित इस मन्दिरको तेरहवीं शताब्दी में कुतुबुद्दीन ऐबकने तोड़ दिया और उसके स्थानपर कुतुबमीनार के निकट 'कुव्वतुल इस्लाम' नामक मसजिदका निर्माण कराया । इस मसजिदका निरीक्षण करते हुए जनरल कनिंघमको मसजिदकी दीवारपर एक अभिलेख इस आशयका मिला कि यह मसजिद २७ हिन्दू मन्दिरोंको तोड़कर उसकी सामग्री से बनायी गयी । अवश्य ही इन तोड़े गये मन्दिरोंमें वह जैन मन्दिर भी था । इस मसजिदका ध्यानपूर्वक निरीक्षण करनेपर दीवारों और छतोंमें अनेक स्थानोंसे प्लास्टर उखड़ गया है । इससे भीतरके पाषाण स्तम्भ और पाषाण शिलाएँ दिखाई देने लगी हैं । ऐसे कई शिला-स्तम्भ हैं, जिनपर जैन तीर्थंकरोंकी मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं । ये मूर्तियाँ दीवारों और छतों में बेतुके ढंगसे जुड़ी हुई हैं । जैन धर्म के अनेक चिह्न और चित्र भी उत्कीर्ण किये हुए मिलते हैं । कुव्वतुल मसजिदके उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पूर्ववाले ऊपरी कोनेवाले कमरोंमें छतोंके पाँच-पाँच पैनलोंमें पद्मासन और कायोत्सर्गासन तीर्थंकरमूर्तियाँ, सुमेरु पर्वतपर भगवान्का देवेन्द्र द्वारा अभिषेक आदि दृश्य उत्कीर्ण मिलते हैं । इसी प्रकार पाषाण-स्तम्भोंपर खुदी हुई जंजीरोंमें लटकते घण्टे मीन-युगल आदि जैन धर्ममें मान्य मांगलिक चिह्न आज भी देखे जा सकते हैं ।
यह मन्दिर भगवान् आदिनाथका था, ऐसी धारणा है । 'युगप्रधानाचार्य गुर्वावली' नामक ग्रन्थसे, जिसका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है, एक पार्श्वनाथ चैत्यकी सूचना मिलती है । सम्भवतः यह मन्दिर आदिनाथ मन्दिरसे अलग कोई दूसरा मन्दिर रहा हो। उस मन्दिरका भी आज कोई चिह्न नहीं मिलता ।
इन जैन मन्दिरों के अतिरिक्त उस समय देहलीमें जैन मन्दिर थे या नहीं ? यदि थे तो कितने और कहाँ-कहाँपर थे ? इन सब प्रश्नोंका कोई प्रामाणिक उत्तर देनेकी स्थितिमें आज कोई इतिहासकार नहीं है । किन्तु तत्कालीन साहित्यसे कई जैन मन्दिरों का पता चलता है । आमेरके शास्त्र भण्डारमें विद्यमान 'क्रिया कलाप सवृत्ति' नामक ग्रन्थेसे ज्ञात होता है कि उस समय (सन् १३४३ में) दिल्ली में 'दरबार चैत्यालय' था, जिसमें काष्ठासंघ, माथुर गच्छ और पुष्कर गणके साधु नयसेन और दुर्लभसेन विराजमान थे ।
सैयदवंशके बादशाह मुबारिकशाह ( सन् १४२१-२३ ) के मन्त्रीका नाम साह हेमराज था। उन्होंने एक भव्य जिनमन्दिरका निर्माण कराया था।
बादशाह बाबरके कालमें सन् १५३० में साहू साधारणने एक मन्दिरका निर्माण कराया था।
१. इस मसजिद के बाहर पुरातत्त्व विभागकी ओरसे सूचना पट्ट लगा हुआ है, उसमें लिखा है
कुव्वतुल इस्लाम ( इस्लामकी शक्ति ) मसजिदके नामसे प्रसिद्ध यह इमारत भारत में स्थित प्राचीनतम मसजिद है । इसके मध्य स्थित आयताकार ( ४३.२ मी. x ३२.१ मी. ) सहनके चारों ओर दालान बने हैं, जिनमें प्रयुक्त खम्भे तथा दूसरी वास्तु सामग्री मूलतः २७ हिन्दू एवं जैन की गयी थी ।
मन्दिरोंको ध्वस्त कर प्राप्त
२. क्रिया-कलाप सटीक प्रशस्ति, प्रशस्ति संग्रह, पृ. ९७ ।
३. पाण्डव पुराण प्रशस्ति ( भट्टारक यशः कीर्ति विरचित ) -
लोणंद
दणु हेमराउ, जिनधम्मोवरि जसु णिच्च भाउ ।
सुरताण मुमारख तणई रज्जे, मतितणे थिउपिय भारत कज्जे ।।
४. इल्लराजके पुत्र महिन्दु (महाचन्द्र ) द्वारा रचित भगवान् शान्तिनाथ चरित्र ।