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भारत के दिगम्बर जैन तीर्थं
इसमें ढिल्लीनरेश अनंगपालकी वीरताका वर्णन किया गया है । कवि श्रीधर अनंगपाल (तृतीय) के समकालीन था और उसने अपना ग्रन्थ नट्टल साहूकी प्रेरणासे ढिल्ली (दिल्ली ) में रहकर ही लिखा था । वि. सं. १२०७ के लगभग चाहमानवंशी ( जो बादमें चौहानवंशी कहलाने लगे) राजा आनाके पुत्र विग्रहराज ( बीसलदेव चतुर्थ ) ने अनंगपालको उखाड़ फेंका और ढिल्ली (दिल्ली ) को छीनकर उसे अजमेरका सूबा बना दिया ।
विजोल्याके एक शिलालेख से जो वि. सं. १२२६ का है, भी इस बातका समर्थन होता है । उसमें विग्रहराजकी प्रशंसा करते हुए कहा है
प्रतोत्यां च बलभ्यां च येन विश्रामितं यशः । ढिल्लिका - ग्रहणश्रान्तमाशिका लाभलम्भितः ||२२||
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अर्थात् ढिल्ली लेनेसे थके हुए और आशिका ( हाँसी) के लाभसे लाभान्वित विग्रहराज ने अपने यशको प्रतोली और बलभीमें विश्रान्ति दी । अर्थात् इन चारों राज्योंको उसने हराया । इसके बाद तो दिल्लीपर अधिकार के लिए संघर्ष होते रहे । और इसपर चौहान, गुलाम, खिलजी, तुगलक और मुगल वंशोंने तथा अँगरेजोंने आठ शताब्दी तक शासन किया। यह दिल्ली के ही नहीं, समूचे देशके इतिहास में अन्धकारपूर्ण युग कहलाता है, जिसमें कला, साहित्य और संस्कृतिका कोई उल्लेखनीय विकास नहीं हो पाया। नवसृजनकी बातको जाने दें, इस काल में कला और संस्कृतिको भीषण क्षति पहुँची । इस कालमें मन्दिरों और मूर्तियोंका भयंकर विनाश किया गया।
ध्वस्त जैन मन्दिर
विनाश चक्र जैन मन्दिर भी न बच पाये । कलाकी विनाश - लीलाके इस कालमें कितने जैन मन्दिरों और मूर्तियों का विध्वंस हुआ, यह जाननेका कोई प्रामाणिक साधन हमारे पास नहीं है । किन्तु एक मन्दिरके विध्वंसके तो निश्चित प्रमाण आज भी उपलब्ध है ।
ऊपर उल्लेख किया जा चुका है कि अनंगपाल (तृतीय) का मुख्यमन्त्री अग्रवालवंशी साहू था । उसीकी प्रेरणासे कवि बुध श्रीधरने सं. १९८९ में अपभ्रंश भाषा के 'पार्श्वनाथ चरित्र' की रचना की थी। एक स्थानपर कविने नट्टल साहूकी प्रशंसा करते हुए एक तथ्यका उद्घाटन किया है कि नट्टल साहूने एक सुन्दर जैन मन्दिरका निर्माण कराया है । कवि लिखता है -
नाराध्य विशुद्ध-धीरमतिना देवाधिदेवं जिनं सत्पुण्यं समुपार्जितं निजगुणैः संतोषिता बान्धवाः । जैनं चैत्यमकारि सुन्दरतरं जैनीं प्रतिष्ठां तथा
स श्रीमान् विदितः सदैव जयतात् पृथ्वीतले नट्टलः ॥
- पार्श्वनाथचरित, सन्धि-५
अर्थात् जिसने निर्मल बुद्धिसे देवाधिदेव जिनेन्द्रदेवकी आराधना करके पुण्योपार्जन किया है, जिसने अपने गुणोंसे बान्धव जनको सन्तुष्ट किया है, जिसने सुन्दर जैन मन्दिरका निर्माण कराके उसकी प्रतिष्ठा करायी है, उस सुप्रसिद्ध श्री सम्पन्न नट्टलकी इस दुनियामें जय हो ।
१. नागरी प्रचारिणी पत्रिका, भाग १, पृ. ४०५, टिप्पण ४४ ।