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________________ २१३ परिशिष्ट-१ होनेके कारण इसे योगिनीपुर भी कहते थे। इस प्रकारके पीठस्थान उज्जयिनी, दिल्ली और अजमेरमें थे तथा आधा भरुकच्छमें था । किन्तु लगता है, दिल्लीका पीठस्थान अधिक लोकमान्य और चमत्कारपूर्ण रहा होगा। अतः इस पीठस्थानकी ख्यातिके कारण नगरका योगिनीपुर नाम पड़ गया। दिल्लीको किसने बसाया दिल्लीकी स्थापना किसने की, इस जिज्ञासाका समाधान वि. सं. १३८४ के उस शिलालेखसे हो जाता है, जो दिल्ली म्युजियममें विद्यमान है। उसमें लिखा है देशोऽस्ति हरियानाख्यो पृथिव्यां स्वर्गसन्निभः।" ढिल्लिकाख्या पुरी तत्र तोमरैरस्ति निर्मिता ।। इसमें बताया गया है कि हरियाना देशमें ढिल्लिका नगरीको तोमरोंने बसाया। ढिल्लिका ( अथवा ढिल्ली ) हरियाना देशकी राजधानी थी। इतिहासकारोंके मतानुसार जिस तोमरवंशी राजाने इस नगरी की स्थापना की थी. वह अनंगपाल प्रथम था। इसका राज्या भिषेक कनिंघमके अनुसार सन् ७३६ में हुआ था। पं. लक्ष्मीधर वाजपेयीकी भी मान्यता यही है । तोमर राजा प्रतिहारोंके करद थे। अनंगपाल प्रथमके वंशजोंने ढिल्लीपर कुछ वर्षों तक राज्य किया। उन्हें चन्द्रदेव राठौड़ने भगा दिया। वे लोग यहाँसे भागकर कन्नौज चले गये। फिर द्वितीय अनंगपाल दिल्लीमें आया और उसे जीतकर अपनी राजधानी बनायी। उसका राज्याभिषेक वि. सं. ११०८ (सन् १०५१ ) में हुआ। उसने नवीन शहर बसाया। इस शहरके अवशेष कुतुबमीनारके आसपास अब भी मिलते हैं। _अनंगपाल ( द्वितीय ) से लगभग सौ वर्ष बाद अनंगपाल ( तृतीय ) हुआ। इसकी पुष्टि कविवर बध श्रीधर द्वारा रचित पार्श्वनाथ चरित ( रचनाकाल सं. ११८९ ) से भी होती है। उसमें हरियाणा प्रदेशको राजधानी ढिल्लोका वर्णन करते हुए लिखा है जहिं असिवर तोडिउ रिउ कपालु । णरणाहु प्रसिद्ध अणंगवालु । णिरुदलवढिय हम्मीर वीरु। वंदियणविंद पवियण्ण चीरु ।। रससंग्राही ( अथवा सुसंग्राही या रुद्रसंग्राही ), शबरा ( या शम्बरा ), तालजंधिका, रक्ताक्षी, सुप्रसिद्धा, विद्युज्जिह्वा, करंकिणी, मेघनादा, प्रचण्डा, उग्रा, कालकर्णी, वरप्रदा, चण्डा (अथवा चन्द्रा), चण्डवती ( या चन्द्रावती ), प्रपंचा, प्रलयान्तिका, शिशुवक्त्रा, पिशाची, पिशितासवलोलुपा, धमनी, तपनी, रागिणी ( अथवा वामनी), विकृतानना, वायुवेगा, बृहत्कुक्षी, विकृता, विश्वरूपिका, यमजिह्वा, जयन्ती, दुर्जया, जयन्तिका ( अथवा यमान्तिका), विडाली, रेवती, पूतना और विजयान्तिका।। -अग्निपुराण, अध्याय ५२ योगिनियाँ आठ अथवा चार हाथोंसे युक्त होती हैं । इच्छानुसार शस्त्र धारण करती है । १. Archeological Survey of India, Vol. I., p. 149 २. दिल्ली अथवा इन्द्रप्रस्थ, पृष्ठ ६ । ३. मि. कनिंघम। ४. पं. लक्ष्मीधर वाजपेयी-दिल्ली अथवा इन्द्रप्रस्थ ।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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