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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
अर्थात् हरियाणा देशमें असंख्य ग्राम हैं। वहाँके ग्रामीण लोग बड़े अध्यवसायी हैं। उन्हें दूसरेकी अधीनता स्वीकार नहीं है और शत्रुका रुधिर बहानेमें वे अभ्यस्त हैं। स्वयं इन्द्र इस देशकी प्रशंसा करते हैं । इस देशको राजधानी दिल्ली है।
इसी प्रकार 'गणधरसार्द्ध शतक बृहद्वृत्ति' जिसकी रचना वि. सं. १२९५ में हुई थी, में ११वीं शताब्दीके श्वेताम्बर आचार्य वर्द्धमानसूरिके सम्बन्धमें इस प्रकार विवरण मिलता है। ___ "स्वाचार्यानुज्ञातः कतिपययतिपरिवृतः ढिल्ली-बादलीप्रमुखस्थानेषु समाययौ।"
अर्थात् ( आचार्य वर्द्धमानसूरि ) अपने गुरुकी आज्ञा लेकर कुछ यतियोंके साथ ढिल्लीबादलीको गये।
दिल्ली और बादली आज भी विद्यमान हैं । बादली दिल्लीमें ही सम्मिलित है।
ढिल्लीकी तरह जोइणीपुर या योगिनीपुरका उल्लेख भी अनेक प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है । यह नाम भी लगभग एक हजार वर्ष पूर्व प्रचलित था। ढिल्लीको ही योगिनीपुर कहते थे।
बादशाह गयासुद्दीन तुगलकके समयमें (हिजरी सन् ७२५ में ) लिखा हुआ एक शिलालेख जो सं. १३६५ का है, और दमोहके पास बटियागढ़में मिला था, उसमें लिखा है
अस्ति कलियुगे राजा शकेन्द्रो वसुधाधिपः। योगिनीपुरमस्थाय यो भुङ्क्ते सकलां महीम् ।। सर्वसागरपर्यन्तं वशीचक्रनराधिपान्।
महमूद सुरत्राणो नाम्ना शूरोऽभिनन्दतु ॥ अर्थात् कलियुगमें एक शकेन्द्र ( मुसलमान ) राजा है जो योगिनीपुरमें रहकर समस्त पृथ्वीका भोग करता है और जिसने सागर पर्यन्त राजाओंको वशमें किया है। वह शूरवीर महमूद सुलतान यश प्राप्त करे।
इसी प्रकार वि. सं. १३०५ में खरतरगच्छीय जिनपालोपाध्यायने 'यगप्रधानाचार्य गर्वावली' नामक एक ग्रन्थकी रचना की थी। इसमें मणिधारी आचार्य जिनचन्द्रसूरिका जीवन-परिचय दिया गया है। एक बार योगिनीपुरके राजा मदनपालने आचार्य मणिधारीजीसे योगिनीपुर पधारनेका अनुरोध किया। उस समय मणिधारीजीके गुरु श्री जिनदत्त सूरिने अपने प्रतापी शिष्यको योगिनीपुर जानेका निषेध किया था। किन्तु मणिधारीजी महाराज फिर भी योगिनीपुर गये। इसी प्रसंगका वर्णन करते हुए ग्रन्थमें लिखा है
'श्री मदनपालमहाराजोपरोधात् युष्माभिर्योगिनीपुरमध्ये कदापि न विहर्तव्यमित्यादि श्रीजिनदत्तसूरिदत्तोपदेशत्यागेन हृदये दयमाना अपि श्रीपूज्याः श्रीढिल्ली प्रति प्रस्थिताः।'
इस अवतरणमें योगिनीपुर और दिल्ली ये दोनों ही नाम आये हैं। इससे लगता है कि इन दोनोंका कुछ समय तक साथ-साथ प्रचलन रहा है। उपर्युक्त गुर्वावली ग्रन्थसे इस रहस्यपर भी प्रकाश पड़ता है कि दिल्लीका नाम योगिनीपुर क्यों पड़ा। यहाँपर ६४ योगिनियोंका पीठस्थान
१. नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ४४ में मध्यप्रदेशका इतिहास नामक लेख । २. ६४ योगिनियोंके नाम इस प्रकार हैं
अक्षोभ्या, रूक्षकर्णी, राक्षसी, क्षपणा, क्षमा, पिंगाक्षी, अक्षया, क्षेमा, इला, नीलालया, लोला, रक्ता, ( लक्ता ), बलाकेशी, लालसा, विमला, दुर्गा ( या हुताशा), विशालाक्षी, हींकारा ( या हुंकारा), बड़वामुखी, महाक्रूरा, क्रोधना, भयंकरी, महानना, सर्वज्ञा, तरला, तारा, ऋग्वेदा, हयानना, सारा,