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________________ देहली दिल्ली या देहली भारतकी राजधानी है। भारतका राजनीतिक केन्द्र होने तथा विश्वको राजनीति में प्रभावक भाग लेनेके कारण देश और विदेशोंको दृष्टिमें दिल्लीका अत्यधिक महत्त्व है। अपने इस अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्वके कारण अब यह सांस्कृतिक और आर्थिक केन्द्र भी बनती जा रही है। एशियाके सम्भावित नेतृत्व और अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्रमें अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिकाके कारण आज देहलीको जो स्थान प्राप्त है, सम्भवतः इससे पहले इसे यह स्थान कभी नहीं मिला । पुरातनकालसे भारतके इतिहासमें इसे सदा ही युद्धों और विनाशोंके बीचसे गुजरना पड़ा है। यह अनेक बार बसी, उजड़ी, और फिर बसी। वर्तमान देहलोके चारों ओर फैले हए ध्वंसावशेष इसके साक्षी हैं और ये विभिन्न समयों के विभिन्न राजवंशोंके इतिहासको अपने सीने में दबाये पड़े हैं। दिल्लीके नाम ___ साहित्यमें इसका सर्वप्रथम उल्लेख हमें इन्द्रप्रस्थके रूपमें महाभारत कालमें मिलता है। बादमें समय-समयपर इसके नामोंमें परिवर्तन होता रहा । इसलिए साहित्यमें इस नगरके कई नाम मिलते हैं, जैसे ढिल्ली, ढिल्लिका, योगिनीपुर, जोइणीपुर, जहानाबाद, दिल्ली, देहली। अपभ्रंश भाषाके ग्रन्थों में दिल्ली और जोइणीपुर ये दो नाम ही मिलते हैं। एक किंवदन्ती है कि सम्राट् समुद्रगुप्तने लोहेकी एक लाट इन्द्रप्रस्थमें गड़वायी थी। तोमरवंशी राजा अनंगपाल (प्रथम ) से किसी ज्योतिषोने यह कहा कि यह लाट जितनी अधिक स्थिर होगी, आपका राज्य भी उतना अधिक स्थिर रहेगा। राजा अनंगपालने दुबारा मजबूत गड़वानेके विचारसे लोहेकी लाट ( किल्ली ) उखड़वायी तो देखा कि एक ओर उसके किनारेपर खून लगा हुआ है । राजाने लोहेकी वह किल्ली पुनः वहीं गड़वा दी। किन्तु अबकी बार वह कीली उतनी नीची नहीं गयी, जितनी पहले चली गयी थी। अतः वह कीली कुछ ढीली रह गयी, जिससे लोग इसे ढीली या ढिल्ली कहने लगे। ढिल्ली ही बदलते-बदलते दिल्ली बन गयी। और अंगरेजोंके जमानेमें दिल्लीको देहली कहा जाने लगा। ढिल्ली शब्दका प्रयोग ग्यारहवीं शताब्दी और उसके पश्चाद्वर्ती कालमें खूब होने लगा था। अपभ्रंश और प्राकृतके कई जैनग्रन्थों तथा शिलालेखोंमें, जो आजसे प्रायः एक हजार वर्ष प्राचीन हैं, ढिल्लीका उल्लेख मिलता है। दिल्लीके इतिहास-निर्णयमें इन जैनग्रन्थों और शिलालेखोंका अपना विशेष महत्त्व है। वि. सं. ११८९ (सन् ११३२)में कवि श्रीधरने अपभ्रंश भाषामें पार्श्वपुराणकी रचना की थी। इस ग्रन्थकी रचना दिल्लीके तत्कालीन नरेश अनंगपाल ( तृतीय) के मुख्य मंत्री श्रावकप्रवर नट्टल साहूकी प्रेरणासे की गयी थी। इसमें कवि ढिल्लीका वर्णन करते हुए लिखता है 'हरियाणए देसे असंखगाम । गामिययण जणि अणवरय काम । परचक्क विहट्टणु सिरिसंघट्टणु जो सुरवइणा परिगणियं । रिउ रुहिरावट्टणु बिउलु पवट्टणु ढिल्ली नामेण जि भणियं ।।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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