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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
के लिए ऐसे स्थल पवित्र तीर्थस्थल हैं जहाँ किसी धर्म, जाति, सम्प्रदाय और वर्गके भेदभावके बिना केवल स्त्रीant निष्कलंक गौरव गाथा गूँजती है । दूसरा स्थल है आल्हा ऊदलका बैठका | ये दो भवन हैं जो आल्हा और ऊदलसे सम्बन्धित बताये जाते हैं । आल्हा ऊदल महाराज पृथ्वीराजके दरबारके दो सामन्त-पुत्र थे । किन्तु वे अपने दुस्साहस, शौर्य और वीरता के लिए प्रसिद्ध थे । उनकी वीरताकी सम्भव असम्भव कहानियाँ और गीत बुन्देलखण्ड और ब्रज- प्रदेशमें अब भी बड़े चाव से गाये और सुने जाते हैं ।
ये दोनों भवन पुरातत्त्व विभागके संरक्षण में हैं । ये मदनपुर ग्राम के पूर्व-दक्षिण में १० फुट ऊँची पत्थर की कुरसी पर निर्मित हैं । उल्लेखनीय बात यह है कि इन भवनोंकी छतें एक ही पत्थर से बनी हैं। एक छतका आकार १३ || ८ || फुट है और इसके लिए एक ही पत्थर काममें लाया गया है । इसी प्रकार स्तम्भोंमें एक ही पत्थर तराशकर लगाया गया है । उदाहरणके तौरपर एक खम्भा ६। फुट लम्बा, ५||| फुट मोटा अठपहलूदार है । इसके ऊपर छह इंच मोटा गोलाकार पाषाण है । यह सब एक ही पत्थरको तराशकर बनाया गया है । ये सब पत्थर जो मकान के काम में आये हैं, यहीं की खानसे निकाले गये थे । यह भी कहा जाता है कि इन दोनों अप्रतिम वीरोंने इन पत्थरों को अपने हाथोंसे उठाकर खुद ही इस मकानका निर्माण किया था ।
वार्षिक मेला
क्षेत्रपर फागुन कृष्ण चतुर्दशीसे पंचमी तक प्रति वर्ष वार्षिक मेला भरता है । इस मेले में आसपास के हजारों जैन - जैनेतर व्यक्ति आते हैं और जिनेन्द्र देवके दर्शन करते एवं अन्य धार्मिक आयोजनों में सम्मिलित होते हैं ।
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श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र करगुवाँ झाँसी शहरसे ५ कि. मी. की दूरीपर झाँसी-लखनऊ राजमार्गपर मेडिकल कालेजके ठीक सामने आधा कि. मी. दूर पहाड़ीकी मनोरम तलहटी में
स्थित है। यहाँ आठ एकड़ जमीनपर प्राचीन परकोटा बना हुआ है । क्षेत्र इसी परकोटेके अन्दर है । परकोटेके अन्दर आम, जामुन आदि फलदार वृक्ष लगे हुए हैं तथा कुछ भूमिपर खेती भी होती है । मन्दिर भूगर्भ ( भोयरे ) में है। पहले यहाँ अन्धकार रहता था । किन्तु कुछ समय पहले जैन समाजने यहाँ जीर्णोद्धार कराया था । अब तो भूगर्भ में एक विशाल हॉल बन गया है और उसमें प्रकाशकी समुचित व्यवस्था हो गयी है ।
इस भोंयरेमें अब केवल सात प्रतिमाएँ हैं । छह प्रतिमाओं पर संवत् १३४३ खुदा हुआ है और एक महावीर स्वामीकी प्रतिमापर संवत् १८५१ खुदा हुआ है । यहाँ मूलनायक भगवान् प्रतिमा पार्श्वनाथकी है । इस प्रतिमाके निकट प्रायः सर्प देखे गये हैं किन्तु किसीको उन्होंने कभी भी. काटा नहीं । अनेक भक्तजन यहाँ मनौती मनाने आते हैं । इस कारण यह अतिशय क्षेत्रके रूपमें प्रसिद्ध है ।
इन सात प्रतिमाओं में पाँच पद्मासन हैं तथा दो खड्गासन प्रतिमाएँ हैं । ये प्रायः तीनसे चार फुट ऊँची हैं ।
यहाँ पहले बहुत मूर्तियाँ थीं । किन्तु कहते हैं कि अँगरेजोंने जब १८१४ ई. में झाँसी पर आक्रमण किया था, उस समय उच्छृंखल अँगरेज सैनिकोंने बहुत-सी मूर्तियोंको तोड़-फोड़ डाला ।