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उत्तरप्रदेश के दिगम्बर जैन तीर्थं
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है । इससे यह भी अनुमान होता है कि पंचमढ़ीके पाँचों मन्दिर उस मन्दिरसे बादमें बनाये गये थे । यही बात पहाड़ीके तीसरे कोनेके मन्दिरसे प्रतीत होती है । क्योंकि वहाँ भी बीचका बड़ा मन्दिर वैसा ही है और चबूतरेके चारों कोनोंपर मन्दिरोंके भग्नावशेष दृष्टिगोचर होते हैं ।
यहाँ पास ही एक छोटी नदी है । उसमें अनेक जैन मूर्तियाँ पड़ी हुई हैं ।
नगरका इतिहास
चम्पोमढ़से लगभग दो फर्लांग आगे प्राचीन भवनोंके खण्डहर पड़े हुए हैं, जो पुरपट्टन नगरके कहे जाते हैं । पूर्व कालमें यहाँ श्री सम्पन्न पुरपट्टन या पाटनपुर नामका एक नगर था । राजा मदनसेन इस नगर के शासक थे । आमोती दामोती नामकी उनकी दो रानियाँ थीं । एक किंवदन्ती प्रचलित है कि दोनों रानियाँ प्रतिदिन नयी साड़ी पहनती थीं। दूसरे दिन उन साड़ियोंको गरीबोंके लिए दान कर देती थीं । विशेषता यह थी कि वे साड़ियाँ इसी नगरमें बनायी जाती थीं। इस काम में ३६५ जुलाहे नियुक्त थे । राज्यकी ओरसे उनके भरण-पोषणकी समुचित व्यवस्था थी । एक जुलाहा वर्षमें दो साड़ियाँ बनाकर देता था । सत्रहवीं शताब्दी में इन्हीं मदनसेन के नामपर मदनपुर नामक नगर की स्थापना हुई । बुन्देलखण्डके इतिहासमें राजा मदनसेन और उनकी आमोती दामोती रानियोंकी बड़ी ख्याति रही है ।
बाजना बावड़ी
मोदीमढ़के नीचे पूर्वको ओर एक प्राचीन बावड़ी बनी हुई है जिसे बाजना बावड़ी कहा जाता है। बावड़ी में पत्थर डालनेसे ऐसी आवाज होती है जैसे बर्तनपर पत्थर पड़नेसे होती है । यह भी किंवदन्ती प्रचलित है कि इस नगर में जब कोई धार्मिक समारोह या उत्सव होता था और उसके लिए जितने बरतनोंकी आवश्यकता होती थी तो धार्मिकजन बावड़ीके तटपर आकर अपनी आवश्यकता का निवेदन कर देते थे और तत्काल उनकी आवश्यकता पूरी हो जाती थी ।
इस बावड़ी के निकट एक खेत में एक विशाल आकारकी तीर्थंकर मूर्ति पड़ी हुई है। मूर्ति खण्डित है । स्थानीय लोग उसे 'दाना देवता' कहते हैं और उस खेतको 'दानेका खेत' ।
मोदीमढ़
यहाँ एक मढ़ और है जिसे मोदीमढ़ कहा जाता है । यह पाटनपुर नगरकी ओर चम्पोमढ़से दो फल की दूरी पर स्थित है । यह पूर्वाभिमुख है। इसका शिखर जीर्ण-शीर्ण है। गर्भगृहका फर्श उखड़ा हुआ है । मढ़की दीवालें ५ || फुट चौड़ी हैं और उनकी ऊँचाई २५ फुट है । इसमें तीन प्रतिमाएँ विराजमान हैं। मध्यमें शान्तिनाथकी प्रतिमा है जो ९ फुट ऊँची है। उसके दायेंबायें शान्तिनाथ और महावीरकी - ६ फुट ऊँची प्रतिमाएँ विराजमान हैं। तीनोंपर मूर्तिलेख हैं । इसके अनुसार मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा फाल्गुन शुक्ल ४ सं. १६८८में हुई थी । उसके चारों कोनों पर चार मढ़ होने चाहिए। उनके अवशेषोंके टीले बने हुए हैं । इन टीलोंमें ही एक वृक्षके सहारे भगवान् ऋषभदेवकी ८ फुट ऊँची खड्गासन प्रतिमा मौजूद है ।
दर्शनीय स्थल
यहाँ आस-पासमें दो स्थल दर्शनीय हैं, जिनका अपना ऐतिहासिक महत्त्व है । एक तो पुरपट्टन नगर ध्वंसावशेषों के बीच बना हुआ जौहर कुण्ड, जहाँ आततायियोंसे अपने शीलधर्म की रक्षाके लिए अगणित भारतीय वीरांगनाओंने अग्निमें हँसते हुए कूदकर जौहर व्रत किया था। भारतीय आत्मा