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________________ २०४ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ अभिलिखित हैं। इनमें दो मूर्तियाँ वि. सं. १३१२ की हैं। दो मूर्तियाँ सं. १६१८ की हैं। एक मूर्ति-लेख अस्पष्ट है। इन मढ़ोंका जीर्णोद्धार हो चुका है। पंचमढ़ीके सामने पश्चिमाभिमुख एक विशाल मन्दिर है जो तीन फुट ऊँची कुरसीपर बना है। यह २८ फुट ऊँचा है। मन्दिरके आगे चार पाषाण-स्तम्भोंपर आधारित मण्डप बना हुआ है। मन्दिर के ऊपर शिखर बना हुआ है और शिखरमें एक कोठरी बनी हुई है। मन्दिरके प्रवेश-द्वारके ऊपर पद्मासन मूर्ति अंकित है। प्रवेश-द्वारसे गर्भगृह साढ़े चार फुट गहरा है। गर्भगृहमें तीन खड्गासन प्रतिमाएँ हैं। मध्यमें १० फुट ऊँची भगवान् शान्तिनाथकी प्रतिमा है, जो खण्डित है। मूर्ति-लेखके अनुसार इसका प्रतिष्ठा-काल वि. सं. १२०४ है। इसके दोनों ओर सात फुट अवगाहनावाली भगवान् कुन्थुनाथ और अरनाथकी प्रतिमाएँ हैं। इनके अतिरिक्त दो मूर्तियाँ खण्डित पड़ी हुई हैं, जिनके धड़ मन्दिर में हैं तथा सिर मन्दिरके बाहर पड़े हुए हैं। एक ढाई फुट ऊँची सर्वतोभद्रिका प्रतिमा रखी हुई है। मन्दिरके बाहर एक शिला-फलकपर एक फुट ऊँची पन्द्रह तीर्थंकर मूर्तियाँ बनी हुई हैं । एक भग्न मानस्तम्भ भी है। इस मन्दिरसे लगभग ३०० गज आगे एक खण्डित मढ़ मिलता है। अब तो यह टीला बन गया है। अब भी नौ फूट ऊँची एक मति इन खण्डहरोंके बीचमें खड़ी हुई है किन्तु घुटनों तक यह मिट्टीमें डूबी पड़ी है। इन भग्नावशेषोंमें खोज की जाये तो अनेक मूर्तियाँ निकलनेकी सम्भावना है। इस स्थानसे लगभग दो फलाँग उत्तरकी ओर बढ़नेपर चम्पोमढ़ मिलता है। इसके मार्गमें पहले कँटीली झाड़ियोंका बीहड़ जंगल पड़ता था किन्तु अब मार्ग बन गया है। जंगल साफ हो गया है। इस समय यहाँ एक ही मन्दिर है। किन्तु चारों ओर मतियों और मन्दिरोंके इतने अवशेष पड़े मिलते हैं, जिनसे अनुमान होता है कि यहाँ भी चारों कोनोंपर चार मढ़ बने हुए होंगे। मन्दिरके बाहर मण्डप बना हुआ है। इसके प्रवेश-द्वारसे गर्भगृह ४॥ फूट निचाई में है। मन्दिरकी दीवालोंपर नाना प्रकारके देवी-देवताओं और पशु-पक्षियोंके चित्र बनाये हुए हैं। इसी प्रकार प्रवेशद्वारकी दीवालोंपर और इधर-उधर नाना प्रकारके जीवोंके चित्र उत्कीर्ण किये गये हैं। गर्भगृहमें अष्ट प्रातिहार्ययुक्त तीन मूर्तियाँ विराजमान हैं। मध्यवाली मूर्तिका आकार लगभग ९ फुट ३ इंच है। इसके मूर्ति-लेखके अनुसार इसकी प्रतिष्ठा 'फाल्गुन शुक्ला १०, वि. सं. १२०४ को हुई थी। इसके दोनों ओर ७-७ फुट ऊँची भगवान् महावीरको प्रतिमाएँ हैं। इनके चरणोंके समीप २।।२।। फुटक छह इन्द्र और चमरवाहक हैं। मतियों के हाथ खण्डित हैं। इन मूतियोकं ऊपर दीवालम भी दो पद्मासन लाल पाषाणकी प्रतिमाएँ अंकित हैं।। इस मढ़के तीन कोनोंपर यद्यपि वर्तमानमें कोई मन्दिर नहीं है, केवल भग्नावशेषोंके टीले बने हुए हैं, किन्तु मढ़के दक्षिणकी ओर एक और अर्धभग्न मढ़ बना हुआ है। केवल दीवालें खड़ी हैं। इस मढ़में शान्ति-कुन्थु-अरनाथकी खड्गासन प्रतिमाएँ विराजमान हैं। मध्यकी प्रतिमा १० फुटकी और शेष दोनों प्रतिमाएं ७ फुटकी हैं। इस मढ़का नाम चम्पोमढ़ पड़नेका कारण चम्पोवृक्ष हैं, जो इस मढ़के चारों ओर अब भी विपुल मात्रामें लगे हुए हैं। ___इस मन्दिरके देखनेसे प्रतीत होता है कि एक चबूतरेपर चारों कोनोंपर मन्दिर होंगे। चम्पोमढ़ीकी मूर्तियाँ १२०१ संवत् की हैं। यदि पंचमढ़ी और चम्पोमढ़ीकी परस्पर तुलना की जाये तो चम्पोमढ़ीका बीचका मन्दिर सबसे सुन्दर सिद्ध होगा। पंचमढ़ीपर जो पाँचों मन्दिर हैं, वे अच्छी दशामें नहीं हैं और जो एक मन्दिर अलग बना हुआ है, वही मुख्य मन्दिर मालूम होता
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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