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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
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इस क्षेत्रके अतिशयोंकी अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। कहते हैं, लगभग दो सौ वर्ष पहलेकी बात है। एक गाडी खण्डित जिनप्रतिमाओंसे भरी हुई इधरसे निकली। जैसे ही वह गाड़ी मन्दिरकी भूमिसे गुजरने लगी, गाड़ी वहीं रुक गयी। उस समय झाँसीका नाम बलवन्तनगर था। यह समाचार वहाँ भी पहुंचा। अनेक व्यक्ति आये, अनेक उपाय किये, किन्तु गाड़ी नहीं चली।
उसी रातको बलवन्तनगरके प्रमुख जैन पंच श्री नन्हेजूको स्वप्न हुआ कि जिस स्थानपर गाडी रुकी है उसके नीचे जमीनमें जैनमतियाँ हैं। उन्हें तुम निकलवाओ। प्रातःकाल श्री नन्हेजने यह स्वप्न अपने मित्रों और परिचितोंको सुनाया और तब यह निश्चय हुआ कि उस स्थानकी खुदाई करायी जाये। सब लोग उस स्थानपर गये और खुदाई आरम्भ की गयी। कुछ गहरा खोदनेपर मूर्तियाँ दिखाई देने लगीं। तब यह निश्चय हुआ कि पहले रक्षाका प्रबन्ध हो जाये, तभी आगे खुदाई करायी जाये । इस निर्णयके अनुसार खुदाई रोक दी गयी।
उस समय बलवन्तनगरमें बाजीराव पेशवा द्वितीयका शासन था। श्री नन्हेजू उनके सम्मानप्राप्त दरबारी थे। सिंघईजीने दरबारमें जाकर यह आश्चर्यजनक समाचार सुनाया। चर्चाके पश्चात् यह निश्चय हुआ कि महाराज उस स्थानपर जायेंगे। तदनुसार महाराज और सिंघईजी घोड़ोंपर करगुवाँ पहुँचे। उनके सामने खुदाई की गई। थोड़ी देरमें भव्य जिन प्रतिमाएं प्रकट हुईं । जनता हर्षित होकर जय-जयकार करने लगी। - तभी महाराज और नन्हेजूने मनोरंजनके तौरपर घोड़ोंकी दौड़का निश्चय किया। दोनोंने घोड़े दौड़ाये । भाग्यने सिंघईजीका साथ दिया। उनका घोड़ा जीत गया। महाराजने उनसे इच्छानुसार इनाम लेनेका आग्रह किया। सिंघईजीने अवसरका लाभ उठाकर उस भूगर्भ स्थानके चारों ओर आठ एकड़ जमीन माँग ली। महाराजने उन्हें तत्काल प्रदान कर दी। सिंघईजीने समाजके सहयोगसे उस भूमिके चारों ओर परकोटा खिचवाया, बगीचा लगवाया और विशेष समारोहके साथ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा करायी, जिसमें भगवान् महावीरको उपर्युक्त प्रतिमा विराजमान करायी।
क्षेत्रके सामने ही जबसे मेडिकल कालेज खला है, तबसे क्षेत्रपर यात्री अधिक संख्या में आने लगे हैं। अभी मार्च सन् १९७२ में एक विशाल मेला हुआ था। इस भूगृहकी वेदीका जीर्णोद्धार किया गया था और वेदी-प्रतिष्ठा की गयी थी। इस अवसरपर एकत्रित जनसमूहने महावीर शोधसंस्थान और बुन्देलखण्ड महावीर विश्वविद्यालयको स्थापनाका निश्चय किया। शोध-संस्थानका शिलान्यास तो १२ मार्च सन् १९७२ को समाजके विख्यात उद्योगपति दानवीर साह शान्तिप्रसाद जीके कर-कमलों द्वारा सम्पन्न हो चुका है। क्षेत्रसे संलग्न ५५ एकड़ भूमिमें विश्वविद्यालयका निर्माण-कार्य प्रारम्भ हो गया है। वार्षिक मेला
यहाँ वर्षमें दो मेले भरते हैं-चैत्र शुक्ला त्रयोदशी ( भगवान् महावीरका जन्म-दिवस तथा कार्तिक कृष्णा अमावस्या ( भगवान् महावीरका निर्वाण-दिवस)। इसके अतिरिक्त दशलक्षण पर्वके पश्चात् कलशाभिषेकका मेला । यहाँ एक पूजारी और एक माली की व्यवस्था है।
धर्मशालामें दो कमरे हैं। एक पक्के चबूतरेपर टिनका सायबान पड़ा हुआ है। यात्रियोंके लिए सुविधाजनक यह होगा कि वे झाँसीमें जैन धर्मशालामें ठहरें और ताँगे-रिक्शोंसे यहाँ आकर दर्शन-पूजनका आनन्द लें।