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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ यहाँसे थोड़ी ही दर पर चलकर रेलवे लाइन पार करके जब हम जाते हैं तो वहाँ पचासों मन्दिर एकके पास एक लगे टूटे पड़े हुए हैं। ये मन्दिर अधिकतर अजैनोंके हैं। केवल एक मन्दिरमें ही कुछ अंश जैनियोंके मिले हैं । इन भग्नावशेषोंसे थोड़ी दूरपर एक और कोट है जिसमें एक जीर्णशीर्ण महादेवका मन्दिर है। उसमें ३ बड़े-बड़े नादिये हैं और एक गणेशजीकी बड़ी मूर्ति है। इसमें एक कोट है और उसमें लगा हुआ पीछे एक बहुत बड़ा तालाब है। यहाँसे कुछ दूरपर और भी जैन मन्दिर और मूर्तियोंका होना सम्भव है।
दुधई यह स्थान देवगढ़से ३० कि. मी. और ललितपूरसे ५० कि. मी. है ( बाया जाखलोन)। शाहपुरासे यह १६ कि. मी. की दूरीपर अवस्थित है। अन्तिम ३ कि. मी. की सड़क तो बहुत ही खराब हालतमें है।
दुधई गाँवका पुराना नाम महौली है। यहाँपर ३ मन्दिर भग्नावशेष दिखाई देते हैं और वे सभी पुरातत्त्व विभागकी देख-रेखमें हैं। जिनमें दो विशाल मूर्तियाँ हैं। एक १४॥ फुट, दूसरी ११ फुटकी है । यह अच्छी दशामें है । लगभग ६६ टूटी मूर्तियाँ है और विपुल परिमाणमें भग्नावशेष पड़े हैं । यहाँपर कई मूर्तियाँ तो कुछ ही समय पहले खण्डित की गयी प्रतीत होती हैं। पहले मन्दिरकी छत नहीं है और दूसरा मन्दिर भी बहुत टूटी-सी हालतमें है। इस मन्दिरमें एक ११ फुट ऊँची पद्मासन मूर्ति है जो यहाँकी सबसे बड़ी मूर्तियोंमें से है। कुछ दूरपर और भी मन्दिरोंके भग्नावशेष मिलते हैं । दुधईके रास्तेमें आखिरी मीलपर पुरातत्त्व विभागका बोर्ड नजर आता है जिसपर लिखा है 'नेमिनाथकी बारात'। यहाँपर १५० वर्ग फुट भूमिमें बहुत सारी मूर्तियाँ व मन्दिरोंके भग्नावशेष पड़े हैं । अनेक मूर्तियोंके सिर तो हाल ही में कटे प्रतीत होते हैं। सभी मूर्तियाँ और भग्नावशेष बिलकुल खुले मैदानमें पड़े हुए हैं और पुरातत्त्व विभागकी कोई विशेष देख-भाल प्रतीत नहीं होती।
बानपुर - श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र बानपुर 'क्षेत्रपाल' ललिलपुर महरौनी होते हुए ५३ कि. मी. है । क्षेत्रपालसे एक मील आगे बानपुर गाँव है । गाँवमें भी दो विशाल मन्दिर हैं । यह क्षेत्र लगभग २५०x१८५ फुटमें अवस्थित है। इसके चारों ओर परकोटा बना हुआ है किन्तु यह कहीं-कहींसे टूट गया है। यहाँपर एक पुरानी धर्मशाला बनी हुई है, जिसमें पाँच कमरे हैं।
क्षेत्रपर कुल पाँच मन्दिर हैं। यहाँ एक कुआँ है। पूजनके लिए पुजारीको व्यवस्था है। मन्दिर नं. १ में छह फुट ऊँची एक मनोज्ञ प्रतिमा है। एक प्रतिमा संगमरमरकी है जो आधुनिक है। इसी प्रतिमा की पूजा होती है। मन्दिर नं. २ में एक प्रतिमा ९ फुट ९ इंच की है। इसके अतिरिक्त ४ मूर्तियाँ और हैं । मन्दिर नं. ३ में एक पद्मासन प्रतिमा वि. सं. १५४१ की है। मन्दिर नं. ४ में भगवान् शान्तिनाथकी अत्यन्त मनोज्ञ प्रतिमा है, जिसकी अवगाहना १५ फुट है। यही इस क्षेत्रकी मूलनायक प्रतिमा कहलाती है। इस प्रतिमाके दायें-बायें ७ फुट ऊँची मूर्तियाँ भगवान् कुन्थुनाथ और अरनाथ की हैं। इन मूर्तियोंके लेखोंके अनुसार इनका प्रतिष्ठा काल वि. सं. १००१ है। ये चारों मन्दिर चबूतरेपर बने हुए हैं। इस चबूतरे के नीचे एक हौज-सा बना हुआ है।