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- भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ
चार शिखरवत् जिनालय तथा तीन चैत्यालय हैं। (श्री दि. जैन बड़ा मन्दिर, श्री दिगम्बर जैन नया मन्दिर, श्री पार्श्वनाथ अटा मन्दिर, श्री दि. जैन क्षेत्रपाल जी)। श्री दिगम्बर जैन क्षेत्रपाल जी स्टेशनसे चार फलाँगकी दूरीपर एक विशालकोटके अन्दर अद्भुत जिनबिम्ब एवं चैत्यालयोंसे सुशोभित हैं। इसके प्रमुख हाथीद्वारसे प्रवेश करते ही सामने भव्य उत्तुंग मानस्तम्भ है। मानस्तम्भके बाद ही जमीनके समतलसे लगभग १० मीटरकी ऊँचाईपर एक टीलेपर विशाल परकोटेसे वेष्टित मन्दिर हैं जहाँ २ प्राचीन वेदियाँ हैं। मन्दिर नं. ३ दरवाजेके सामने ही है। यह भगवान् अभिनन्दननाथका जिनालय है। इसमें भगवान् अभिनन्दननाथकी श्याम वर्ण पाषाणकी ४ फीट उत्तुंग पद्मासन भव्य प्रतिमा सं. १२४३को प्रतिष्ठित है, जो अत्यन्त मनोज्ञ है।
इसीके नीचे क्षेत्रपाल जीके नामसे एक शिलाखण्ड विद्यमान है। जिसके निकट एक कुण्ड है। ऐसी जनश्रुति है कि यह कुण्ड सतत घी डाले जानेपर भी कभी भरा नहीं जा सका। इसी मन्दिरकी दालानके खम्भेमें नीचे व ऊँचे खण्डमें भी चन्दप्रभ स्वामीकी एक प्राचीन मूति है। मन्दिर नं. ४ में वि. सं. १२२३ की सफेद पाषाणको सुन्दर मूर्ति है जिसमें आवाज आती है।
मन्दिर जी के प्रांगणमें एक विशालकाय हाथी विद्यमान है। जिसके सम्बन्धमें जनश्रुति है कि मध्य रात्रिके समय श्री क्षेत्रपाल जीकी सवारी नगर परिक्रमा हेतु निकलती थी।
मन्दिर नं. ७ में लगभग ७ फुट उत्तं ग वि. सं. १७०६ में निर्मित भगवान् पार्श्वनाथकी खड्गासन मूर्ति चट्टानमें उत्कीर्ण है जिसके चरणसे लेकर मस्तकके ऊपर तक ७ फणोंसे युक्त सर्प चिह्न बना हुआ है। इसकी पालिश चमकदार है। प्रतिमा अत्यन्त मनोज्ञ एवं आकर्षक है। स्मरण करनेसे मनोकामना सिद्ध होती है।
इसीके निकट प्राचीन भोयरा है जिसमें चट्टानमें उत्कीर्ण १२ तीर्थंकरोंकी तथा ३५ देवदेवियोंकी एकसे एक सुन्दर मूर्तियाँ हैं। भगवान् बाहुबलीकी अत्यन्त मनोहर मूर्ति देखते ही बनती है। चट्टानमें उत्कीर्ण पार्श्वनाथ स्वामोको ६ फुट ऊँची एक खड्गासन मूर्ति भी है।
मन्दिर नं. ९ तनिक ऊँचाईपर स्थित है। इसके भीतरकी वेदिकाके पीछे अति प्राचीन विशाल खड़गासन प्रतिमा आवरणसे आवेष्टित है। वेदीके सामने ही द्वारके ऊपर एक आलेमें भोतरकी ओर एक जिनप्रतिमा विराजमान है जो अपनी प्राचीनताको स्वयं साक्षी है। पासमें ही एक वेदिकामें भगवान् पार्श्वनाथकी मूर्ति विराजमान है।
ये सभी मन्दिर अतिशययुक्त हैं। यहाँपर एक विशाल प्रवचन-हॉल है जहाँ अनेक आचार्यों, मुनियोंके चातुर्मास तथा समय-समयपर धार्मिक प्रवचन होते रहे हैं। आध्यात्मिक सन्त पूज्य श्री क्षल्लक गणेशप्रसाद जी वर्णीने अपने चातुर्मासके समय कहा था कि भारत भ्रमणके बाद मैं कहता हूँ कि इस क्षेत्रपालजीसे अधिक सुख-शान्तिदायी मुझे अन्य क्षेत्र प्रतीत नहीं हुआ।
इसी क्षेत्रपालजीकी परिधिमें व्रती आश्रम, छात्रावास, श्री वर्णी जैन कालेज, धर्मशाला, विशाल बगीचा तथा (सरोवर) तलैया का मैदान है। पुलिस लाइनके पीछे भी इसकी काफी जमीन है। सब जमीन ९ एकड़के लगभग है।
ललितपुर नगरमें वि. सं. १७०६, १८४९, १९५५ तथा १९७९ में पंच-कल्याणक प्रतिष्ठाएँ एवं गजरथ महोत्सव हुए, शाहजाद नदीके डोढ़ा घाट के निकट बनी प्रतिष्ठा वेदिकाएं जिनके स्मारक हैं।