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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १९९ सात भोयरे बुन्देलखण्डमें रहे हैं, जिनमें से १ भोयरा पावागिरिका है। ये ७ भोयरे इस प्रकार हैं-पावागिरि, देवगढ़, चन्देरी, सोरौन, करगुवाँ, पपौरा और थूबौन। कहा जाता है कि ये सातों भोयरे देवपत-खेवपतके बनवाये हुए हैं। इस भोयरेमें कुल ६ मूर्तियाँ हैं जो तीर्थंकर मल्लिनाथ, ऋषभनाथ, पार्श्वनाथ तथा नेमिनाथ आदिकी हैं। ये मूर्तियाँ वि. संवत् १२९९ एवं १३४५ की हैं । परन्तु जो मूर्तियाँ बावड़ीसे खुदाईमें मिली हैं उनमें एकपर वि. सं. १२९९ पड़ा हुआ है जिसकी प्रतिष्ठा यहीं हुई थी क्योंकि मूर्ति पर पवा शब्द लिखा हुआ है। इस प्रकार यहाँकी प्राचीनता असन्दिग्ध है । यह सिद्ध क्षेत्र है। हिन्दी निर्वाण काण्डमें कहा हैस्वर्णभद्र आदि मुनिचार, पावागिरिवर शिखर मझार । चेलना नदी तीरके पास, मुक्ति गये बन्दों नित तास। यहाँपर नवीन तीन जिनालय हैं। ३३ फुट ऊँचा एक मानस्तभ है। बाहुबली स्वामीको एक भव्य मति भी विराजमान की गयी है। सन १९७० में यहाँ गजरथ महोत्सव हुआ था। उस समय इसकी प्रतिष्ठा हुई थी। पहाड़ीपर सुवर्णभद्र आदि मुनिराजोंके चरण-चिह्न और उनके ऊपर ३० फुट ऊँची छतरी बनी हुई है। ___ यात्रियोंके ठहरनेके लिए धर्मशाला बनी हुई है। क्षेत्रका वार्षिक मेला मंगसिर कृष्णा २ से ५ तक होता है । यहाँके 'भूरे बाबा' सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं, ऐसी प्रसिद्धि है। आवश्यक निवेदन पावागिरि सिद्धक्षेत्रके स्थानके सम्बन्धमें विवाद है। प्रचलित मान्यता उनके निकटवर्ती पावागिरिकी है। पवाजी अतिशय क्षेत्रके रूपमें प्रसिद्ध रहा है, किन्तु कुछ समयसे बुन्देलखण्डका प्रबुद्ध वर्ग यह दावा कर रहा है कि 'पवाजी ही वास्तविक पावागिरि है। बेतवा नदी ही वास्तव में चेलना नदी है। इसलिए स्वर्णभद्र आदि चार मुनि जिस पावागिरिसे चेलनाके तटपर मुक्त हुए हैं, वह पावागिरि और चेलना यही है।' विस्तारभयसे इस सम्बन्धमें यहाँ अधिक कुछ नहीं लिखा जा सकता। मध्यप्रदेश सम्बन्धी ग्रन्थके तृतीय भागमें, जहाँ पावागिरिके सम्बन्धमें विवेचन किया है, इस विषयपर विस्तारपूर्वक चर्चा की गयी है। ललितपुर (क्षेत्रपाल) स्थिति मध्य रेलवेके झाँसी-बीना जंकशनके बीच ललितपुर स्टेशन है जो उत्तरप्रदेशके जिला झाँसी मण्डलके अन्तर्गत बुन्देलखण्डका प्रमुख नगर है। भारतीय इतिहासके आधारपर यह स्थान चन्देल कलचुरी वंशके शासकोंके अधीन था। वर्तमानमें यहाँपर लगभग एक हजार दि. जैन परिवार हैं। यह नगर दि. जैन तीर्थ क्षेत्रोंका जंकशन है। क्योंकि इसके चारों ओर यहाँसे लगभग ३० कि. मी. दूरीपर श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र देवगढ़ जी, ३० कि. मी. की दूरीपर श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र सैरोन जी, ३६ कि. मी. की दूरीपर दि. जैन अतिशय क्षेत्र चन्देरी, २० कि. मी. पर थूबौन जी एवं ६० कि. मी. की दूरीपर श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र पपौरा जी, अहार जी आदि विख्यात क्षेत्र हैं। इन्हीं विश्व विख्यात क्षेत्रोंसे घिरे हुए ललितपुर नगरके बीच विशाल एवं प्राचीन
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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