SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ शिलाएँ, टूटे हुए मन्दिर और मूर्तियाँ आदि। यहाँ आस-पासके क्षेत्रमें व्यवस्थित खुदाईको आवश्यकता है। उसमें जो वस्तुएँ उपलब्ध हों, उन्हें संग्रहालयमें सुरक्षित रख देना चाहिए। इससे उन नष्ट प्राय मूर्तियोंका जीवन सुरक्षित हो सकेगा। पवाजी ( पावागिरि) दिगम्बर जैन क्षेत्र पावागिरि उत्तरप्रदेशमें झाँसी जिलेके अन्तर्गत है । इसका पोस्ट आफिस पावा है। यह जगह झाँसीसे ४१ कि. मी. और ललितपुरसे ४८ कि. मी. है। उन दोनों स्टेशनोंके मध्यमें मध्य रेलवे के बसई अथवा तालबेहट स्टेशनपर उतरना चाहिए जो यहाँसे क्रमशः १३-१४ कि. मी. की दूरीपर पूर्व में हैं। यह क्षेत्र सिद्धोंकी पहाड़ीपर स्थित है। कड़ेसरा तक सिमेण्ट रोड है। यहाँसे क्षेत्र केवल ३ कि. मी. है। यहाँपर मोटर व जीप जा सकती है। कच्चे मार्गमें २ नाले पड़ते हैं। क्षेत्रके पश्चिममें बेतवा नदी बहती है। दो पहाड़ियोंमें-से एक पहाड़ी 'सिद्धोंको पहाड़ी' कहलाती है जिसपर २ मढ़ियाँ बनी हैं। दोनोंकी बनावट एक-सी है परन्तु एक पुरानी प्रतीत होती है। दोनोंके बीच केवल २० फुटका ही अन्तर है। जैसी मढ़िया पहाड़ीकी चोटीपर है, वैसी ही क्षेत्रपालकी मढ़िया मूल भोयरेके पास है। इन दोनों मढ़ियोंमें चरण चिह्न बने होंगे परन्तु अब वे यहाँ नहीं हैं। इन मढ़ियोंपर-से चारों ओरका दृश्य अत्यन्त मनोहर लगता है। एक ओर बेतवा, दूसरी ओर चेलना, चारों ओर पहाड़ियाँ और उसके बीच में क्षेत्र। यह दृश्य अत्यन्त चित्ताकर्षक है। इन मढ़ियोंसे माता टीला बाँध और उससे रोका हुआ अगाध जल भी दिखाई देता है। उत्तरकी ओर जो नदी बहती है, उसे नाला कहा जाता है जिसके कई नाम हैं। नालेको बाँधके पास बेलानाला कहते हैं और दूसरे बाँधके पास इसका नाम बैलोताल पड़ता है । यह ताल बहुत बड़ा है । आगे पहाड़की परिक्रमा करता हुआ यह नाला 'बैकोना' नामसे पुकारा जाता है। किन्तु थोड़ा और आगे चलकर इसे 'बेलना' कहते हैं । ऐसा कहा जाता है कि यह बेलना चेलना का ही अपभ्रंश है। चेलना नदीपर रास्तेमें दो पुल भी बन चुके हैं। जहाँ सिद्धोंकी पहाड़ी और क्षेत्रकी परिक्रमा देनेवाली चेलना नदी मिलती है वहीं एक शिला रखी है जिसे 'मेघासन देवीको शिला' कहते हैं। किंवदन्ती ___ कहा जाता है कि एक साधु सिद्ध पहाड़ीकी मढ़ियापर आकर रहा जो कभी नीचे नहीं आया। पहाड़ीके ऊपर ही उसकी मृत्यु हुई और वहींपर दाह-संस्कार भी हुआ। हो सकता है कि दूसरी मढ़िया उसकी स्मृतिमें बनायी गयी हो, क्योंकि वह सिद्ध पुरुष माना जाता था और उसीके कारण इसका नाम सिद्धोको मढ़िया' पड़ा। नायककी गढ़ो-जहाँ सिद्धोंकी पहाड़ी प्रारम्भ होती है वहाँ लालाहैदोलका चबूतरा बना है, जहाँ कुछ खण्डित मूर्तियाँ पड़ी हैं। उसी चबूतरेसे 'नायककी गढ़ी' का बाहरी परकोटा शुरू हो जाता है। यहाँ गढ़ीके पूरे निशान, परकोटा, बावड़ी, सीढ़ियाँ तथा कमरोंके भग्नावशेष अब भी मिलते हैं । वस्तुतः यह नायककी गढ़ी नहीं है बल्कि एक विशाल जैन मन्दिरका खण्डहर है । यदि इस खण्डहरका उत्खनन हो तो इसमें इतिहासके कई बोलते पृष्ठ दबे पड़े मिलेंगे। बावड़ीकी सीढ़ियाँ इस कारीगरीसे निकाली गयी हैं कि आजके इंजीनियर भी उसे देखकर हैरान रह जाते हैं। यह विशाल मन्दिर 'सिद्धोंकी पहाड़ी' के ऊपर है।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy