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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १९५ पर मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। इसकी दीवारोंपर रामायणके दृश्य अंकित हैं। गुप्तकालकी कलाके प्रतिनिधि मन्दिरोंमें इस मन्दिरकी गणना की जाती है। मेला बीसवीं शताब्दीमें इस क्षेत्रमें कई बार विशाल आयोजनके साथ मेले हो चुके हैं, जिनमें हजारों-लाखों व्यक्तियोंने भाग लिया। पहला मेला सन् १९३४ में भरा था। उसके बाद सन् १९३६ में भरा । सन् १९३९ में गजरथ महोत्सव हुआ। तत्पश्चात् सन् १९५४ में, फिर बहुत बड़े स्तरपर सन् १९५६ में मेला हुआ। सन् १९६५ में मुनिवर्य नेमिसागरजी महाराजका संघ सहित चातुमार्स हुआ। उसके कारण क्षेत्रपर भक्तजनोंकी खूब उपस्थिति रहती थी। इसी अवसरपर यहाँ एक क्षुल्लक दीक्षा भी हुई थी। सीरौन मडावरा नगरसे ६ कि. मी. पूर्वकी ओर सीरौन ग्राम है। गांवके मकानों और निकटवर्ती जंगलमें अनेक खण्डित मूर्तियाँ बिखरी पड़ी हैं। जो सामग्री यहाँ मिलती है, वह पुरातत्त्व एवं कलाकी दृष्टिसे बहुमूल्य है। इस सामग्रीमें तीर्थंकर प्रतिमाए”, देवी-देवताओंकी मूर्तियाँ, तोरण, पाषाण स्तम्भ आदि विपुल मात्रामें मिलते हैं। मूर्तियाँ प्रायः ११वीं शताब्दीसे लेकर १३वीं शताब्दी तककी हैं। यहाँ ५० फुट ऊँचा एक भग्न जैन मन्दिर भी दिखाई पड़ता है। इसमें एक पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा विराजमान है। गिरार श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र गिरार मडावरासे १६ कि. मी. उत्तर-पूर्वकी ओर है। इस क्षेत्रके अतिशयोंके सम्बन्धमें नाना प्रकारकी किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। अनेक लोग यहाँ अब भी मनौती मनाने आते हैं। इस स्थानके देखनेसे यह विश्वास करनेको जी चाहता है कि यहाँ कभी जैनोंकी बहुत बड़ी आबादी थी। किन्तु समय बदल गया। अब तो यहाँ केवल कुछ ही जैनोंके घर बाकी बचे हैं। यहाँ भगवान् वृषभदेवका एक विशाल जैन मन्दिर है। इसीकी तीर्थ क्षेत्रके रूपमें प्रसिद्धि है। माघ कृष्णा १४को यहाँ जैनोंका वार्षिक मेला होता है। सैरोन जी श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र सैरोन जी झाँसी जिलेमें ललितपुरसे झाँसी की ओर २१ कि. मी. है । २० कि. मी. सड़क पक्की है। क्षेत्र गाँव से कुछ दूरपर स्थित है। क्षेत्रके पीछेकी ओर लगभग एक फलांग दूरपर एक छोटी-सी नदी खैडर बहती है। यहाँ ठहरनेके लिए धर्मशाला है। ___क्षेत्रके चारों ओर २०० फुट लम्बा पक्का परकोटा बना हुआ है जिसका निर्माण २०० वर्ष पूर्व सि. देवीसिंहने कराया था। क्षेत्रके द्वारमें प्रवेश करते ही सामने मानस्तम्भके दर्शन होते हैं। प्रांगणमें धर्मशाला बनी हुई है। एक ओर पुरानी बावड़ी है। प्रांगणमें पहले मन्दिर में प्रवेश करके एक बड़ा गर्भगृह मिलता है जिसमें एक वेदी है। मूर्तियाँ प्राचीन हैं । वेदीके चारों ओर दावालक सहार अनेक खण्डित-अखण्डित प्राचीन मूतिया रखी है।
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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