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________________ १९२ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ और धरणेन्द्र इन तीन यक्षोंकी ही मर्तियाँ मिली हैं। मन्दिर नम्बर ३७, १२, १९, २२ में गोमुख यक्ष, मन्दिर नम्बर १२,१३,१५ और २३ में गोमेध यक्ष, तथा मन्दिर नम्बर २४,२८ और अनेक स्तम्भोंपर पद्मावती सहित धरणेन्द्रकी मतियाँ मिली हैं। धरणेन्द्र मर्तियोंमें एक और विचित्रता यहाँ देखने में आयी। धरणेन्द्र और पद्मावती दोनोंकी गोदमें एक-एक बच्चा भी कहीं-कहीं दिखाया गया है। यक्षियोंमें चक्रेश्वरी, अम्बिका और पद्मावतीकी मूर्तियाँ बहुतायतसे मिली हैं। ये तीर्थंकर मूर्तियोंके साथ भी हैं और स्वतन्त्र भी। स्वतन्त्र मूर्तियाँ अधिक हैं। ये सिरदलपर, देवकुलिकाओं में और भित्तियोंपर भी बनी हुई हैं। ये ललितासन, राजलोलासन और खड्गासनमें हैं। ये बहुमूल्य वस्त्रों और रत्नाभरणोंसे अलंकृत हैं। चक्रेश्वरी और पद्मावती बीसभुजो भी मिलती हैं । साहू जैन संग्रहालयमें ऐसी दो मूर्तियाँ रखी हैं । दोनोंके सिरपर तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं । संग्रहालयमें एक फलकपर लगभग ३ फुट ऊँची चक्रेश्वरीको ऐसी ही एक और मति रखी हुई है। उसके एक हाथमें यक्षमाला, एक हाथमें शंख, सात हाथोंमें चक्र हैं । ११ हाथ खण्डित हैं । उसके परिकरमें लक्ष्मी, सरस्वती और मालाधारी विद्याधर युगल हैं। संग्रहालयमें चक्रेश्वरीकी १ मूर्ति ४ फुट ४ इंचकी है। मन्दिर नं. १९में दशभुजी चक्रेश्वरीकी मूर्ति है । किन्तु इसके हाथ खण्डित हैं। यहाँ अम्बिकाकी कई सौ मूर्तियाँ मिलती हैं। इसे नेमिनाथके अलावा ऋषभनाथ (मन्दिर नं. ४को भीतरी पश्चिमी दीवारमें) तथा पार्श्वनाथ (मन्दिर नं. १२के महामण्डपमें तीसरी मूर्ति) के साथ भी दिखाया है। मन्दिर नं. १२में अम्बिकाको ५ फुट ७ इंच ऊँची एक मूर्ति अत्यन्त सुन्दर और कलापूर्ण है। पद्मावतीकी भी कई सौ मूर्तियाँ यहाँ मिलती हैं। गोदमें बालक लिये हुए तथा अकेली दोनों प्रकारको मूर्तियाँ मिलती हैं। ___ मन्दिर नं. १२की बाह्य भित्तियोंपर यक्षियोंके २४ फलक हैं। नीचे यक्षीका नाम और ऊपर तीर्थंकर मूर्ति हैं। (३) साध-साध्वियोंकी मतियाँ–यहाँ आचार्य, उपाध्याय, साध परमेष्ठियों और अजिंकाओं की बहुत मूर्तियाँ हैं। सबके साथ पीछी तो अवश्य मिलती है, किन्तु कभी-कभी कमण्डलु नहीं दीख पड़ता। आचार्य परमेष्ठी पाठशालामें कुलपतिके रूपमें पढ़ाते हुए कभी मिलते हैं, कभी उपदेश मद्रामें हाथ उठाकर उपदेश देते हए खते हैं। कभी-कभी वे भक्तोंको केवल आशीर्वाद देते ही दीख पड़ते हैं। उपाध्याय परमेष्ठी सदा एक हाथमें ग्रन्थ लिये हुए साधुओं या श्रावकोंको पढ़ानेकी मुद्रामें दिखाई देते हैं। साधु और साध्वियाँ प्रायः तीर्थंकरों, आचार्यों और उपाध्यायोंके समक्ष अंजलिबद्ध खड़े हए या बैठे हुए दिखाई देते हैं। कभी पद्मासन या कायोत्सर्गासनमें ध्यानलीन भी मिलते हैं। भरत-बाहुबलीकी युगल मूर्तियाँ यहाँ अनेक स्थानोंपर हैं। (४) तीर्थंकर-माता एवं श्रावक-श्राविका-मन्दिर नं. ४के गर्भगृहकी बायीं भित्तिमें लेटी हुई तीर्थंकर-माताको ३ फुट १० इंच लम्बी एक मूर्ति जड़ी हुई है। माता मुकुट, कर्णकुण्डल, रत्नमाला, केयूर, कंकण, मेखला और पायल धारण किये हुए है । वह दायीं करवटसे लेटी हुई है। बगलमें खड़ी एक देवी चँवर ढोल रही है, एक पाँव दबा रही है। ऊपर तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं। नीचेके भागमें एक पंक्तिका अभिलेख है। इसमें निर्माण-काल वि. संवत् १०३० है।' मन्दिर नं. ३०के गर्भगृहमें एक शिलाफलकपर तीर्थंकर-माताकी एक मूर्ति
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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