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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ बिखरी हुई हैं। श्रीवत्स और अष्ट प्रातिहार्यका अंकन बहुत भव्य है। इसके दोनों ओर एक-एक पद्मासन तीर्थंकर मूर्ति है।
द्वारके भीतर दायीं ओर ७ फुट ८ इंचकी ऊँचाईपर एक शिलापट्ट है। एक देवकुलिकामें सप्तफण युक्त पार्श्वनाथ खड़गासनमें विराजमान हैं। पादपीठके दोनों ओर दो-दो मानवाकृतियाँ हैं, जो खण्डित हैं। उनके ऊपर पद्मासनमें एक तीर्थंकर मूर्ति है, जिसके दोनों ओर चँवरवाहक हैं।
___शिलापट्टके भीतरकी ओर देवकुलिकामें ललितासनमें बैठे हुए यक्ष-युगल अंकित हैं। एक तीर्थकर मूर्ति कमलासनपर विराजमान है । यह पद्मासनमें है। सिरके ऊपर दो क्षत्र हैं। घाटियाँ
पर्वतके दक्षिणकी ओर दो घाटियाँ हैं। इनमें-से नाहरघाटी पहाड़की ऊँची दीवारको काटकर बनायी गयी है। इस घाटीमें अनेक गुफाएं और शिलाओंपर अनेक देवकूलिकाएं बनी हुई हैं। यहाँ एक गुफामें वि. संवत् ६०९ का एक शिलालेख मिला बताया जाता है जो गुप्तकालका प्रतीत होता है।
यहाँ बेतवाके तटपर उत्खननमें प्रागैतिहासिक कालके अस्थिपंजर प्राप्त हुए हैं। राजघाटीकी गफामें एक शिलालेख वि. संवत ११५४ का है। इसको चन्देलवंशी राजा कीर्तिवर्माके मन्त्री वत्सराजने उत्कीर्ण कराया था और उसने अपने राजाके नामपर इस स्थानका नाम कीर्तिगिरि रखा था।
अभिलेख
__यहाँ लगभग ३०० छोटे-बड़े अभिलेख प्राप्त हुए हैं। ये अभिलेख भित्तियों, स्तम्भों और मूर्तियोंपर उत्कीर्ण हैं। कुछ शिलाओंपर भी अभिलिखित हैं। कुछ बेतवाकी तटवर्ती गुफाओं और पर्वत शिलाओंपर लिखे हए प्राप्त हए हैं। अधिकांश लेख दानके अवसरोंपर उत्कीर्ण कराये गये हैं। जैन स्मारकोंके लेखोंमें सबसे प्राचीन वि. संवत् ९१९ का है। यहाँके एक अभिलेखकी लिपि मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपिसे बहुत कुछ मिलती-जुलती है। यह अभिलेख साहू जैन संग्रहालयमें रखा हुआ है। नाहरघाटी और दशावतार मन्दिरमें दो अभिलेख ऐसे प्राप्त हुए हैं जो गुप्तकालके हैं। वि. संवत् ९१९ का एक अभिलेख गुर्जर प्रतिहार शासक भोजके कालका है। यह मन्दिर नम्बर १२ के अर्धमण्डपमें एक स्तम्भपर उत्कीर्ण है। वि. संवत् ११२१ में गुर्जर प्रतिहार शासक राज्यपाल द्वारा एक मठका निर्माण किया गया ( मन्दिर नम्बर १८ में ) वि. संवत् १२१० के एक लेखके अनुसार महासामन्त उदयपालने मूतियोंके निर्माणमें आथिक सहयोग दिया था।
कुछ अभिलेखोंमें कुछ भौगोलिक नाम भी मिलते हैं, जैसे चन्देरीगढ़, पातीगढ़, लुअच्छगिरि, गोपालगढ़, वेत्रवती, करनाटकी।
कुछ अभिलेखोंमें कुछ ऐतिहासिक व्यक्तियोंके नाम भी मिलते हैं, जिससे अनेक इतिहासप्रसिद्ध घटनाओंके काल-निर्धारणमें हमें सहायता मिलती है। इन पुरुषोंमें कुछ इस प्रकार हैंगुर्जर प्रतिहार शासक भोजदेव, भोजका महासामन्त विष्णुराम यचिन्द, राजपाल (गुर्जर प्रतिहारवंशके अन्तिम शासकोंमेंसे एक), उदयपाल देव, सुल्तान महमूद ( मालवाका शासक सन् १४३५७५ ), उदयसिंह उदेतसिंह, देवीसिंह दुर्गासिंह ( बुन्देला शासक )।