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उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ
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जिनके ऊपर पत्र-पुष्पोंका अलंकरण है । मध्यभागमें जंजीरोंमें घण्टियाँ लटकी हुई हैं । दायीं ओर स्तम्भपर वि. संवत् १९२१का एक लेख है ।
शृंखलाओंके ऊपर कीर्तिमुख हैं। ऊपरी भागमें चारों ओर कोष्ठक बने हुए हैं। उत्तरकी ओर ग्रन्थ हाथमें लिये आचार्य परमेष्ठी हैं, पादपीठमें पीछी - कमण्डलु है । इनके नीचे की ओर आर्यिकाएँ हैं । शेष तीन ओर पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं ।
बायें स्तम्भपर आचार्यं परमेष्ठीके सामने साधु और आर्यिकाएँ उपदेश श्रवण करते हुए दिखाये गये हैं। ये १३ फुट १० इंच ऊँचे हैं ।
१७ – यह स्तम्भ मन्दिर नं. २० के सामने है । इसमें एक सुसज्जित हर्म्यका दृश्य अंकित है । कीर्तिमुख और पुष्पमालाओंका भव्य अंकन किया गया है। मध्यमें शिखराकार देवकुलिकाएँ हैं, जिनमें पद्मासन सर्वतोभद्रका प्रतिमाएँ हैं ।
केवल यही मानस्तम्भ गोलाकार है । इसकी सूक्ष्म कला दर्शनीय है । यह चौकी समेत ११ फुट ११ इंच ऊँचा है ।
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१८ – यह स्तम्भ मन्दिर नं. २६-२७के मध्य में है । इसके अधोभागमें देवकुलिकाएँ बनी हुई हैं । जिनमें धरणेन्द्र - पद्मावती, अम्बिका आदि देवियाँ उत्कीर्ण हैं । इनके ऊपर पत्रावली, लताएँ हैं । उनके मध्य में कीर्तिमुखोंसे घण्टिकाएँ लटक रही हैं । उनके ऊपर देवकुलिकाएं हैं जिनमें पद्मासन तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं ।
यह पौने पाँच फुट ऊँचा है ।
१९ – यह स्तम्भ मन्दिर नं. २६-२८-३० के मध्य में है । अधोभाग में देवकुलिकाएँ हैं । इनमें धरणेन्द्र, पद्मावती, अम्बिका आदि यक्ष-यक्षी हैं । इनके बाद ऊपर चारों ओर चौबीसी बनी हुई है। पाँच-पाँच पंक्तियोंमें ४-४ पद्मासन मूर्तियाँ हैं तथा छठवीं पंक्ति में खड्गासन मूर्तियाँ हैं । यह ५ फुट ८ इंच ऊँचा है ।
क्षेत्र पर बहुत-सी खण्डित मूर्तियाँ इधर-उधर बिखरी पड़ी हैं ।
कुंजद्वार
यह द्वार पर्वतके पश्चिम की ओर है और प्राचीन दुर्गंका मुख्य द्वार है । यह १९ फुट ऊँचा और १० फुट चौड़ा है । यह जीर्ण दशा में है । इस द्वारके दोनों ओर १५ फुट चौड़ी प्राचीन प्राचीर है । इसका तोरण भव्य और कलापूर्ण है ।
इस द्वारके दक्षिणमें लगभग १०० गजकी दूरीपर मुख्य सड़क और मन्दिरोंके बीच एक पक्का मार्ग बन गया है ।
हाथी दरवाजा
दुर्ग प्रथम प्राचीरमें पूर्वकी ओर यह दरवाजा है। हाथियोंका आवागमन इसी द्वारसे होता था, इसलिए इस दरवाजेका नाम ही हाथी दरवाजा हो गया । द्वारके भीतर बायीं ओर एक शिलाफलक ८ फुटकी ऊँचाईपर लगा हुआ है । इसमें उपाध्याय परमेष्ठी अंकित हैं । हाथमें ग्रन्थ लिये हुए हैं, किन्तु वह कुछ खण्डित हो गया है । इनके दोनों ओर अंजलिबद्ध साधु खड़े हुए हैं। उनके हाथोंमें पीछी है । उपाध्यायके ऊपर पद्मासनमें एक तथा उसके दोनों ओर खड्गासनमें एक-एक तीर्थंकर प्रतिमा । इसके बगल में एक देवकुलिका बनी हुई है । इसमें एक पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा विराजमान है । किन्तु इसका मुख खण्डित है । इस प्रतिमाके कन्धों पर जटाएँ