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________________ १८८ भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ ___ मध्य भागमें कीर्तिमुखोंसे लम्बी-लम्बी तीन शृंखलाओंमें बँधी हुई घण्टिकाएँ लटकती हुई अंकित हैं। इससे ऊपर भागमें चार देवकूलिकाएँ बनी हुई हैं जिनमें एक-एक खड़गासन तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं। यह १३ फुट ८ इंच ऊँचा है। ९-यह स्तम्भ मन्दिर नं. १२ के सामने है। यह ८ फुट ७ इंच ऊँचा है। इसके ऊपर कोई अंकन या अलंकरण नहीं है। १०-यह मन्दिर नं. १२के महामण्डपमें रखा हुआ है। इसपर दो अभिलेख हैं-एक दो पंक्तिका और दूसरा १० पंक्तियोंका । उसके ऊपर देवकुलिकामें तीर्थंकर मूर्ति बनी हुई है। यह ६ फुट २ इंच ऊँचा है। ११-यह मानस्तम्भ है जो मन्दिर नं. ११के सामने और मन्दिर नं. १२के दक्षिणमें है। यह तीन कटनीदार चौकीपर स्थित है और कुल ८ फुट ५ इंच ऊँचा है। इसके अधोभागमें चार देवकुलिकाएं बनी हुई हैं। इनमें उत्तरकी ओर धरणेन्द्र-पद्मावती, पूर्वमें गरुड़वाहिनी दशभुजी चक्रेश्वरी, दक्षिणमें द्वादशभुजी मयूरवाहिनी महामानसी, पश्चिममें वृषभारूढ़ा अष्टभुजी कालीदेवी उत्कीर्ण हैं। स्तम्भपर फूल-पत्तियाँ, शृंखलायुक्त घण्टियोंका अंकन बहुत सुन्दर है। ऊपरके भागमें चारों दिशाओंमें चार कोष्ठक हैं। उत्तरकी ओर आचार्य परमेष्ठी उपदेश मुद्रामें पद्मासनमें विराजमान हैं। उनके दोनों ओर पीछीधारी एक साध और अंजलिबद्ध दो-दो भक्त बैठे हैं। पूर्वकी ओर वि. संवत् ११११ का एक अभिलेख है। उसके ऊपर एक उपदेश देती हुई अजिका अंकित है। उसके दोनों ओर वस्त्राभूषणधारिणी अंजिलबद्ध तीन-तीन श्राविकाए बैठीं हुई हैं। दक्षिणमें उपदेश मुद्रामें अजिका अंकित है। उनके पीछी-कमण्डल दोनों दिखाई पड़ते हैं। उनके दोनों ओर - एक-एक अजिका और दो-दो श्राविकाएँ विनय मद्रामें आसीन हैं। पश्चिममें मध्यमें उपाध्याय परमेष्ठी उपदेश मुद्रामें बैठे हैं। उनके दोनों ओर एक-एक साधु और दो-दो श्रावक बैठे हैं। इनके भी ऊपर चार देवकूलिकाएं बनी हई हैं। इनके शिखरोंके ऊपर लघु आमलक और कलश बने हए हैं। इन कूलिकाओंमें दक्षिणमें सप्त फणाच्छादित पार्श्वनाथ कायोत्सर्गमें स्थित हैं। शेष तीन ओर तीर्थंकर प्रतिमाएं खड्गासनमें अंकित हैं। १२-यह मन्दिर नं. १२के दक्षिणमें स्थित है। इसके चारों ओर ११-११ पंक्तियोंमें ४-४ तीर्थंकर मूर्तियाँ अंकित हैं। सभी पद्मासनमें हैं। यह स्तम्भ चौकी समेत ११ फुटका है। १३-मन्दिर नं. १४के सामने दायीं ओर है। इसके अधोभागमें चारों ओर देवकूलिकाएँ बनी हुई हैं। पश्चिमकी देवकुलिकामें अम्बिका है तथा शेषमें यक्षी हैं। इनके ऊपर चारों ओर ११-११ पंक्तियोंमें ४-४ तीर्थंकर प्रतिमाएँ अंकित हैं। देवकूलिकाओंके ऊपर कलश भी बने हुए हैं। यह ११ फुट ऊँचा है। १४-यह स्तम्भ मन्दिर नं. १५के सामने स्थित है। इसकी बनावट बहुत सुन्दर है। अधोभागमें १८ मेखलाएं बनी हुई हैं । कीर्तिमुखोंके ऊपर लताओं और पत्रोंका सुन्दर अंकन किया गया है। ऊपरी भागमें खड्गासन सर्वतोभद्रिका प्रतिमाएँ हैं। इसकी ऊँचाई ६ फुट ९ इंच है। १५, १६-ये दोनों स्तम्भ मन्दिर नं.१८के सामने हैं। अधोभागमें मंगल घट बने हुए हैं,
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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