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उत्तरप्रदेश के दिगम्बर जैन तीर्थं
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आच्छक सहित विराजमान है । पूर्वमें गरुड़पर बैठी हुई चक्रेश्वरी है । दक्षिणमें नाग और पश्चिममें नागी बने हुए हैं । इनके ऊपर कीर्तिमुखोंसे कलापूर्ण घण्टियाँ लटक रही हैं। कीर्तिमुखोंके ऊपर देवकुलिकाएँ बनी हुई हैं । पूर्वमें पीछी - कमण्डलु सहित ६ मुनि उपदेश मुद्रामें बने हुए हैं। दक्षिण में पीछी - कमण्डलु सहित, विनय मुद्रामें ६ अर्जिकाएं, पश्चिम में ३ साधु, ३ अर्जिकाएँ क्रमसे पीछी सहित और उत्तरकी ओर बायेंसे श्रावक-श्राविका और साधु हाथ जोड़े हुए हैं । इनके मध्यमें आचार्यं परमेष्ठी उपदेश मुद्रामें आसीन हैं ।
यहाँ तक स्तम्भ चतुष्कोण है । इसके पश्चात् पाषाण गोल हो गया है । फिर कीचकोंके ऊपर चार देवकुलिकाओंमें चार पद्मासन मूर्तियाँ हैं । पूर्वं और दक्षिणमें हरिण चिह्नवाली शान्तिनाथकी प्रतिमा है । पश्चिममें फणयुक्त पार्श्वनाथ हैं। उत्तरको देवकुलिकामें उपदेश मुद्रामें आचार्यं परमेष्ठी विराजमान हैं । उनके समक्ष श्रावक बैठे हुए हैं ।
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इनके ऊपर और भी देवकुलिकाएँ बनी हुई हैं ।
मानस्तम्भ अत्यन्त भव्य है । इसकी ऊँचाई चौकी सहित १६ फुट है ।
४- यह मन्दिर १ के पीछे है । चौकी समेत इसकी ऊँचाई १० फीट १० इंच है । अधोभाग४ देवकुलिकाएँ बनी हैं। इनमें क्रमशः नाग, नागी, अम्बिका और महाकाली हैं। मध्य भाग में कोर्तिमुखोंसे घण्टिकाएँ लटक रही हैं। इनके ऊपर ४ देवकुलिकाएँ बनी हुई हैं। दक्षिणकी देवकुलिका उपाध्याय और शेषमें पद्मासन तीर्थकर मूर्तियाँ हैं ।
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५ - यह मन्दिर नं. २-३-४ के बीचमें बना हुआ है। इसमें अधोभाग और मध्यभागमें कीर्तिमुख बने हुए हैं। मध्यके कीर्तिमुखोंसे साँकलदार घण्टियाँ लटकी हुई हैं। ऊपरी भाग में ४. Sagar बनी हुई हैं । उत्तरमें आचार्य परमेष्ठी उपदेश मुद्रामें आसीन हैं । एक हाथमें ग्रन्थ है । पीछी-कमण्डलु पासमें रखे हुए हैं। पूर्व में सप्त फणावलियुक्त पार्श्वनाथ, दक्षिणमें ऋषभदेव और पश्चिममें अजितनाथ पद्मासनमें विराजमान हैं। सबके नीचे एक-एक पंक्तिका लेख है । इस स्तम्भपर वि. संवत् ११०८ अंकित है ।
६ - मन्दिर नं. ५ के पश्चिम में बायीं ओर है । यह स्तम्भ केवल ४ फुटका है। इसमें चार देवकुलिकाएँ बनी हुई हैं। दक्षिणकी देवकुलिकामें पीछी- कमण्डलु लिये हुए अर्जिका है। शेष ३ पर पोछी - कमण्डलु लिये हुए मुनि कायोत्सर्ग में लीन हैं ।
७–यह स्तम्भ मन्दिर नं. ६ - ७-९ के मध्य में है । इसमें पूर्व और पश्चिममें देवकुलिकाएँ बनी हुई हैं, जिसमें गलेमें माला धारण किये हुए कायोत्सर्ग मुद्रामें भट्टारककी एक-एक मूर्ति है । पूर्व में एक पंक्तिका तथा पश्चिममें तीन लाइनका लेख है ।
यह चौकी सहित पौने पाँच फुट ऊँचा है ।
८ - यह स्तम्भ मन्दिर नं. १२ के सामने चबूतरेपर है । अधोभाग में चार देवकुलिकाएँ हैं। उत्तर में सिंहवाहिनी, पूर्व में मयूरवाहिनी, दक्षिण में नरारूढ़ा और पश्चिममें वृषभारूढ़ा चतुर्भुजी देवी - मूर्तियाँ हैं । सम्भवतः ये महावीर तीर्थंकरकी सिद्धायिका, शान्तिनाथकी महामानसी ( कन्दर्पा), सुपार्श्वनाथ की काली ( मानवी ) नामक देवियाँ होंगी। किन्तु दिगम्बर शास्त्रोंमें किसी नरारूढा' देवीका वर्णन देखने में नहीं आया ।
१ - श्री ठक्कर फेरु विरचित 'वास्तुसार प्रकरण' ग्रन्थके अनुसार पद्मप्रभु भगवान्की यक्षी अच्युता ( श्यामा) नरवाहना मानी गयी है ।