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भारतके दिगम्बर जैन तीर्थ खड्गासन तीर्थंकर प्रतिमा है। इसकी पूर्वी दीवालके उत्तरको ओर नवनिर्मित चहारदीवार मिलती है। इसके गर्भगृहमें तोन ओर वेदियाँ बनी हुई हैं। उनपर ६ शिलापट्ट हैं, जिनमें ३ पर खड्गासन और ३ पर पद्मासन-प्रतिमाएं हैं।
मन्दिर नं. ६–इसके सिरदलके मध्यमें पद्मासन तीर्थंकर प्रतिमा है। इसकी दीवालोंपर स्तम्भोंके आकार बने हुए हैं। स्तम्भोंपर सुन्दर बेल-बूटे हैं। इसकी छत एक ही पत्थरकी है। इसके गर्भगृहमें तीन ओर नवनिर्मित वेदियाँ हैं, जिनपर ५ शिलापट्ट हैं। १ पर पद्मासन और शेषपर खड्गासन प्रतिमाएँ हैं।
यह मन्दिर नं. १५के पीछे छोटी मढ़िया कहलाती है।
मन्दिर नं. ७-यह मन्दिर १९के सामने स्थित है। बहिभित्तियोंपर चार-चार स्तम्भाकृतियाँ बनी हुई हैं। गर्भगृहमें चार शिलाफलकोंमें १ पर पद्मासन और शेषपर खड्गासन प्रतिमाएं बनी हुई हैं।
मन्दिर नं. ८-यह मन्दिर नं. २६के उत्तरमें है। प्राचीन मन्दिरका जीर्णोद्धार करके यह बनाया गया है। प्रवेश-द्वारके सिरदलमें एक खड्गासन तीर्थंकर मूर्ति है। गर्भगृहमें चार शिलाफलक हैं, जिनपर ५ प्रतिमाएं बनी हुई हैं-४ खड्गासन हैं और १ पद्मासन है । १ मूर्तिपर लेख है।
मन्दिर नं. ९-मन्दिर नं. २७के दक्षिणमें है। पुराने मन्दिरके स्थानपर यह बनाया गया है। इसमें दो कक्ष हैं। बायें कक्षमें २ शिलाखण्ड हैं, जिनपर २ पद्मासन और २ खड्गासन मूर्तियाँ बनी हुई हैं। दायें कक्षमें १ शिलापट्टपर खड्गासन प्रतिमा है और २ छोटे अभिलेख अंकित हैं। स्तम्भ
यहाँ छोटे-बड़े १९ स्तम्भ हैं, जिनका परिचय इस प्रकार है
१-यह मन्दिर नं० १ के आगे बना हुआ है। इसके ऊपर ४ देव-कुलिकाएं बनी हुई हैं, उनमें ४ खड्गासन प्रतिमाएँ अंकित हैं। दक्षिणी देवकुलिकाके नीचे अर्धचन्द्र लांछन बना हुआ है, जिससे ज्ञात होता है कि यह मूर्ति चन्द्रप्रभ भगवान्की है। इस स्तम्भके पूर्वी भागमें १० इंच लम्बी ९ पंक्तियोंका एक लेख है। इसके अनुसार वि. सं. १४९३में महेन्द्रचन्द्र नामक एक श्रावकने मूर्ति-प्रतिष्ठा करायी थी। स्तम्भकी ऊँचाई ५ फुट ३ इंच है।
२-मन्दिर नं. १ के पीछे उत्तर में स्थित है। इस स्तम्भके नीचेके भाग में चार देवकुलिकाओंमें अम्बिका, चक्रेश्वरी, धरणेन्द्र और पद्मावती बने हुए हैं। स्तम्भके मध्य भागमें कीर्तिमुखोंके चारों ओर घण्टियाँ लटक रही हैं। इसके ऊपर ४ देवकुलिकाएं बनी हुई हैं, जिनमें ३ पदमासन तीर्थंकर मतियां बनी हैं और दक्षिणी देवकलिकामें उपाध्याय परमेष्ठीकी मति है। उपाध्याय उपदेश मुद्रामें हैं। उनके निकट एक चौकी है। पीछी कमण्डलु भी स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं। उनके बायीं ओर हाथ जोड़े हुए एक भक्त बैठा है। पश्चिमी देवकुलिकामें पंच फणावलियुक्त भगवान् सुपार्श्वनाथकी मूर्ति है। शेष दो मूर्तियाँ चिह्न रहित हैं।
इस स्तम्भकी ऊँचाई सवा दस फुट है।
३-मन्दिर नं. १ के पीछे बना हुआ यह मानस्तम्भ है। इसके नीचेके भागमें ४ देवकुलिकाएँ बनी हुई हैं। उत्तरकी देवकुलिकामें सिंहासनारूढ़ा अम्बिका अपने दोनों बालकों और