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________________ उत्तरप्रदेशके दिगम्बर जैन तीर्थ १८५ में मूर्ति-बेचकोंने यहाँकी कुछ तीर्थंकर मूर्तियों और १ धरणेन्द्र-पद्मावतीके सिर काट लिये थे। मन्दिर नम्बर २७–यह पूर्वाभिमुख है। मण्डप दीवारोंपर आधारित है। प्रवेश-द्वारके सिरदलपर नेमिनाथ पद्मासन मुद्रामें आसीन हैं। उनके इधर-उधर पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथ हैं । दायीं ओर १ पंक्तिका अभिलेख है । गर्भगृहके द्वारके ऊपर ऋषभदेव अंकित हैं। गर्भगृहमें २ शिलापट्ट हैं । १ पर चौबीसी बनी हुई है। ___मन्दिर नम्बर २८-यह दक्षिणाभिमुख है। गर्भगृह २ सीढ़ी उतरकर निचाई पर है। इसमें ७ शिलापट्ट हैं, जिनमें २ पर पद्मासन और ५ पर खङ्गासन मूर्तियाँ हैं। ३ पर लेख हैं। मन्दिरपर शिखर है। प्रवेश-द्वारपर भव्य शिखर है। जीर्णोद्धारके समय यथावत् मूर्ति लगा दी गयी है। - मन्दिर नम्बर २९-यह पश्चिमाभिमुख है। सिरदलपर तीन तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं। इसकी वेदीपर ६ शिलापट्ट हैं। इनमेंसे एकपर सं. १२०३ का लेख है। एक शिलाफलकपर चौबीसी है और एकपर केवल भामण्डल और सिंहासन बना हआ है। मन्दिर नम्बर ३०-यह पश्चिमाभिमुख है। मण्डप ८ स्तम्भोंपर आधारित है। प्रवेशद्वारके ऊपर तीन तीर्थंकर मूर्तियाँ हैं। गर्भगृहमें ३ वेदियाँ बनी हुई हैं। इनपर १२ शिलापट्ट रखे हुए हैं । ३ पर लेख हैं । एक सिंहासनपर लेख खुदा हुआ है । इसपर कोई मूर्ति नहीं है। मन्दिर नम्बर ३१-यह दक्षिणाभिमुख है। प्रवेश-द्वारके दोनों ओर गंगा-यमुनाका अंकन है। सिरदलपर वीणा-पुस्तकधारिणी सरस्वती तथा शान्तिनाथकी मूर्ति बनी हुई है। बायीं ओर कोई देवी-मूर्ति थी जो खण्डित कर दी गयी। गर्भगृहकी वेदीमें एक शिलाफलकपर नेमिनाथकी मूर्ति है। लघु मन्दिर उपर्युक्त मन्दिरोंके अतिरिक्त कतिपय लघु मन्दिर भी हैं, जिनका परिचय इस प्रकार है मन्दिर नम्बर १-मन्दिर संख्या १२ के दक्षिणमें है। मण्डप चार स्तम्भोंपर खड़ा है। दीवारके बाहरी भागपर चार शिखरयुक्त देवकुलिकाएँ बनी हुई हैं। जिनमें एक-एक तीर्थंकर प्रतिमा है। गर्भगृहमें ५ शिलापट्ट हैं, जिनमें २ पर पद्मासन और ३ पर खड्गासन मूर्तियाँ हैं । मन्दिर नं. २-यह मन्दिर नं. १२के दक्षिणमें बीचमें हैं। इसमें मण्डप नहीं है। पश्चिम भित्तिपर पाँच और पूर्व एवं दक्षिणकी दीवारपर चार-चार अलंकृत स्तम्भाकृतियाँ हैं । गर्भगृहमें तीन शिलापट्ट हैं। १ पर खड्गासन और २ पर पद्मासन मूर्तियाँ हैं। मन्दिर नं. ३–मन्दिर नं. १२ के दक्षिणमें पश्चिमकी ओर स्थित है। यह मन्दिर मण्डपाकार है और तीन ओरसे खुला हुआ है। इसमें एक मूर्ति सवा सात फुट ऊँची है। दोनों ओर चमरवाहक हैं, किन्तु बायीं ओरका चमरवाहक नहीं है, कट गया है। मन्दिर नं. ४-यह मन्दिर नं. १३के सामने है। प्रवेशद्वारपर गंगा-यमुना और सिरदलपर पद्मासन तीर्थंकर मूर्ति है । पश्चिमी भित्तिपर एक शिखरयुक्त मण्डपाकृति बनी हुई है, जिसमें खड्गासन तीर्थंकर प्रतिमा अंकित है। इसी प्रकार पूर्वी दीवारपर भी तीर्थंकर-मूर्ति बनी हुई है। गर्भगृहमें वेदीपर दो शिलापट्ट और खड्गासन पार्श्वनाथ मूर्ति है । शिलापट्टोंमें पद्मासन मूर्तियाँ हैं। मन्दिर नं. ५-यह मन्दिर नं. १५ के पीछे है। प्रवेश-द्वारके सिरदलके मध्यमें एक २४
SR No.090096
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbhadra Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1974
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size16 MB
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